पॉलिटॉक्स न्यूज़/राजस्थान. राज्यसभा के लिए नामांकन वापसी के आखिरी दिन बीजेपी प्रत्याशी ओंकार सिंह लखावत द्वारा नाम वापस नहीं लिए जाने के बाद अब राजस्थान में राज्यसभा के लिए चुनाव होना सुनिश्चित हो गया है. जानकारों की मानें तो बीजेपी ने कांग्रेस के राज्यसभा प्रत्याशियों की घोषणा के बाद सम्भावित आंतरिक कलह के चलते क्रॉस वोटिंग को अपनी जीत का आधार मानते हुए लास्ट समय में बीजेपी के वरिष्ठ नेता ओंकार सिंह लखावत को प्रत्याशी बनाया है. बीजेपी का भ्रम है कि कांग्रेस ने एक सीट पर सचिन पायलट की पसंद के उम्मीदवार को नहीं उतार कर अशोक गहलोत की पसंद नीरज डांगी को टिकट देकर उसकी (बीजेपी) राह आसान कर दी है और एक ओर जिस तरह मध्यप्रदेश में सिंधिया की नाराजगी के चलते वहां कमलनाथ सरकार संकट में आ गई है, ऐसा ही कुछ पायलट की नाराजगी के चलते राजस्थान में या कम से कम राज्यसभा चुनाव में वो (बीजेपी) कामयाब हो जाएगी. जबकि पॉलिटॉक्स का मानना है कि राजनीति के जादूगर माने जाने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बहुत समझदारी और कूटनीतिपूर्ण निर्णय लेते हुए ऐसी विषम परिस्थितियों में जानबूझ कर नीरज डांगी को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया है.
‘मध्यप्रदेश तो झांकी है राजस्थान अभी बाकी है‘, ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में शामिल हो जाने के बाद से देश के राजनीतिक गलियारों में, तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इसी तरह की चर्चाओं ने जोर पकड़ा है. इन चर्चाओं को उस समय और भी बल मिल गया जब राजस्थान से राज्यसभा की दो सीटों पर प्रत्याशियों के लिए केसी वेणुगोपाल और नीरज डांगी के नामों की घोषणा हुई. घोषणा के बाद माना जाने लगा कि डांगी के नाम की घोषणा से प्रदेश के उपमुख्यमंत्री व पीसीसी चीफ खासे नाराज हैं और अब पायलट भी सिंधिया की राह पर चल सकते हैं, क्योंकि पायलट इस सीट से अपने उम्मीदवार कुलदीप इंदौरा को टिकट देना चाहते थे, जबकि नीरज डांगी के नाम की सिफारिश मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने थी. इसी के चलते बीजेपी ने भी यह गलतफहमी पाल ली और आनन-फानन में दूसरी सीट पर बीजेपी के दिग्गज नेता ओंकार सिंह लखावत को उम्मीदवार घोषित कर दिया. जबकि एक सीट पर बीजेपी ने पहले ही जोधपुर निवासी राजेन्द्र गहलोत को उम्मीदवार घोषित कर दिया था.
अब यहां गौर फरमाने वाली बात यह है कि मौजूदा राजनीतिक हालातो के बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी सखा सचिन पायलट द्वारा दिए गये नाम कुलदीप इंदौरा को टिकट क्यों नहीं दिया गया? वहीं सिंधिया के बीजेपी में चले जाने के बाद जब सारे देश की निगाहें राजस्थान और पायलट पर हैं ऐसी स्थिती में भी पार्टी द्वारा पायलट की पसंद को दरकिनार क्यों किया गया? जबकि राजस्थान में सचिन पायलट की स्थिति भी कमोबेश मध्यप्रदेश के ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसी ही है.
दरअसल, इसके पीछे राजनीति में दूरदृष्टिता रखने वाले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बहुत सोची समझी रणनीति है. मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में नीरज डांगी को मैदान में उतारकर राजनीति के जादूगर ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं, ऐसे माहौल में अगर सचिन पायलट के द्वारा दिए गये कुलदीप इंदौरा के नाम पर मुहर लगती तो सीधा-सीधा सन्देश जाता कि कांग्रेस डर गई है. ऐसे में फिर विपक्ष और ज्यादा हावी हो जाता. वहीं मुख्यमंत्री गहलोत ने नीरज डांगी को टिकट देकर यहां एक क्लियर संदेश भी बीजेपी को दे दिया कि यह मध्यप्रदेश नहीं है, यह राजस्थान है और यहां कांग्रेस एक है. यहां मुख्यमंत्री गहलोत की सोच खुद को ऊंचा और किसी को नीचा दिखाने की नहीं रही है, बल्कि विपक्ष को करारा जवाब देते हुए पूरी कांग्रेस का मनोबल बढ़ाने का रहा है.
वहीं, राजनीति में परिपक्व सोच रखने वाले पीसीसी चीफ सचिन पायलट ने भी शायद इस बात को समझ लिया और इस निर्णय का उन्होंने कोई विरोध नहीं किया बल्कि मंगलवार को सचिवालय में पत्रकारों के सवाल के जवाब में पायलट ने पूरे उत्साह के साथ जवाब दिया कि बीजेपी की मंशा चुनाव करवाने की है तो करवा लें चुनाव, विधानसभा में हमारे वास मतबूत बहुमत है और कांग्रेस की जीत निश्चित है. इस समय सचिन पायलट की बॉडी लैंग्वेज से कहीं भी यह भाव नहीं छलक रहा था कि उनके मन में राज्यसभा उम्मीदवार को लेकर किसी प्रकार की कोई टीस है.
वहीं, ऐसा भी नहीं है कि कांग्रेस आलाकमान द्वारा सचिन पायलट की बात को तवज्जो नहीं दी जाती हो. इससे पहले प्रदेश की राजनीति में कई ऐसे मौके आए जब आलाकमान ने पायलट की बात का मान रखा है, फिर चाहे वो निकाय चुनावों के लिए बनाए गए हाईब्रीड फॉर्मूले का मामला हो या कोटा के अस्पताल में हुई नवजात बच्चों की मौत का मामला हो. वहीं हाल ही में नागौर में दलित युवकों के साथ हुई बर्बरतापूर्ण पिटाई और गुप्तांग में पेट्रोल डालने का मामला हो, आलाकमान ने हमेशा पायलट को जिम्मेदारी दी है. अगर आलाकमान की नजरों में जरा भी पायलट का कद कम होता तो क्या उन्हें इस तरह तवज्जो मिलती.
हालांकि प्रदेश के बीजेपी नेताओं में अभी भी यही भ्रम है कि सचिन पायलट की नाराजगी के चलते राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग राजस्थान में भी हो सकती है. इसी मौके को भुनाने की जुगत में लगी बीजेपी ने अपने दूसरे उम्मीदवार ओंकार सिंह लाखावत को अंतिम क्षण में मैदान में उतारा. बीजेपी नेताओं की कोशिश है कि कांग्रेस नेताओं की आपसी फूट का येन केन प्रकारेण फायदा उठाकर प्रदेश से दो नेताओं को राज्यसभा भेजा जाए. इसी के चलते आज नामांकन वापसी के आखिरी दिन भी लखावत ने अपना नाम वापस नहीं लिया है. लेकिन बीजेपी के मंसूबे यहां साफ होते नजर नहीं आ रहे है.
वहीं सूत्रों की मानें तो नीरज डांगी को टिकट दिए जाने का दूसरा कारण यह भी है कि डांगी निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा के राजनीतिक शत्रु माने जाते हैं. डांगी और संयम लोढा एक ही जिले से अपने राजनीतिक वर्चस्व की लडाई लडते रहे हैं. दोनों को ही एक दूसरे का राजनीतिक शत्रु माना जाता है. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि नीरज डांगी के तीन विधानसभा चुनाव हारने के पीछे सबसे बडा कारण संयम लोढा रहे हैं. वैसे तो संयम लोढ़ा कट्टर गहलोत समर्थक बताए जाते हैं लेकिन पिछले दिनों से संयम लोढ़ा सदन में लगातार सरकार के खिलाफ लगातार अपनी आवाज उठा रहे हैं. राजनीतिक पंडितों की मानें तो लोढ़ा को थोड़ा टाइट करने के चलते सीएम गहलोत ने संयम लोढ़ा के राजनीतिक शत्रु नीरज डांगी को मैदान में उतारा है. अब ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि संयम लोढ़ा अपने इक्के-दुक्के विधायकों के साथ मिलकर बीजेपी के पक्ष में मतदान कर सकते हैं. लेकिन उससे कांग्रेस के पास मौजूद भारी भरकम बहुमत पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
बहरहाल, राजनीति के जादूगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने यहां पूर्ण समझदारी के साथ नीरज डांगी को टिकट देकर एक बडा पॉलिटिकल मैसेज पूरे विपक्ष को दे दिया है कि राजस्थान में सब कुछ ठीक है. राजस्थान में कांग्रेस एक है और यहां के राजनीतिक हालात मध्यप्रदेश जैसे नहीं है.