पॉलिटॉक्स ब्यूरो. नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में विपक्ष की सांझा बैठक में जाने से बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जाने से मना कर दिया. ये बैठक 13 जनवरी को होनी है जिसमें लेफ्ट पार्टियों के साथ कांग्रेस भी हिस्सा ले रही है. इस बैठक में तमाम विपक्षी पार्टियों को बुलावा भेजा गया है. लेकिन ममता दीदी ने वामदलों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि जिनका राज्य में कोई राजनीतिक अस्तित्व नहीं है, वे हड़ताल की सस्ती राजनीति कर राज्य की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं कांग्रेस पर लेफ्ट पार्टियों के साथ मिलकर सीएए के मुद्दे पर ‘डर्टी पॉलिटिक्स’ करने का आरोप लगाया. ममता ने कहा कि कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां इस मुद्दे पर डर्टी पॉलिटिक्स कर रही हैं. वो नागरिकता कानून के खिलाफ अकेले लड़ाई लड़ेंगी.
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बता दें, लंबे समय से पश्चिम बंगाल सीएम नागरिकता कानून और एनआरसी का विरोध कर रही है. अब वे शुक्रवार से सीएए के विरोध में अनिश्चितकालीन धरने पर उतर रही हैं. उनकी तृणमूल पार्टी के नेता और सैंकड़ों कार्यकर्ता भी इस विरोध आंदोलन में अपनी सहभागिता अदा करेंगे. पार्टी नेताओं के अनुसार, जब तक केंद्र की मोदी सरकार सीएए को वापिस नहीं लेती, धरना अनवरत चलता रहेगा.
इससे पहले बंगाल की बीजेपी इकाई ने बुधवार को बंगाली भाषा में एक बुकलेट निकाल साफ साफ घोषणा की है कि नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के बाद एनआरसी को देशभर में लागू किया जाएगा. 23 पन्नों के इस बुकलेट में कई सवालों के जवाब दिए गए हैं. बुकलेट जारी करने के पीछे CAA और NRC को लेकर लोगों के बीच फैले भ्रम को दूर किए जाने की एक कोशिश मात्र बताया जा रहा है. पुस्तिका में यह भी कहा गया है कि हिंदू धर्म के किसी विदेशी व्यक्ति को डिटेंशन सेंटर में नहीं रहना होगा. इस बात का भी जिक्र है कि इस समय में असम और पश्चिम बंगाल में करीब दो करोड़ घुसपैठी मौजूद हैं और इन्हें चिन्हित कर बीजेपी देश से बाहर निकालेगी.
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गौरतलब है कि हाल में केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून को पारित कराया है जिसके अनुसार पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में रह रहे छह अल्पसंख्यक समुदायों (हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और सिख) से ताल्लुक़ रखने वाले लोगों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी. इन तीन मुस्लिम प्रधान देशों में अल्पसमुदायों पर हो रही प्रताड़ता से बाहर निकालने के लिए ये कानून बनाया गया है ताकि इन्हें भारत में बतौर शरणार्थी नहीं बल्कि नागरिक बनाया जा सके.
इस कानून में मुसलमानों का जिक्र न होने की बात पर विपक्ष हंगामा मचा रहा है और कानून को भारत के मूलभूत संवैधानिक सिद्धांत के विरुद्ध होने की बात कहकर घेर रहा है. विपक्ष के अनुसार, सीएए भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 में दिए गए मौलिक अधिकार समानता के अधिकार का उल्लंघन और मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव किया जा रहा है. जबकि केंद्र सरकार का कहना है कि मुस्लिम विश्व के 16 अलग अलग देशों में शरण ले सकता है लेकिन हिंदूओं के लिए केवल यही एक देश है.