महाराष्ट्र (Maharastra) और हरियाणा (Haryana) में विधानसभा चुनावों की तारीख तय हो गयी है. महाराष्ट्र की 288 और हरियाणा की 90 सीटों पर 21 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव होने हैं. नतीजें 24 अक्टूबर को आएंगे. दोनों राज्यों में भाजपा की स्थिति तो पिछले बार की तरह काफी मजबूत है लेकिन कांग्रेस की दोनों प्रदेशों में स्थिति में जमीन-आसमान का फर्क है. हरियाणा में एक तरफ कांग्रेस के सभी दिग्गज, पूर्व विधायक और स्थानीय कार्यकर्ता तक चुनाव टिकट पाने की लाइन में लगे हुए हैं. वहीं दूसरी तरफ, महाराष्ट्र में कांग्रेस के पास एक इकलौती सीट को छोड़ 287 सीटों पर खड़े करने के लिए उम्मीदवार तक नहीं है.

सबसे पहले बात करें हरियाणा की तो यहां 90 सीटों पर विधानसभा चुनाव होने हैं. चुनावों की पूरी जिम्मेदारी प्रदेशाध्यक्ष कुमारी शैलजा और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के हाथों में है. यहां हुड्डा अपने करियर की अंतिम पारी खेलने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहते इसलिए एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं. चर्चा है पार्टी आलाकमान ऐसे तमाम नेताओं को चुनाव में उतारेगी जो जीत सकते हैं. इनमें लोकसभा का चुनाव लड़ चुके करीब-करीब सारे नेता विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं. कांग्रेस चुनाव प्रबंधन समिति के अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा इस बार सोनीपत से लोकसभा चुनाव हारे थे लेकिन विधानसभा चुनाव में उनका टिकट पक्का है. हालांकि वे वर्तमान विधायक हैं. उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा रोहतक लोकसभा सीट से मामूली अंतर से हारे थे. उनका भी टिकट फाइनल ही है.

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कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला कैथल सीट से चुनावी जंग में ताल ठोकेंगे. कांग्रेस विधायक दल की नेता रही किरण चौधरी भी चुनाव में उतरने को तैयार है. हरियाणा जनहित कांग्रेस का विलय कर कांग्रेस में शामिल हुए कुलदीप बिश्नोई और उनकी पत्नी रेणुका बिश्नोई सहित चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री के.अजय यादव का विधानसभा चुनाव में उतरना करीब-करीब पक्का है. कुल मिलाकर कहा जाए तो राज्यसभा सांसद और कांग्रेस की हरियाणा ईकाई की अध्यक्ष कुमारी शैलजा को छोड़ सारे बड़े पार्टी नेता विधानसभा चुनाव में उतर रहे हैं.

अब आते हैं महाराष्ट्र पर जहां कांग्रेस के पास उम्मीदवारों का टोटा ही पूर्ण संकट है. यहां पार्टी का कोई भी बड़ा नेता विधानसभा चुनाव लड़ने का इच्छुक नहीं है. इसकी वजह है कि यहां पार्टी के अधिकतर नेता दो बार से ज्यादा लोकसभा चुनाव हार चुके हैं. शरद पवार की पार्टी एनसीपी से गठजोड़ होने के बाद भी इनके जीतने की संभावना लगभग क्षीण है. गौर करने वाली बात ये है कि यहां चुनावों से पहले ही सोशल मीडिया पर भाजपा-शिवसेना एलायंस की जीत का माहौल है. ऐसे में कांग्रेस नेता चुनावी मैदान में उतरने से घबरा रहे हैं. कांग्रेस और एनसीपी के बड़े नेताओं का भाजपा या शिवसेना में शामिल होने से स्थिति और भी बदतर हो चली है.

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बहरहाल, कांग्रेस के पास जो बड़े नेता बचे हैं, उनमें से अशोक चव्हाण को छोड़ कोई भी चुनाव लड़ने को राजी नहीं. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण तक चुनाव नहीं लड़ना चाहते. दिग्गज़ नेता सुशील शिंदे, पूर्व सांसद राजीव सातव भी इस दंगल से बचते फिर रहे हैं. आलाकमान पूर्व सांसद रह चुके रजनी पाटिल, मिलिंद देवड़ा, संजय निरूपम और प्रिया दत्त को महाराष्ट्र चुनाव में उतारना चाहता है लेकिन इनमें से कोई भी आगे नहीं आना चाहता. कांग्रेस की इस फटे हाल हालत को देखते हुए सियासी गलियारों में ये मैसेज पहले से ही पहुंच गया है कि प्रदेश में कांग्रेस ने जंग से पहले ही हथियार डाल हार मान ली. ये स्थिति कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी और पूर्व पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए संकट की घड़ी साबित हो रही है.

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