बिहार विधानसभा चुनावों में अब केवल एक पखवाड़े का वक्त शेष है. इस बीच हो रही करीब करीब सभी चुनावी रैलियों में भारतीय जनता पार्टी सहित एनडीए के नेताओं को ‘जंगलराज’ का मुद्दा उठाते देखा जा रहा है. फिर चाहें खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह या फिर खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, सभी की जुबां पर एक ही लाइन है ‘राजद सत्ता में आई तो बिहार में ‘जंगलराज’ की वापसी होगी. यह भी काबिले गौर है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार की सत्ता को पूरे 20 साल यानी दो दशकों का समय बीच चुका है लेकिन बिहार के हालातों में कोई खास बदलाव नहीं आ पाया है.
अगर बात करें युवा वोटर्स की तो उन्होंने तो इस जंगलराज को देखा तक नहीं. ऐसे में इस बार चुनावी माहौल में इस नैरेटिव का कितना असर पड़ेगा, फिलहाल कहना थोड़ा मुश्किल है.
बिहार के पौने दो करोड़ मतदाता जंगलराज से अंजान
बिहार में कुल मतदाताओं की संख्या 7 करोड़ 41 लाख 92 हजार 357 है. इनमें 18 से 29 साल के मतदाताओं की संख्या एक करोड़ 77 लाख 26 हजार 764, 30 से 39 साल के 1 करोड़ 92 लाख 74 हजार 808 और 40 से 49 साल के 1 करोड़ 57 लाख 88 हजार 312 है. यानी प्रदेश में करीब 23% वोटर ऐसे हैं जो 1995 या उसके बाद पैदा हुए हैं. जाहिर हैं इन मतदाताओं की स्मृति में लालू प्रसाद यादव का वह शासन नहीं है जिसकी याद एनडीए के नेता बार-बार दिलाते हैं. सीधा सीधा भी देखा जाए तो बिहार के 1.77 करोड़ वोटर ऐसे हैं जिन्होंने उस 1990 से 2005 के लालू-राबडी शासन को देखा या समझा ही नहीं, जिसे जंगलराज बताया जा रहा है. वहीं अधिकतर ने नीतीश कुमार के शुरुआती शासन का दौर भी नहीं देखा जिसे सबसे बेहतर काल माना जाता है. ऐसे में उन पर इस नैरेटिव का असर पड़ना मुश्किल है.
यह भी पढ़ें: बिहार में 30 साल सत्ता से दूर मृतप्राय: कांग्रेस को संजीवनी दे पाएंगे गहलोत!
वहीं 50 से 59 साल के 1 करोड़ 4 लाख 96 हजार 400 वोटर हैं. 60 से 69 साल के 66 लाख 26 हजार 725 है. 70 से 79 साल के 32 लाख 63 हजार 230 मतदाता हैं. 80 साल से अधिक उम्र के 10 लाख 61 हजार 118 मतदाता हैं. इन सभी को लालू का राज और सुशासन बाबू का कथित काज याद है.
दो दशकों में बेरोजगारी-गरीबी का मुद्दा जस का तस
पिछले दो दशकों में यानी साल 2005 से 2025 तक बिहार में नीतीश कुमार की सत्ता रही है. इन 20 सालों में नीतीश 9 बार मुख्यमंत्री बने हैं. यानी उन्होंने दल कई बार बदले हैं, कभी बीजेपी के साथ तो कभी लालू के साथ. पिछली सत्ता में तो उन्होंने बीजेपी, फिर राजद और फिर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई है. सत्ता एक ही हाथ में रही लेकिन इन 20 सालों में बिहार अभी भी गरीब और बेरोजगार प्रदेश माना जाता है. पिछले 20 सालों में बिहार का चुनावी मुद्दा बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और गरीबी का ही रहा.
राजद मुद्दे उठा रही, बीजेपी जंगलराज तक सीमित
वर्तमान विस चुनाव में राजद और कांग्रेस मिलकर बेरोजगारी का मुद्दा जोर शोर से उठा रही है. महागठबंधन के सीएम फेस एवं राजद नेता तेजस्वी यादव ने तो सत्ता मिलने पर प्रत्येक युवा को रोजगार देने तक का ऐलान कर दिया है. वहीं बीजेपी और एनडीए अभी भी ‘जंगलराज’ के फेर में ही फंसी हुई है. खुद पीएम मोदी भी बिहार में सुशासन की जगह केवल और केवल लालू-राबड़ी के कथित जंगलराज तक ही सीमित रहे हैं. यद्दपि युवा वोटर्स के मन में केवल रोजगार और पढ़ाई का मुद्दा है, जो इस चुनावी माहौल से करीब करीब नदारद है. ऐसे में कथित सुशासन और जंगलराज की इस जंग में युवा किस ओर पलटी मारता है, देखने वाली बात होगी.



























