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देश के सबसे बड़े सियासी सूबे उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा झटका लग सकता है. सियासी गलियारों से खबर आ रही है कि आम चुनावों से पहले बसपा में सबसे बड़ी टूट सामने आ रही है. पिछली बार 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा के चिन्ह पर जीतने वाले 10 सांसद मायावती का साथ छोड़ सकते हैं. बसपा के सभी सांसद दूसरे दलों का दामन थाम सकते हैं. प्राप्त जानकारी के अनुसार, बसपा के सभी सांसदों पर बीजेपी, सपा और कांग्रेस की नजरें गढ़ी है. मायावती की पार्टी के 4 सांसद बीजेपी, तीन-तीन सांसद सपा और कांग्रेस के संपर्क में बताए जा रहे हैं.

मायावती का रूख भांपते हुए सांसदों में हलचल तेज है. जौनपुर से श्याम सिंह यादव, लालगंज सीट से संगीता आजाद, अंबेडकर नगर से रितेश पांडे्य, श्रावस्ती से राम शिरोमणि, बिजनौर से मलूक नागर, अमरोहा से कुंवर दानिश अली, सराहनपुर से हाजी फजलुर रहमान, नगीना से गिरीश चंद्र जाटव, घोसी से अतुल कुमार राय और गाजीपुर से अफजाल अंसारी अभी बसपा से सांसद हैं.

बीजेपी का मिशन एससी महाप्लान

भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव से पहले ओबीसी से लेकर दलित वोटर्स साधने को लेकर बड़ी तैयारी कर रही है. यूपी की आबादी का 20 प्रतिशत हिस्सा अनुसूचित जाति का है और इसमें से बड़ा हिस्सा बसपा के पास है. अब बसपा यूपी में पहले की तरह मजबूत नहीं है. वहीं पार्टी ने राज्य की सभी 80 सीटों पर बिना गठबंधन चुनाव लड़ने की बात कही है. दूसरी ओर, बीजेपी लंबे समय से दलित वोट बैंक में जनाधार बढ़ाने की कोशिश कर रही है. ऐसे में बीजेपी को इसका फायदा हो सकता है.

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2019 आम चुनाव में बीजेपी ने 62 सीटों पर विजयश्री हासिल की है. इस बार पार्टी का लक्ष्य 70 सीटों के पार जाना है. इसके लिए बसपा के वोट उन्हें काफी अहम हो गए हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा के दलित वोटर्स की संख्या में भारी गिरावट आई है. बसपा को 2019 के आम चुनाव में 19.43 फीसदी वोट मिलते थे लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में यह जनाधार घटकर 13 फीसदी रह गया.

बीजेपी का राष्ट्रीय सम्मेलन आगरा में

भारतीय जनता पार्टी के अनुसूचित जाति मोर्चा का राष्ट्रीय सम्मेलन मार्च में आगरा में हुआ. इसमें बीजेपी के नेता, केंद्र के मंत्री और दूसरे राज्यों के नेता शामिल हुए. पश्चिमी यूपी में एससी मतदाताओं की बड़ी संख्या को देखते हुए ही आगरा को चुना गया है, जहां पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा का अच्छा प्रदर्शन था. अगर इस बार बसपा के साथ कोई गठबंधन नहीं हुआ तो बसपा के ज्यादातर वोटर किसी और को चुनने की मंशा रखते हैं. ऐसे में बीजेपी खुद को उनके लिए सबसे अच्छा विकल्प मानती है.

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