Rajasthan Politics: राजस्थान में विधानसभा चुनाव में हुए तख्ता पलट के बाद भारतीय जनता पार्टी लोकसभा में भी काफी दमदार लग रही है. प्रदेश में पिछले दो आम चुनावों में 25 की 25 लोकसभा सीटें हासिल करने के बाद बीजेपी इस बार हैट्रिक लगाने का दावा कर रही है. कागजी स्तर पर तो बीजेपी का ये दावा सटीक भी लग रहा है लेकिन राजस्थान की सरजमीं के गांधी पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने ऐसी ‘चाणक्य चाल’ चली है कि जमीनी स्तर पर बीजेपी को कुछ सीटों पर पटखनी मिलते हुए दिख रही है. इसके बाद ये माना जा रहा है कि कांग्रेस ने बीजेपी वोटर्स में सेंध लगाने की पूरी तैयारी कर ली है जिसके चलते बीजेपी भी बार बार अपनी रणनीतियों में सुधार कर रही है.
गहलोत की जादूगरी से बीजेपी होगी चित
अशोक गहलोत की जादूगरी भरी चतुराई से इस बार बीजेपी के मिशन 25 को न सिर्फ झटका लगने वाला है, बल्कि उनके वोटर्स में सेंध भी लगते दिख रही है. दरअसल इस बार कांग्रेस ने अपने गढ़ मानी जाने वाली नागौर और सीकर संसदीय सीटों को गठबंधन के हवाले किया है. नागौर और सीकर दोनों ही कांग्रेस के किले माने जाते हैं लेकिन ऐसा इसलिए किया गया है ताकि इन सीटों के बहाने इसके आस पास के प्रभावी इलाकों में बीजेपी वोटर्स में तोड़फोड़ की जा सके. कांग्रेस ने नागौर सीट पर हनुमान बेनीवाल की आरएलपी और सीकर में सीपीआई से गठबंधन किया है. यह दोनों सीटों अपने गठबंधन साथियों के लिए छोड़ी गयी है. यानी कांग्रेस इस बार केवल 23 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करेगी.
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सियासी विशेषज्ञों का मानना है कि हालांकि कांग्रेस ने दो सीटें छोड़ी जरुर हैं लेकिन इसका फायदा कांग्रेस को जयपुर ग्रामीण, चूरू, जैसलमेर और श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ में मिलना तय है.
बीजेपी की राह में रोड़ा बन रही आरएलपी
नागौर में आरएलपी से कांग्रेस का गठबंधन है और हनुमान बेनीवाल गठबंधन के उम्मीदवार है. जाट बाहुल्य क्षेत्रों में बेनीवाल का खास प्रभाव है. 2019 में नागौर से बेनीवाल खुद सांसद रहे हैं. उस वक्त बीजेपी से आरएलपी का गठबंधन था. अब कांग्रेस से गठबंधन होने से मतों का बंटवारा रुकेगा और कांग्रेस मजबूत होगी. किसान आंदोलन के समय बेनीवाल ने बीजेपी से अपने आप को अलग कर लिया था. कांग्रेस पहले से किसान आंदोलन के समर्थन में रही है. जाट बाहुल्य नागौर में यह गठबंधन बीजेपी की हैट्रिक रोकने के मुख्य रोड़ा बनते नजर आ रहा है.
मालवीय की जीत को हार में बदलेगी ‘बाप’
इसमें तो कोई दोराय नहीं कि कांग्रेस का लक्ष्य सीटें जीतने से ज्यादा बीजेपी के जीत को रोकना है. मोदी हवा को देखते हुए कांग्रेस के कई दिग्गज नेता बीजेपी के रथ में सवार हो गए. हाल ही में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए महेंद्र जीत सिंह मालवीय को बीजेपी ने डूंगरपुर-बांसवाड़ा प्रत्याशी बनाया है. कांग्रेस यहां भारतीय आदिवासी पार्टी यानी बाप से गठबंधन करने की कोशिश में है. यहां बाप का प्रभाव ज्यादा दिख रहा है. अगर गठबंधन होता है तो आरएलपी, कांग्रेस, बाप और वामदलों के आगे मालवीय का जीत पाना मुश्किल होगा.
अन्य सीटों पर गठबंधन का मिलेगा फायदा
राजस्थान में इस बार कांग्रेस ने अभी तक घोषित उम्मीदवारों में जालौर-सिरोही को छोड़कर नए लोगों को टिकट दिया है. केवल वैभव गहलोत को रिपीट किया, जिन्हें जोधपुर की जगह जालौर से टिकट थमाया गया है. यहां उनके जीत की संभावना जोधपुर से कहीं अधिक है. सियासी जानकारों का कहना है कि आरएलपी और वामदलों के 50 हजार से लेकर एक लाख वोट भी कांग्रेस प्रत्याशियों को मिल जाते हैं तो बीजेपी के मिशन 25 में सेंध लगना तय है. यह समीकरण सेट बैठता है तो श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़, अलवर, नागौर, सीकर, टोंक-सवाई माधोपुर और उदयपुर सीट गठबंधन बीजेपी पर भारी पड़ सकता है. कुछ मुद्दों को लेकर जैसलमेर-बाड़मेर से सांसद और कैबिनेट मंत्री कैलाश चौधरी की राह भी आसान नहीं है.
इसमें कोई संशय नहीं है कि इस बार भी टिकट वितरण में सचिन पायलट की जगह अशोक गहलोत की पसंद को तरजीह दी गयी है. वैभव गहलोत का सीट बदल टिकट देना, नागौर एवं सीकर में गठबंधन जैसे कई फैसले गहलोत की रजामंदी से प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने किए हैं जो कांग्रेस के लिए गुड़लक साबित हो सकते हैं. हनुमान बेनीवाल से गठबंधन करने में भी गहलोत की बड़ी भूमिका बताई जा रही है. अभी तक के समीकरणों को देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि इस बार राजस्थान में बीजेपी की हैट्रिक लगना मुश्किल है.