जदयू प्रमुख नीतीश कुमार और तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ प्लान 475 तैयार कर रहे हैं. इस प्लान की सबसे प्रमुख बात यह है कि वे चाहते है कि लोकसभा की 543 सीटों में से कम से कम 475 सीटों पर बीजेपी के खिलाफ विपक्ष से सिर्फ एक कैंडिडेट चुनावी मैदान में उतरे. कैंडिडेट कांग्रेस का हो या किसी और पार्टी का लेकिन लड़े कोई एक, जिससे वोट न बंटे और बीजेपी को आमने सामने की लड़ाई में हराकर 2024 में लगातार तीसरी बार लोकसभा चुनाव जीतने से रोका जा सके.
सूत्र बताते हैं कि 475 सीटों पर एक कैंडिडेट देने का फाॅर्मूला जिस पर चर्चा होगी, उसमें 2019 के लोकसभा चुनाव में जीती सीटों का सबसे अहम रोल है. बेसिक फाॅर्मूला है कि 2019 में जिस पार्टी ने जो सीट जीती, वो उसकी. नंबर दो पर रही पार्टी को प्राथमिकता देना फाॅर्मूले का दूसरा स्टेज है. क्षेत्रीय दल इस फाॅर्मूले पर कांग्रेस से सीट के बंटवारे पर सहमति बनाने की कोशिश करेंगे. किसी सीट पर नंबर एक और नंबर दो पर रही पार्टी अगर विपक्षी खेमे में नहीं हो तो तीसरे नंबर पर रही पार्टी को तवज्जो दिया जाए. इसका सीधा मतलब है कि 2019 के चुनाव में विपक्षमी खेमे की जो पार्टी सबसे ज्यादा वोट लाई, उसका उस सीट पर हक माना जाए.
दिक्कत ये है कि कांग्रेस ये फाॅर्मूला मान लेती है तो उसे 2024 के चुनाव में 250 से कुछ ज्यादा या कुछ कम सीटें लड़ने के लिए मिल पाएगी, जहां पार्टी जीती या दूसरे नंबर पर रही. ऐसे में विपक्षी गठबंधन जीत भी जाए तो भी सरकार चलाने और गिराने का बटन कोलकाता से चेन्नई तक बिखरा रहेगा.
कांग्रेस की एक मुसीबत यह भी है कि सीधी लड़ाई में बीजेपी कांग्रेस पर बहुत भअब पूरी कवायद विपक्षी इस बात पर टिकी है कि कांग्रेस करीब 250 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गाए. नीतीश एवं ममता ने कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के साथ इसी फाॅर्मूले पर मंथ के लिए आगामी 12 जून को पटना में सभी विपक्षी दलों की बैठक बुलाई है.
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2014 के लोकसभा चुनाव में 189 सीटों पर सीधी टक्कर में 166 सीटों पर बीजेपी जीती जबकि 2019 में 192 सीटों पर आमने सामने के मुकाबले में 176 सीटें बीजेपी की झोली में गई. 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को 52 सीटों पर विजयश्री मिली जबकि 209 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही. वहीं 2014 में कांग्रेस ने 44 सीटें जीती जबकि 224 सीटों पर नंबर दो पर रही. जीत और नंबर दो को मिला दें तो कांग्रेस 2014 में 268 सीट और 2019 में 261 सीटों पर जीती या रनअप रही.
ऐसे में नीतीश और ममता के फाॅर्मूला 475 के मुताबिक कांग्रेस को 250 या 260 सीटे ही मिलती दिख रही है. बाकी सीटों पर यूपी में अखिलेश यादव, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे, बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव, झारखंड में हेमंत सोरेन और तेलंगाना में केसीआर जैसे क्षत्रप अपनी अपनी पार्टी को महत्व, नेतृत्व एवं ज्यादा सीटें चाहते हैं. मतलब ये है कि जिन राज्यों में कांग्रेस कमजोर है, वहां वो उस राज्य की ताकतवर पार्टी द्वारा दी गई सीटों पर ही लड़ें.
कांग्रेस जिस हालत में है, उसमें 2024 में भारतीय जनता पार्टी या फिर यूं कहें कि नरेंद्र मोदी को केंद्र की सत्ता से बेदखल करने के लिए क्षेत्रीय दलों से सीटों की सौदेबाजी में कितना झुक सकती है, अब सारा खेल इस पर टिकने वाला है. यह बात भी देखने योग्य होगी कि क्षेत्रीय दल कांग्रेस को कितने प्रतिशत ये भरोसा देने में कामयाब होते है कि पहले नंबर जुटाना है और बाद में सबसे बड़ी पार्टी ही सरकार का नेतृत्व करेगी. हालांकि इस तरह होना संभव नहीं लगता लेकिन एक बारगी मान भी लिया जाए कि इस तरह विपक्ष मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल कर सकता है तो कितने समय ये हुक लगी सरकार चल पाएगी, बता पाना जरा मुश्किल है.