पॉलिटॉक्स न्यूज़/राजस्थान. देश के 7 राज्यों की 18 सीटों पर होने वाले राज्यसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही करीब-करीब सभी राज्यों में सियासत एक बार फिर गरमा गई है. पिछले 2 साल में कई राज्यों में सत्ता गंवा चुकी भारतीय जनता पार्टी अब अपनी राज्यसभा की सीटें बचाने के लिए पूरी तरह से मशक्कत में जुट गई है. यही कारण है कि गोवा, कर्नाटक और मध्यप्रदेश में जनादेश के विपरीत अपनी सरकार बना चुकी बीजेपी ने गुजरात में राज्यसभा चुनाव से पहले कुल 73 में से बचे 65 कांग्रेस विधायकों को एक बार फिर रिसोर्ट की शरण लेने पर मजबूर कर दिया है. बात करें राजस्थान की तो राज्यसभा के लिए खाली हुई तीन सीटों में आंकड़ों के हिसाब से क्लियर 2 सीटें कांग्रेस के खाते में और एक ही सीट बीजेपी के खाते में होने के बावजूद बीजेपी ने 2 उम्मीदवार मैदान में उतार कर न सिर्फ वोटिंग होना अनिवार्य कर दिया बल्कि अपने मंसूबे भी दर्शा दिए हैं.
इसके साथ ही एक लंबे अंतराल के बाद प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस में एक बार फिर से बगावत के सुर उठने शुरू हो गए हैं. कोरोनाक़ाल के कारण घीमी पड़ी राजनीति में पिछले कुछ दिनों से फिर से उछाल आया गया है. प्रदेश सरकार में नम्बर 2 की पोजिशन पर बैठे उपमुख्यमंत्री और पीसीसी चीफ सचिन पायलट खेमे के कुछ विधायकों के बगावती तेवर इस ओर इशारा करते हैं कि कहीं ना कहीं कुछ न कुछ चल रहा है. ऐसे में राज्यसभा की एक ही सीट पर दावेदारी पक्की होने के बावजूद बीजेपी द्वारा खड़े किए गए 2 उम्मीदवारों को लेकर यह अटकलें लगाई जाने लगीं या यूं कहें कि यह अफवाह फैलाई जा रही है कि राज्यसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में बगावत हो सकती है या चुनाव में क्रॉस वोटिंग के जरिए एक बड़ा झटका प्रदेश कांग्रेस को दिया जा सकता है. इन सबके विपरीत पॉलिटॉक्स का यह दावा है कि प्रदेश में ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है.
यहां सबसे पहले बात करें बगावती तेवर अपनाते हुए राजस्थान में सत्ता परिवर्तन जैसे मुंगेरीलाल के हसीन सपने की तो अब प्रदेश में ऐसा होने की सभी सम्भावनाएं क्षीण हो चुकी हैं. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि शायद कोरोनाक़ाल से पहले अगर, जैसा कि पडौसी राज्य मध्यप्रदेश में हुआ, ऐसा कुछ राजस्थान में करने की कोशिश की जाती तो शायद बमुश्किल 2% चांस थे कि तोड़-फोड़ की राजनीति में विश्वास करने वाले लोग कामयाब हो सकते थे. लेकिन कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के महासंकट के इस दौर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा उठाए गए प्रभावशाली कदमों और उनके द्वारा लिए गए फैसलों से सीएम गहलोत की प्रदेश में जो छवि बनी है, जो लोकप्रियता सीएम गहलोत ने प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में हासिल की है उसके चलते ना तो अशोक गहलोत को अब मुख्यमंत्री पद से हटाया जा सकता है और ना ही उनकी सरकार को गिराया जा सकता है.
कोरोनाकाल में कई गुना बढ़ी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की लोकप्रियता
अभी हाल ही में कोरोनाकाल के महासंकट के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की न सिर्फ तारीफ की बल्कि दूसरे राज्यों को भी उनका अनुकरण करने को भी कहा. यहां यह बात काबिले-गौर है कि पीएम मोदी ऐसे ही अपनी विपक्षी पार्टी के मुख्यमंत्री की तारीफ नहीं करेंगे. कोरोना के खिलाफ जंग में गहलोत माॅडल की सभी जगह प्रशंसा हो रही है. आज राजस्थान में कोरोना संक्रमित मरीजों की रिकवरी रेट 75 प्रतिशत से ज्यादा है, यह ही अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है. आंकडों पर गौर करें तो कोरोना के जितने मरीज प्रतिदिन आ रहे हैं, उसके लगभग दौगुने लोग ठीक होकर डिस्चार्ज किए जा रहे हैं. आज प्रदेश में 25000 से ज्यादा कोरोना टेस्ट प्रतिदिन किए जा रहे हैं और जल्द ही इसे 40000 प्रतिदिन करने का लक्ष्य रखा गया है.
यही नहीं देश में सबसे पहले लॉकडाउन लागू करने वाला प्रदेश राजस्थान ही था तो वहीं प्रवासी मजदूरों और गरीब तबके के लोगों को कैसे भी एक बार उनके घरों तक पहुंचाने के लिए पीएम मोदी के सामने सबसे पहले आवाज उठाने वाले भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही थे. मुख्यमंत्री गहलोत ने प्रवासियों के आवागमन के लिए ऑनलाइन आवेदन की व्यवस्था की जिससे लगभग 18 लाख से ज्यादा प्रवासियों को सीधा लाभ मिला. इसके साथ ही प्रदेश में आने वाले लाखों श्रमिकों को रहने, खाने, उनको घरों तक पहुंचाने और रोजगार देने तक की समुचित व्यवस्था गहलोत सरकार ने उपलब्ध करवाई. जिसके लिए श्रमिकों को उनके घर के नजदीक ही रोजगार के अवसर प्रदान करने हेतु तथा विभिन्न व्यावसायिक गतिविधियों के लिए अपेक्षित योग्य कार्मिकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए गहलोत सरकार द्वारा ‘राज-कौशल योजना‘ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म तैयार किया गया. वहीं यूपीए सरकार की सबसे बड़ी महत्वकांक्षी योजना मनरेगा के तहत प्रदेश में 13 लाख से ज्यादा बाहर से आए प्रवासियों सहित लगभग 51 लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाया जा रहा है.
यह भी पढ़ें : राजस्थान: मनरेगा ने दिया 13 लाख प्रवासी श्रमिकों सहित 50 लाख श्रमिकों को रोजगार
इन सबके अलावा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा कोरोनाकाल उठाए गए कदमों से प्रदेश भाजपा के कुछ दिग्गज नेताओं को छोड़कर ज्यादातर बीजेपी विधायक भी संतुष्ट नजर आए. हाल ही मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा प्रदेश के सभी विधायकों के साथ किए गए ऑनलाइन संवाद के दौरान करीब करीब 80 से 90% कांग्रेस-बीजेपी से सभी विधायक गहलोत सरकार के निर्णयों आए संतुष्ट नजर आए. इसके अलावा मुख्यमंत्री गहलोत ने हर वर्ग का ध्यान रखते हुए लॉकडाउन के फैसले लिए. उद्योगों व व्यापार को लॉकडाउन में शामिल करने और मुक्त करने से पहले दोनों बार प्रदेश के बड़े उद्योगपतियों से संवाद किया. इसी प्रकार धार्मिक स्थलों को लेकर सभी धर्मगुरुओं से संवाद किया गया. कोरोनाकाल में लोगों की जान की सुरक्षा के साथ-साथ प्रदेश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हर सम्भव फैसले लेकर लोगों के दिलों अपनी जड़ें जमा चुके हैं.
राजस्थान में सिंधिया या सिंधिया समर्थक बनने की कोशिश रहेगी बेकार
अब वापस असल मुद्दे पर आते हैं, कोरोनाक़ाल की शुरुआत में मार्च माह में पडौसी राज्य मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक 22 विधायकों के बागी होने के बाद वहां सत्ता परिवर्तन हो गया और प्रदेश में एक बार फिर बीजेपी की सरकार बन गई और शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री बन गए. इस राजनीतिक घटना के बाद कयास लगाए जाने लगे कि राजस्थान में भी ऐसा ही कुछ होने वाला है लेकिन कोरोना के कारण जारी हुए लॉकडाउन के चलते सब थम गया. अब जबकि करीब करीब लॉकडाउन हट गया है और राज्यसभा चुनाव की दुबारा घोषित हुई तिथियों के साथ ही एक बार फिर राजस्थान को लेकर कई तरह के कयास लगाए जाने लगे हैं.
बता दें, राजस्थान में न तो मध्यप्रदेश की तरह का सियासी समीकरण है और न ही दिग्विजय सिंह पर पूरी तरह विश्वास करके बैठने वाले कमलनाथ. यहां दूरदर्शी और राजनीति को अच्छी तरह समझने वाले अशोक गहलोत की अलग ही सियासत है. विपक्ष की हर चाल का सॉलिड तोड़ जानने वाले राजनीति के जादूगर अशोक गहलोत के चलते बीजेपी की कई कोशिशें नाकाम हो चुकी हैं. इन सबके बावजूद राजस्थान में यदि कोई सिंधिया बन भी जाता है तो उसकी सफलताओं पर बड़ा प्रश्न पहले ही लगा हुआ है. सबसे पहले तो राजस्थान में नंबर गेम भी बहुत बड़ा है, 122 विधायकों के साथ गहलोत सरकार बहुत ही मजबूत स्थिति में है. यानि अगर कोई सिंधिया की तरह की राजनीति दोहराता भी है तो गहलोत सरकार का तख्ता पलटने के लिए उसे 40 से उपर विधायकों का आंकड़ा जुटाना ही पड़ेगा, जो कि पहली नजर में मुश्किल ही नहीं बल्कि असम्भव है.
चलो मान लें कि फिर भी अगर ऐसा हो भी जाता है तो मध्यप्रदेश में सिंधिया के साथ आए विधायकों की स्थिति को समझ लेना जरूरी है. कांग्रेस छोड़कर 22 विधायकों के साथ भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया अब भाजपा के लिए ही बड़ी मुसीबत बनते जा रहे हैं. विभिन्न सर्वे रिपोर्ट में बताया जा रहा है कि यदि सिंधिया के 22 के 22 विधायकों को भाजपा से चुनाव लड़ाया जाता है तो उनमें से आधे से ज्यादा चुनाव हार जाएंगे. ऐसे में सिंधिया के इस कदम से कांग्रेस की सरकार भले ही चली गई हो लेकिन मुसीबत अब भी भाजपा पर ही नजर आ रही है. इसके साथ ही ग्वालियर चंबल की उन 16 सीटों पर भाजपा के पुराने नेताओं और सिंधिया समर्थकों के बीच वर्चस्व को लेकर घमासान मचा हुआ है जिन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा था.
यह भी पढ़ें: जिस सिंधिया ने एमपी में बनवाई सरकार उसी को लेकर अब बीजेपी पशोपेश में, इधर कुआं-उधर खाई की बनी स्थिति
यही नहीं मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार के 6 मंत्री बीजेपी में गए थे, उनमें से अब तक केवल दो को ही शिवराज सरकार में मंत्री पद मिला है. अंदरूनी कलह के चलते बीजेपी में हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि मंत्रीमंडल विस्तार ही रूका पड़ा है. खबर तो यह भी है कि सिंधिया के साथ बीजेपी में गए 22 विधायकों में से कई विधायकों को उपचुनाव में टिकट नहीं दिया जाएगा, ऐसे में यह सभी न घर के रहे और न घाट के.
क्रॉस वोटिंग का सपना भी साबित होगा ख्याली पुलाव
अब बात करें राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग की तो 27 विधायकों से क्रॉस वोटिंग कराना तब तक सम्भव नहीं है जब तक की उक्त वर्णित परिस्थितियां प्रदेश में नहीं बन जाएं, यानी कि जब तक किसी एक सिंधिया के कहने पर इतने विधायक एक साथ अपना भविष्य बिगाड़ने के लिए राजी ना हों. बता दें, राज्यसभा चुनाव के लिए चुनाव पद्धति के अनुसार कुल तीन सीटों में एक जोड़कर विधायकों की कुल संख्या यानि 200 में 4 का भाग दिया जाएगा, जिसका मान 50 आया. अब इसमें एक जोड़कर जो संख्या आती है, जीत के लिए उतने प्राथमिक वोट चाहिए यानि जीत के लिए 51 प्राथमिक वोटों की जरूरत होगी.
वर्तमान में प्रदेश विधानसभा में आरएलडी का एक और कांग्रेस के 107 विधायकों के साथ कुल 108 विधायक हैं. इस हिसाब से कांग्रेस के खाते में दो सीटें जाना पक्का है. वहीं बीजेपी के पास 72 विधायक हैं, इस तरह से एक सीट बीजेपी के खाते में जाना पक्का है. वहीं दूसरी सीट के लिए भाजपा के पास केवल 24 वोट ही बचे हैं. ऐसे में बीजेपी कांग्रेस कैंप में सेंधमारी कर 27 वोटों का इंतजाम करने के प्रयास में है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर ऐसा संभव नहीं है.
ऐसे में पॉलिटॉक्स का यह दावा है कि अव्वल में तो राजस्थान में सिंधिया जैसी बगावत होने के दूर-दूर तक कोई चांस ही नहीं है और अगर किसी भी कारण से दुर्भाग्यवश ऐसा सम्भव होता भी है तो भी अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से उनकी मर्जी के बिना हटाना असम्भव है.