बिहार चुनाव: 75 सालों का रिकॉर्ड टूटा, फिर ऐसा हुआ तो जाएगी नीतीश की सत्ता?

दूसरे चरण में भी बंपर वोटिंग होने का पूर्वानुमान, 14 को आएगा मतदान का परिणाम जो तय करेगा बिहार की नई दशा और दिशा, अलग अलग आ रहे विशेषज्ञों के मत

why bunper voting in bihar assembly elections 2025
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बिहार विधानसभा चुनावों में आज का दिन बेहद खास रहने वाला है. रविवार को चुनाव प्रचार का अंतिम दिन है, जिसके चलते विभिन्न राजनीतिक पार्टियां रैलियों एवं सभाओं में जान लगाने वाली है. शाम 5 बजे चुनाव प्रचार बंद होगा और फिर घर घर जाकर मान मनुहार का दौर शुरू होगा. 11 नवंबर को सुबह 8 बजे से मतदान प्रक्रिया शुरू होनी है. उससे भी पहले गौर करने वाली बात ये है कि पहले चरण के मतदान में देश में 75 वर्षों का रिकॉर्ड टूटा है. ये निश्चित तौर पर सत्ता परिवर्तन के संकेत हैं और नीतीश सरकार के रिपीट करने की संभावनाओं पर गहरा आघात साबित हो सकता है.

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बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण ने मतदान के मामले में नया रिकॉर्ड बनाया है, जिसमें 64.66% वोटिंग दर्ज की गई. यह अब तक का सबसे हाईएस्ट वोटिंग परसेंटेज है, जो 2014 की ‘मोदी लहर’ और 1998 के रिकॉर्ड वोटिंग के दौर से भी आगे है. बिहार विधानसभा चुनावों में इस बार का मतदान प्रतिशत 1951 से अब तक का सर्वाधिक है. यह 2000 के विधानसभा (62.57%) और 1998 के लोकसभा चुनाव (64.6%) दोनों को पीछे छोड़ गया.

38 लाख युवा मतदाता करेंगे फैसला

आंकड़ों के मुताबिक, इस बार लगभग 38 लाख नए मतदाता पहली बार वोट डालने पहुंचे. यह युवा वर्ग काफी उत्साहित दिखाई दिया. इसके अलावा महिला मतदाताओं की भूमिका भी लगातार मजबूत हो रही है. राजनीतिक विशेषज्ञों का एक धड़ा इसे नीतीश कुमार की कथित विकास नीतियों और युवाओं में पीएम मोदी की छवि को देखते हुए माना जा रहा है. वहीं नीतीश सरकार में महिलाओं को 10,000 रुपये देने और पेंशन को बढ़ाकर 1,100 रुपये करने का फैसला एक महत्वपूर्ण कारक हो सकता है. वहीं अगर पूर्वानुमानों पर गौर करें तो मतदान प्रतिशत का बढ़ना ‘एंटी इनकंबेंसी’ की ओर इशारा करता है.

बंपर वोटिंग ने खड़े किए कई सवाल

बिहार में इस बार हुई बंपर वोटिंग ने राजनीतिक हलकों में कई सवाल खड़े कर दिए हैं. पहली नजर में 60% से अधिक मतदान को लोग बदलाव की इच्छा के रूप में देख रहे हैं. हालांकि बिहार के बारे में एक्जिट पोल के पूर्वानुमान भी पिछले दो से दिन चुनावों में गलत ही साबित हुए हैं. पहले के चुनावों में 1967, 1980 और 1990 में वोटिंग प्रतिशत बढ़ा और सत्ता परिवर्तन हुआ. परंतु हाल के वर्षों में यह धारणा काफी हद तक बदल चुकी है. अब अधिक मतदान का मतलब यह भी हो सकता है कि जनता सरकार के पक्ष में वोट डाल रही हो यानी ‘प्रो इनकंबेंसी’ ट्रेंड, जिसमें पहली बार वोटिंग करने वाले युवाओं की संख्या अधिक होती है.

वहीं एसआईआर के दौरान बिहार से करीब 65 लाख फर्जी या दोहराए गए नाम हटा दिए गए और करीब 14 लाख नए मतदाता जोड़े गए. इसके चलते मतदाताओं की कुल संख्या घटी, जिससे प्रतिशत के हिसाब से मतदान बढ़ा हुआ दिख रहा है. यानी वास्तविक वोटों की संख्या में बहुत बड़ा उछाल नहीं है, बल्कि वोट डालने वालों का अनुपात ज्यादा दिखा है.

वजह जो भी हो लेकिन राज्य में विगत 20 वर्षों से नीतीश की सरकार कायम है. राज्य की जनता ने नीतीश के काम को अब भली भांति देख लिया है. हालांकि इस बार भी सत्ता की चाबी का रास्ता फस्ट टाइम वोटर्स और महिला मतदाताओं के बीच होते हुए जाता है. विशेषज्ञों का मानना तो यही है कि अगर अगले चरण में इसी तरह की बंपर वोटिंग होती है, जो लग भी रही है तो नीतीश की सत्ता का जाना करीब करीब तय होगा.

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