Bihar Politics: नीतीश कुमार ने रविवार को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और उसी दिन फिर से सीएम की कुर्सी पर विराजमान हो गए. अंतर केवल इतना है कि पहले बिहार में राजद.कांग्रेस.जदयू की गठबंधन सरकार थी और अब जदयू.बीजेपी की मिली जुली सरकार है. जदयू और बीजेपी का बिहार में 17 साल का गठजोड़ रहा है लेकिन नीतीश ने उसे तोड़कर राजद से नाता जोड़ा था. अब एक बार फिर बीजेपी की ओट में आ गए हैं. यहां बीजेपी ने नीतीश को तोड़कर दो अहम निशाने साधे हैं. पहला बिहार में सरकार बनाने के साथ लोकसभा में राजद और कांग्रेस को कमजोर कर दिया है. वहीं विपक्षी एकता के सूत्रधार को मिलाकर यह गठबंधन हमेशा के लिए खत्म कर दिया है. हालांकि इस कहानी का लेखाकार नीतीश कुमार नहीं बल्कि जीतनराम माझी है जिन्होंने एनडीए का सिपेसालार बनकर इस ताने बाने को बुना है.
बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके जीतनराम माझी कभी नीतीश कुमार की पार्टी के सदस्य रहे थे. 2014 के लोकसभा चुनावों में करारी शिख्स्त के बाद नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर पार्टी के ही जीतनराम माझी को 20 मई 2014 में सीएम की कुर्सी पर बिठाया लेकिन केवल नौ महिने बाद ही उन्हें कुर्सी खाली करने को बोला गया. माझी के मना करने पर उन्हें जबरन सीएम पद से हटाया गया. माझी ने पार्टी छोड़कर हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा पार्टी बनाई और उनके सहित चार विधायक विधानसभा में बैठे हैं. ‘हम’ पार्टी एनडीए की साथी है.
मांझी की पार्टी के पास भले ही 4 विधायक हों लेकिन एनडीए सरकार में मांझी ही वो ‘कुशन’ हैं जो नई सरकार को स्थिरता के साथ चलने में मदद करेंगे. मांझी की अहमियत छक्. और महागठबंधन दोनों समझते हैं. इतना ही नहीं, सूत्रों से खबर आ रही है कि लालू यादव ने मांझी को मुख्यमंत्री पद के समेत दूसरे तमाम ऑफर देकर महागठबंधन में आने का प्रस्ताव दिया था. हालांकि माझी ने इसे दरकिनार कर दिया. हालांकि ऐसा भी क्या है माझी में कि उनकी इतनी पूछ हो रही है.
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दरअसल माझी बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री रहे हैं. बिहार में काफी बड़ा हिस्सा इसी समुदाय से आता है जिन पर माझी की पकड़ है. माझी 1980 से राजनीति में हैं और कांग्रेस, जनता दल, राजद, जदयू सहित घाट घाट का पानी पी चुके हैं. सभी से उनके संबंध अच्छे हैं और माझी बिहार में सबसे बड़ा दलित चेहरा भी हैं.
बीजेपी के हाथों से गठबंधन सरकार जाने के बाद नीतीश के लिए बीजेपी के रास्ते खुलवाने की जिम्मेदारी भी जीतनराम माझी के कंधों पर थी. इसके बाद नीतीश कुमार से गुप्त मंत्रणा भी माझी के कहने पर ही हुई थी. इसका ईनाम भी माझी को मिला है. नई सरकार में बनने वाले 8 मंत्रियों में से मांझी के बेटे संतोष सुमन को भी मंत्री बनाया गया है.
खैर, जीतनराम माझी की राजनीति से अब सभी वाकिफ हो चुके हैं. आगामी लोकसभा चुनाव में माझी अपनी पार्टी की ओर से 2 से अधिक सीटें मांग रहे हैं. नीतीश को वापिस लाने और सरकार बनाने का ईनाम उन्हें मिल सकता है. सोचना गलत न होगा कि अगर अगली सरकार बनी तो उनके खेमे से मंत्रियों की संख्या में इजाफा होना तय है.