पाॅलिटाॅक्स ब्यूरो. दिल्ली विधानसभा चुनाव का परिणाम लगभग आ गया है, जनता ने शाहीनबाग, हिंदूवाद, राष्ट्रवाद सहित दूसरे सभी मुददों को सिरे से नकारते हुए भारतीय जनता पार्टी को आइना दिखा दिया है. दिल्ली की जनता ने एक बार फिर से अरविंद केजरीवाल को चुनकर स्पष्ट कर दिया है कि जनता को फालतू बकवास नहीं बल्कि अपने बच्चों के लिए अच्छे शिक्षण संस्थान चाहिएं, स्वास्थ्य के लिए अच्छा इलाज और हाॅस्पिटल चाहिए. महंगाई से जूझ रहे लोग बिजली, पानी और महंगे यातायात साधनों में राहत चाहते हैं. आम आदमी के लिए यह सब बहुत जरूरी है. जब देश के चंद उद्योगपतियों को केंद्र सरकार 2 लाख करोड से अधिक रूपए की रहात दे सकती है तो फिर अब सरकारों को महंगाई और बेराजगारी से जूझ रही जनता के लिए भी सोचना ही होगा.
जैसा पॉलिटॉक्स ने पहले भी कहा था दिल्ली का चुनाव पूरे देश की राजनीति की नई दिशा तय करेगा, तो आज आए दिल्ली चुनाव के परिणामों ने यह साफ कर दिया है कि देश की सभी राजनीतिक पार्टियों को अपने एजेंडे बदलकर विकास के माॅडल पर अपना ध्यान केंद्रित करना ही पड़ेगा. अब सिर्फ भाषणों से काम नहीं चलेगा बल्कि युवाओं को रोजगार और गरीब व मध्यम वर्ग के लिए आर्थिक समाजिक सुरक्षा की बडी योजनाओं पर काम करना ही पडेगा. देश में लगातार बढ रही महंगाई पर नियत्रण के लिए बडी योजनाओं को सख्ती से लागूू करना होगा. देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ योजनाएं बनानी ही होंगी.
अरविंद केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में बन रहेे कई बडे ब्रिजोें की लागत राशि को 350 करोड से घटाकर 200 करोड तक पहुंचा दिया. यही नहीं उनके निर्माण कार्यों की हर दिन माॅनिटरिंग की गई. इस तरह जनता का करोड़ों रूपया बचाया. ऐसा ही अब देश के हर राज्य में होना चाहिए. आर्थिक विशेषज्ञ कहते हैं कि विकास की हर योजना की 20 से 40 प्रतिशत राशि भ्रष्टाचार के भेंट चढ जाती है, जिससे विकास का स्तर घटिया हो जाता है. ऐसे में एक ही सडक का कई बार निर्माण करना पड जाता है.
जनता ने अरविंद केजरीवाल को ऐसे ही नहीं चुन लिया, जनता ने देखा कि किस तरह केजरीवाल 2015 में चुनाव जीतने के बाद 3 साल तक एलजी आॅफिस के चक्कर लगाते रहे. केजरीवाल के हर विकास की योजना पर किसी न किसी तरह राजनीतिक ग्रहण लगता रहा. केजरीवाल को धरना देना पड़ा, एलजी आॅफिस में डेरा डालना पड़ा. दाद देनी पडेगी केजरीवाल के जज्बे की, जनता के प्रति समर्पण की. साथ ही भला हो देश की सुप्रीम कोर्ट का जिसने दिल्ली सरकार के कामों की स्पष्ट गाइड लाइन तय करी. दिल्ली की जनता ने यह सबकुछ देखा साथ ही देखी केंद्र सरकार और भाजपा की भूमिका भी, अगर साफ नीयत होती तो जनता नरेन्द्र मोदी जैसे विराट नेतृत्व को नकार कर अरविंद केजरीवाल की नीतियों को इतने बडे जनादेश से नहीं नवाजती.
चुनाव घोषणा के दिन से ही भाजपा के पास दिल्ली चुनाव लडने के लिए न तो कोई चेहरा था और न ही मुददे. जबकि भाजपा अच्छी तरह से जानती थी कि 2015 में पूरे देश में चल रही मोदी लहर के बीच दिल्ली की जनता ने भाजपा को नकारा दिया था. भाजपा के पास पूरे पांच साल थे, अपने आपको जनता के नजदीक लाने के लिए, उनके विकास के लिए अहम भूमिका निभाने का पूरा समय था. दिल्ली की जनता को एक विजन वाला मुख्यमंत्री का चेहरा देने के लिए भी पर्याप्त समय था. लेकिन केंद्र की सत्ता के नशे में चूर भाजपा ने इस सारे समय को खो दिया.
यह कोई चमत्कार नहीं है और न ही फ्री की योजनाओं का जादू है. बल्कि दिल्ली की जनता ने गहराई से महसूस किया कि केजरीवाल की सरकार उनकी तकलीफ और परेशानियों को न सिर्फ समझ रही है बल्कि उन्हें निजात दिलाने के लिए कदम भी बढ रही है. केजरीवाल ने सरकारी स्कूलों की दशा बदली तो बच्चों के भविष्य की दिशा बन गई. सरकारी स्कूलों का रिजल्ट 97 प्रतिशत होना बहुत बडी बात है.
देश भर की राज्य सरकारें स्कूल चला रहीं हैं, क्या हालत है उन स्कूलों की. कई राज्यों के स्कूल तो 40 प्रतिशत का भी रिजल्ट नहीं दे पा रहे हैं. केजरीवाल ने स्कूलों को आधुनिक बनाया, शिक्षा प्रबंधन में क्रांतिकारी बदलाव किए. इतना ही नहीं प्राइवेट स्कूलों की फीस भी पांच साल में एक बार भी नहीं बढने दी.
यही नहीं अरविंद केजरीवाल ने ऐसा ही चुनौती भरा काम मोहल्ला क्लीनिक खोलने के काम में करके दिखाया. हर तरह का इलाज बिल्कुल मुफत और वो भी सबके लिए समान रूप से, किसी खास गरीब तबके के लिए नहीं, बल्कि सबके लिए. केजरीवाल सरकार कहती है कि यह मूलभूत आवश्यकता है, इसके लिए कोई तबका निर्धारित करने की जरूरत ही नहीं है. इसी के कारण मोदी सरकार की आयुष्मान भारत योजना को दिल्ली की जनता ने गंभीरता से ही नहीं लिया. क्योंकि उसका लाभ सबको न मिलकर एक विशेष तबके को ही मिलने वाला था.
खैर, बात करें रणनीति की तो आखिरकार वही हुआ जो अरविंद केजरीवाल चाहते थे, दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए सबकुछ केजरीवाल ने तय किया. केजरीवाल की रणनीति बहुत खास रही. केजरीवाल ने चुनाव के सारे मुददे खुद तय किए खास बात यह रही कि चुनाव उन्हीं मुददों पर हुआ जो केजरीवाल ने तय किए थे.
वहीं इन मुददों से हटने वाली भाजपा धाराशाही हो गई. कांग्रेस तो चुनाव के पहले दिन से ही कहीं भी रेस में नजर नहीं आई. भाजपा ने शाहीनबाग के नाम पर राष्ट्रवाद खडा कर चुनाव को हिंदू मुसलमान का चुनाव बनाने का प्रयास किया लेकिन भाजपा के चाणक्यों की रणनीति को दिल्ली की समझदार जनता ने हवा में उडा दिया.
जैसा कि हमने बताया, दिल्ली चुनाव परिणाम का पूरे देश की राजनीति पर असर पडता है. एक के बाद एक राज्यों में अपनी सरकार खोने वाले दुनिया के सबसे बडे संगठन भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व को गंभीरता से विचार कर राष्ट्रवाद नहीं बल्कि विकास की राष्ट्र नीति बनानी होगी.
इस चुनाव की सबसे बड़ी बात कश्मीर से धारा 370 को हटाना, अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण का संकल्प जताने सहित वो सारे मुददे जो हिंदू-मुस्लिम मानसिकता से जुडे हैं, दिल्ली की जनता ने उन पर कोई ध्यान नही दिया. पूरे चुनाव में केजरीवाल ने सधे हुए तरीके से मोदी और भाजपा पर राजनीतिक हमले किए. बिना बीजेपी का नाम लिए कहा कि जब युवा रोजगार की बात करते हैं तो वो राम मंदिर की, लोग महंगाई की बात करते हैं, तो वो धारा 370 की, जनता शिक्षा व चिकित्सा की बात करती है तो वो सीएए और एनआरसी की, सडकों और जनसुविधाओं की बात करें तो वो शाहीन बाग पर आ जाते हैं.
अरविंद केजरीवाल ने चुनाव के अंतिम समय में बहुत समझदारी और सावधानी दिखाई, उन्हें उकसाया गया, आतंकी और देश द्रोही बताया गया. भाजपा ने केजरीवाल की छवि हिंदू विरोधी बनाने का सारा प्रयास किया, लेकिन सब धरा का धरा रह गया. भाजपा ने केजरीवाल को आंतकी कहा तो केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से पूछ लिया कि क्या वो आतंकी हैं, या दिल्ली की जनता के भाई या बेटे, भाजपा ने हिंदू विरोधी होने की छवि बनाने की कोशिश की तो केजरीवाल ने हनुमान चालिसा पढ़कर बीजेपी को करारा जवाब दिया.
केजरीवाल की इन बातों को लोगों ने समझा और एक बार फिर वही रास्ता अख्तियार किया जो 2015 में किया था, यानि की विकास की राह में फिर से पांच साल, दिल्ली में सिर्फ केजरीवाल.