Politalks.News/MP. मध्य प्रदेश में होने वाले 27 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए कांग्रेस ने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी. इसके बाद बीजेपी की ओर से भी प्रत्याशियों की सूची जारी करने के कयास तेज हो चले हैं. हालांकि लिस्ट में करीब करीब सभी नाम ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के वफादारों के ही होंगे, ये तो साफ है लेकिन दिक्कत यहां आ रही है कि सिंधिया के गढ़ के साथ अन्य इलाकों में भी सिंधिया के प्रति नाराजगी सामने आ रही है. बीजेपी के कराए गए अंदरूनी सर्वे के मुताबिक, पार्टी के पुराने प्रभारी उपचुनावों के लिए सक्रिय रूप से काम नहीं कर रहे हैं क्योंकि वे सिंधिया वफादारों से खुश नहीं हैं. पूर्व सांसद जयभान सिंह पवैया, पार्टी नेता माया सिंह और लाल सिंह आर्य कुछ ऐसे नाम सामने आ रही हैं जिनकी उपचुनावों में सक्रियता न के बराबर है जबकि ये सभी विधानसभा क्षेत्रों के प्रभारी हैं.
ऐसा नहीं है कि पार्टी के आला नेताओं को इस बात का ज्ञान नहीं है. सर्वे से पहले ही सिंधिया गुट की नाराजगी सामने आने लगी थी. इस केस में प्रेमचंद गुड्डू का उदाहरण सबसे ताजा है. 2014 में आम चुनाव हारने के बाद गुड्डू को 2018 के विधानसभा चुनावों में टिकट नहीं मिली. इससे नाराज होकर गुड्डू और उनके बेटे अजित कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए. मार्च में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ तुलसीराम सिलावट बीजेपी में शामिल हुए तो भी गुड्डू की सिंधिया और सिलावट से ठनी रही. एक पार्टी में होकर भी गुड्डू का दोनों नेताओं पर वार जारी रहा. इस पर बीजेपी ने उन्हें नोटिस थमा दिया तो गुड्डू ने फिर से हाथ का साथ थाम लिया.
कुछ इसी तरह की पसोपेश में बीजेपी के अन्य स्थानीय कद्दावर नेता भी हैं जो कांग्रेस से बीजेपी में आए नेताओं की कांग्रेसी विधारधाराओं को अब तक नहीं पचा पाए हैं. पहले भी पार्टी के पुराने के नेताओं के एक वर्ग ने पूर्व कांग्रेसी सिंधिया और उनके 22 समर्थकों के शामिल होने पर नाराजगी जताई थी. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह सहित केंद्रीय आलाकमान भी इस बात को भली भांति जानता है. ये बात भी सर्वविदित है कि उप चुनाव वाली ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में 24 सीटों में से 16 सीटों पर सिंधिया का भारी दबदबा है. यहां चुनावी प्रचार के लिए सिंधिया के साथ खुद सीएम शिवराज सिंह और केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी साथ हैं ताकि किसी भी छुटपुट विद्रोह को उभरने न दिया जाए.
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इधर, नेता खुलकर न सही लेकिन सोशल मीडिया पर अपनी सोच और विरोध इशारों इशारों में जरूर कर रहे हैं. पूर्व सांसद और एक लंबे समय के प्रतिद्वंद्वी जयभान सिंह पवैया ने सिंधिया पर एक ट्वीट किया, उस समय सिंधिया ग्वालियर शहर में थे. पवैया एक प्रसिद्ध सिंधिया आलोचक हैं और ज्योतिरादित्य और उनके पिता माधवराव सिंधिया दोनों के खिलाफ संसदीय चुनाव लड़ चुके हैं. उन्होंने पिछले महीने एक ट्वीट किया, ‘सांप के दो जीभ होती हैं और आदमी के एक, सौभाग्य से हम तो मनुष्य हैं न. राजनीति में वक्त के साथ दोस्त और दुश्मन तो बदल सक्ते हैं मगर जो सैद्धान्तिक़ मुद्दे मेरे लिए कल थे वे आज भी हैं. जय श्री राम.’ जाहिर सी बात है कि ये ट्वीट सिंधिया को लेकर था.
सांप के दो जीभ होती हैंऔर आदमी के एक , सोभाग्य से हम तो मनुष्य हैं न । राजनीति में वक्त के साथ दोस्त और दुश्मन तो बदल सक्ते हैं मगर जो सेद्धान्तिक़ मुद्दे मेरे लिए कल थे वे आज भी हैं । जय श्री राम …..@sharadjmi @BansalNewsMPCG @ZeeMPCG pic.twitter.com/zDLaDLdwk5
— jai bhan singh pawaiya (@PawaiyaJai) August 24, 2020
पवैया चुनाव अभियान समिति के सदस्य हैं, जिसे भाजपा ने 22 उम्मीदवारों की मदद के लिए बनाया है, लेकिन राज्य इकाई के सूत्रों ने उनके ट्वीट को देखते हुए कहा शायद ही उन्होंने प्रचार किया है. दिक्कत ये है कि पवैया को अब सिंधिया निष्ठावान नेता प्रद्युम्न सिंह तोमर के लिए प्रचार करना है, जो राज्य के ऊर्जा मंत्री हैं. तोमर ने 2018 के विधानसभा चुनावों में पवैया को हराया था. पवैया शिवराज सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री थे.
तोमर ने भी एक बार पवैया को ‘मेकअप मंत्री’ कहा था, क्योंकि उनके पोशाक हमेशा जूतों से मेल खाते थे. अब ऐसे में पवैया पार्टी की सौंपी गई अहम जिम्मेदारी को निभा नहीं पा रहे हैं. खबर ये भी आई है कि ग्वालियर ग्रामीण से तोमर के साथ, पवैया को सिंधिया के साथ बैठक के लिए बुलाया गया था, लेकिन बताया ये जा रहा है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आग्रह पर वे अंतिम समय पर बैठक में शामिल हुए.
भाजपा की चुनाव समिति के सदस्य और पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी भी हाटपिपलिया निर्वाचन क्षेत्र में सिंधिया के वफादार मनोज चौधरी के लिए चुनाव प्रचार नहीं कर रहे हैं. पूर्व मंत्री दीपक, 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार चौधरी से हार गए थे. दीपक ने तो यहां तक कहा, ‘हमारी स्थिति कश्मीरी पंडितों की तरह है, जो अपने ही देश में विस्थापित हो चुके हैं.’ उन्होंने कहा कि हम अपनी ही पार्टी में विस्थापित हो गए हैं. एक नई दुल्हन का स्वागत बहुत ऊर्जा के साथ किया जा रहा है लेकिन समारोह में पुरानी दुल्हन को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. पूर्व मंत्री ने कहा कि मैं सीएम और पार्टी अध्यक्ष से मिला हूं लेकिन हमारी चिंताओं का समाधान नहीं किया गया है. हमारा गौरव और भविष्य दांव पर है.
देवास जिले की अनूपपुर सीट पर पार्टी नेता रामलाल रौतेला के उम्मीदवार के लिए सक्रिय रूप से प्रचार नहीं करने की खबरें भी आ रही हैं. रौतेला ने पिछला विधानसभा चुनाव इसी सीट से लड़ा था.
अन्य भाजपा नेताओं ने भी इस मुद्दे पर अपनी भावनाओं को स्पष्ट किया है. इधर, सिंधिया निष्ठावान लोगों का कहना है कि उन्हें जीतने के लिए भाजपा के नेताओं को भी साथ लेने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन वे उन्हें विरोधी भी नहीं बनाना चाहते हैं. वहीं मुख्यमंत्री शिवराज भी कोई मौका नहीं ले रहे हैं क्योंकि थोड़ा ही सही लेकिन उन्हें भी ये पता है कि जनता की सहानुभूति कमलनाथ के साथ है और सिंधिया के लिए गुस्सा भी लोगों के मन में है. पार्टी ने प्रभात झा, गौरी शंकर शेजवार और माया सिंह जैसे सिंधिया आलोचकों को विद्रोहियों के खिलाफ प्रचार के लिए मनाने में कामयाबी हासिल कर ली है, लेकिन प्रतिरोध अभी तक बना हुआ है. अन्य भाजपा नेताओं ने भी इस मुद्दे पर अपनी भावनाओं को स्पष्ट किया है.
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वहीं बात करें इंदौर क्षेत्र की तो यहां सिंधिया अपने समर्थकों की जीत सुनिश्चित करने के लिए कैलाश विजयवर्गीय, सुमित्रा महाजन और अन्य भाजपा नेताओं पर निर्भर हैं. ग्वालियर में उनके अधिकांश विधायकों की जीत सुनिश्चित करने के लिए उनका प्रभाव ही काफी है लेकिन असंभावित उठापटक को कम करने के लिए सिंधिया लगातार भाजपा नेताओं के पास पहुंच रहे हैं.
अंदरूनी तौर पर चल रहे डेमेज को कंट्रोल करने और आगामी उप-चुनावों में जीत सुनिश्चित करने के लिए पार्टी की ओर से बीजेपी नेताओं को एकजुट होने के लिए काम करने के चेतावनी जारी की गई है. भाजपा महासचिव बीएल संतोष ने सभी विधानसभा प्रभारियों को चेतावनी जारी की है जिसमें सभी प्रभारियों को सिंधिया के वफादारों सहित सभी भाजपा नेताओं को अपनी-अपनी सीटों से जीत सुनिश्चित करने की बात कही गई है. पार्टी महासचिव ने ये भी कहा है कि अगर कोई उम्मीदवार जीतने में विफल रहता है तो विधानसभा प्रभारियों को कार्रवाई का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए.
इस चेतावनी के बावजूद पार्टी के कई पूर्व विधायक या कद्दावर नेता सिंधिया गुट के उम्मीदवारों के लिए चुनावी समर में नहीं उतर रहे हैं. कुछ के लिए तो ये भी अफवाह आ रही हैं कि वे कांग्रेस प्रत्याशियों का साथ दे रहे हैं. इन गतिविधियों को रोकने के लिए ही पिछले रविवार को चुनाव की तैयारियों का जायजा लेते हुए सीएम चौहान ने पार्टी के सांसदों और विधायकों को उनका सम्मान बना रहने की बात कही थी. मुख्यमंत्री ने कहा कि जब तक राज्य में पार्टी की सरकार है, तब तक पार्टी के सांसदों, विधायकों और पूर्व नेताओं का कद बरकरार रहेगा. इसके बाद भी पार्टी के नेता सिंधिया गुट को अब तक स्वीकार नहीं कर पाए हैं.