Politalks.News/Rajasthan. राजस्थान के सियासी संग्राम की शुरूआत में ही पाॅलिटाॅक्स ने 9 जून को एक खबर चलाई थी, खबर का शीर्षक था “मुंगेरीलाल के हसीन सपने से कम नहीं है अब राजस्थान में सत्ता परिवर्तन“, जिसमें साफ तौर पर msg दिया गया था कि राजस्थान में कोई सिंधिया बनने की कोशिश ना करे, यहां कमलनाथ नहीं अशोक गहलोत हैं. अब राजस्थान के सियासी घमासान के थमने के साथ ही पाॅलिटाॅक्स की दो महीने पहले जारी की गई खबर की पुष्टि हो गई है. मुख्यमंत्री गहलोत के अनुभव और जादुई नेतृत्व ने सचिन पायलट और भाजपा की उस योजना को ऐसी पटकनी दी है कि आने वाले कई समय तक राजनीतिक गलियारों में इसका जिक्र होगा.
होना भी चाहिए, एक के बाद एक राज्यों में खरीद फरोख्त, दल बदल कानून की धज्जियां उड़ाकर संविधान की भावना के साथ खिलवाड़ करते हुए जनता की चुनी हुई सरकारें गिर रही हैं. खास बात यह है कि सभी जगह कांग्रेस की ही सरकारें गिर रही है, उससे बड़ी बात यह है कि सभी जगह भाजपा की सरकार बन रही है. पूरे देश में कांग्रेस के अब तक 110 विधायक बागी होकर भाजपा से मिलकर नई सरकारें बना चुके हैं. भाजपा लाख सच छुपाए, सच छुप नहीं सकता. राजस्थान के सियासी खेल में भी पायलट और भाजपा का गठजोड़ था. लेकिन यहां कामयाबी नहीं मिल सकी. क्योंकि यहां कांग्रेस के पास अशोक गहलोत जैसा मजबूत अनुभवी नेता बैठा है.
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गहलोत ने अपने राजनीतिक चातुर्य से भाजपा और पायलट की रणनीति को ऐसी पटकनी दी कि भाजपा खुद अपने विधायकों को बचाने के काम में लग गई, वहीं पायलट खेमा चुपचाप “गहलोत शरणम गच्च्छामी” हो गया. यह मुख्यमंत्री गहलोत की केवल जादूगरी नही है बल्कि महा जादूगरी कही जानी चाहिए. मुख्यमंत्री गहलोत ने इतनी तगड़ी किलेबंदी कि कांग्रेस खेमे में बैठा एक भी विधायक इधर से उधर नहीं हो सका.
सचिन पायलट ने जिस अंदाज के साथ 18 विधायकों को लेकर गहलोत के खिलाफ महासंग्राम शुरू किया था, उन्हें अपनी सारे राजनीतिक हथियार डालकर गहलोत के पास आगे होकर आना पड़ गया.
घटनाक्रम कैसे भी चले हो, कुछ भी हुआ हो, गहलोत सरकार गिराने के लिए जिस तरह पायलट अहसाय हो गए, ठीक वैसा ही हाल भाजपा का भी था. गहलोत के द्वारा एक के बाद एक ऐसे निर्णय किए गए कि विपक्षी खेमे के होश उड़ गए.
कई राज्यों में कांग्रेस विधायकों का सहारा लेकर कांग्रेस की सरकारों को गिरा चुकी भाजपा की स्थिति तो ऐसी हो गई कि उसके नेताओं ने यह कहकर पल्ला झाडने की कोशिश कि यह कांग्रेस का अंदरूनी झगड़ा है, उसे इससे कोई लेना-देना नहीं है. यहां तक कि भाजपा ने एक बार भी नहीं कहा कि गहलोत सरकार अल्पमत में है, उसे बहुमत साबित करना चाहिए. बल्कि नहले पे देहला यह रहा कि गहलोत खुद ही बहुमत लेकर राजभवन पहुंच गए, बोले- बुलाईए विधानसभा का सत्र.
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इतनी हिम्मत कौन मुख्यमंत्री कर सकता है, वो भी तब जब उसकी पार्टी के 19 विधायक बागी हो चुके हो. यह काम देश में पहली बार गहलोत सरकार ने करके दिखाया है. गहलोत की रणनीति इतनी मजबूत रही कि भाजपा और पायलट का प्लान हर दिन बदलता चला गया. आखिर में दोनों के पास एक दूसरे से दूर होने के अलावा कोई चारा नहीं रहा.
सरकार गिराने के हथकंडों को किया एक्सपोज
इस पूरे सियासी संग्राम में जहां एक ओर मुख्यमंत्री गहलोत ने लोकतंत्र और सरकार अपनी सरकार को बचाया बल्कि विधायकों की खरीद-फरोख्त सम्बन्धी आॅडियोटेप जारी कर लोकतंत्र विरोधी मुहिम में शामिल किए जाने वाले हथकंडों को एक्सपोज भी किया. सीएम गहलोत बहुत पहले से यह बात बोलते आ रहे हैं कि देश में चुनी हुई सरकारों को गिराने का षड्यंत्र किया जा रहा है. सीएम गहलोत ने बीजेपी नेताओं यानी का बाकायदा अमित शाह का नाम लेकर बोला कि वो हमेशा सरकारें गिराने का ही सपना देखते रहते हैं, लेकिन ऐसा राजस्थान में ऐसा नहीं होगा. मुख्यमंत्री गहलोत ने पायलट से ज्यादा बड़े हमले भाजपा पर किए, कहा कि भाजपा कि खट्टर सरकार न सिर्फ कांग्रेस विधायकों की मेहमान नवाजी में लगी है बल्कि उनको हरियाणा पुलिस बल के बीच बैठा रखा है.
सीएम गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी कहा कि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकारों को गिराने की बात अच्छी नहीं है. यह नैतिक नहीं है. खुद अपना उदाहरण देते हुए बताया कि भाजपा के भैरोंसिंह शेखावत की बिमारी के मौके पर वो कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष थे. कुछ लोगों ने उनकी सरकार को ऐसे मौके पर गिराने का षड़यंत्र रचा. लेकिन खुद गहलोत ने पहल करते हुए उस षडत्रंत्र को नाकाम कर दिया. गहलोत बार-बार कहते रहे कि चुनी हुई सरकारों को गिराने की परंपरा अच्छी नहीं है. कम से कम राजस्थान में तो ऐसा किसी भी हाल में नहीं होना चाहिए. चाहे सरकार किसी की भी हो.
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वहीं मुख्यमंत्री गहलोत ने सचिन पायलट खेमे के लिए ऐसी स्थिति खड़ी कर दी कि उनके पास दो ही विकल्प बचे, या तो अपने इस्तीफे दे दें या फिर खामोशी के साथ, बिना शर्त लौटकर आ जाएं वापस. हुआ भी वही, सीएम गहलोत से नाराज होकर गए सचिन पायलट को मुख्यमंत्री पद से अशोक गहलोत को हटाने के लिए अपनी सबसे बड़ी और पहली मांग ही छोड़नी पड़ गई. इसी बात को लेकर ही तो पायलट ने बागी बनकर संग्राम शुरू किया था. लेकिन गहलोत ने उन्हें हाशिए पर ला दिया. पायलट दो दिन की और देरी कर देते दो काम होने निश्चित थे-
पहला – पायलट के 18 विधायकों का खेमा आधा रह जाता, दूसरा – बाकी बचे विधायकों की विधायकी भी जाती और 6 साल के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य भी साबित हो जाते. यानि कि पूरे राजनीतिक कॅरियर पर काफी समय के लिए प्रश्न चिन्ह लग जाता.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस राजनीतिक महा संग्राम को जीत कर साबित कर दिया कि वो अब राजनीतिक के केवल जादूगर नहीं बल्कि महा जादूगर हो गए हैं.