Politalks.News/Bihar. बिहार विधानसभा चुनाव की सभी स्थितियां अब स्पष्ट हो गई है. 243 सीटों में से एनडीए को 125 और महागठबंधन को 110 सीटों पर जीत मिली. शुरुआती रूझानों में बहुमत के दरवाजे पर पहुंचने के बाद महागठबंधन ऐसा नीचे सरका कि कभी उस मैजिक फिगर तक पहुंच ही नहीं सका. कांग्रेस केवल 19 सीटों पर जीत दर्ज कर सकी तो राजद पिछली बार जीती गई सीटों से 5 सीटें कम रह गई. राजद को 75 सीटें मिली. यहां AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी फैक्टर खासा मायने रखता है जिनकी पार्टी ने 5 सीटे जीतकर तहलका मचा दिया है. सपा को एक सीट मिली. पार्टी के उम्मीदवारों ने न केवल महागठबंधन उम्मीदवारों के वोट काटे, बल्कि उन्हें सत्ता की कुर्सी से काफी दूर कर दिया.
सीमांचल में असदुद्दीन ओवैसी फैक्टर नहीं चलता तो शायद बिहार के सिंहासन पर बैठने का मौका तेजस्वी यादव को मिल सकता था. वजह है- ऑल इंडिया मजलिस-ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) उन्हीं सीटों को जीतने में सफल रही है, जहां कांग्रेस और राजद का कब्जा रहा है. ओवैसी ने 21 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे. अन्य सीटों पर कई क्षेत्रों में AIMIM दूसरे नंबर पर आए हैं. ऐसे में निश्चित तौर पर ओवैसी फैक्टर का नुकसान कांग्रेस और राजद को हुआ है.
बिहार के सीमांचल इलाके में 24 सीटे हैं, जहां ज्यादातर सीटों पर मुस्लिम निर्णायक भूमिका में हैं. यहां के मुस्लिम मतदाताओं ने कांग्रेस, राजद और जदयू के बजाय असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM को चुना है. AIMIM को बिहार की पांच सीटों पर जीत मिली है, जिनमें अमौर, कोचाधाम, जोकीहाट, बायसी और बहादुरगंज सीट है. ये सभी सीटें सीमांचल के इलाके की हैं. बिहार में AIMIM ने 20 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें से 14 सीटें सीमांचल के इलाके की थीं जबकि बाकी सीटें मिथिलांचल की थीं.
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पूर्णिया जिले की अमौर सीट पर अब तक कांग्रेस के अब्दुल जलील मस्तान लंबे समय से विधायक थे, लेकिन AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष अख्तुरुल ईमान ने यहां के आधे से ज्यादा वोट हासिल कर सीट अपने नाम कर ली. बहादुरगंज सीट पर कांग्रेस के तौसीफ आलम पिछले सोलह सालों से विधायक थे, लेकिन इस बार ओवैसी की पार्टी के अंजार नईमी ने उन्हें करारी शिखस्त दी. यही हाल अररिया जिले की जोकीहाट विधानसभा सीट का रहा जो राजद का मजबूत गढ़ मानी जाती है, लेकिन असदुद्दीन ओवैसी ने यहां से तस्लीमुद्दीन के बड़े बेटे सरफराज आलम के खिलाफ उनके छोटे भाई शाहनवाज आलम को उतारकर यह सीट अपने नाम कर ली. राजद के सरफराज आलम यहां से चार बार के विधायक रहे हैं, लेकिन ओवैसी फैक्टर से पार नहीं पा सके.
किशनगंज की कोचाधाम विधानसभा सीट पर जदयू का लंबे समय से राजनीतिक वर्चस्व कायम था, लेकिन ओवैसी ने यहां से मुहम्मद इजहार असफी को उतारकर सारे समीकरण ध्वस्त कर दिए. 2015 में भी इस सीट पर AIMIM दूसरे नंबर पर रही थी. ऐसे ही बायसी विधानसभा सीट पर AIMIM के सैयद रुकनुद्दीन ने जीत दर्ज की है. इन पांचों सीटों पर मुस्लिमों मतदाता ने महागठबंधन के प्रत्याशी की तुलना में AIMIM को तव्वजो देकर तेजस्वी के सत्ता की कुर्सी के फासले को बढ़ा दिया.
2015 के चुनाव में सीमांचल से कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. कांग्रेस ने यहां अकेले 9 सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि जदयू को 6 और राजद को 3 सीटें मिली थीं. इस बार AIMIM ने सीमांचल में 11 सीटों पर महागठबंधन को तगड़ा झटका दिया है. उन्होंने केवल 10 दिन में ताबड़तोड़ रैलियां करके सियासी माहौल अपने पक्ष में करने का काम किया. असदुद्दीन ओवैसी ने पहली बार ईद-मिलादुन नबी का त्योहार हैदराबाद के बजाय बिहार में मनाया. सीमांचल के इलाके में उन्होंने सीएए-एनआरसी जैसे मुद्दे को हवा देकर मुस्लिमों की नब्ज को पकड़ा था. जहां बीजेपी नेता लगातार घुसपैठ का मुद्दा उठा रहे थे जबकि महागठबंधन के नेताओं ने इस पर चुप्पी साध रखी थी. यही वजह रही कि सीमांचल के मुसलमानों की पहली पसंद AIMIM बन गई.
बिहार की सियासी नब्ज को असदुद्दीन ओवैसी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद किशनगंज विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में समझ लिया था, जब उनकी पार्टी यहां से खाता खोलने में कामयाब रही थी. इसी के बाद से ओवैसी को सीमांचल की सियासी जमीन उपजाऊ नजर आने लगी थी. सीएए-एनआरसी के खिलाफ देश भर में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे, उसी समय ओवैसी ने सीमांचल में भी इस मुद्दे पर रैली करके उनके साथ खड़े होने के संकेत दे दिए थे.
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बिहार चुनाव के ऐलान से पहले असदुद्दीन ओवैसी ने अपने करीबी और हैदराबाद के पूर्व मेयर माजिद हुसैन को सीमांचल में AIMIM की राजनीति मजबूत करने के लिए भेज दिया था. माजिद हुसैन पिछले दो महीने तक सीमांचल में रहे और पार्टी के संगठन से लेकर जिताऊ उम्मीदवार की तलाश करने का काम किया. माजिद हुसैन को ओवैसी का कान, नाक और आंख कहा जाता है. बिहार में AIMIM के सभी उम्मीदवारों के चयन से लेकर पार्टी के बूथ प्रबंधन और ओवैसी की रैली तक की रूप रेखा तैयार की. इसी आधार पर सीमांचल में ओवैसी पांच सीटें जीतने में कामयाब रहे.
बिहार में काबिलेतारीफ प्रदर्शन के बाद असदुद्दीन ओवैसी अगले साल होने वाले पश्चिम बंगाल के साथ यूपी में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए अपनी सियासी जमीन तलाश करने की कोशिशों में जुट गए हैं. बंगाल में ममता राज है लेकिन यहां अच्छी खासी संख्या में मुस्लिम वोटर्स मौजूद हैं. इनमें तृणमूल कांग्रेस का प्रभाव है लेकिन ओवैसी फैक्टर यहां भी काम कर सकता है. योगी के गढ़ में भी ओवैसी कमाल करेंगे, ये होना पक्का है. कहना गलत न होगा कि बिहार विस चुनाव के परिणामों ने ओवैसी की पार्टी को एक राष्ट्रीय स्तर बनाने का मार्ग प्रशस्त किया है. आगामी समय में ओवैसी मुस्लिम प्रभाव वाले राज्यों में किंगमेकर वाला रोल अदा कर सकते हैं.