बिहार विधानसभा की सरगर्मियों के बीच महागठबंधन ने एक नया मास्टर गेम प्लान किया है और इसी के सहारे पीएम नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को टक्कर देने की कोशिश की जा रही है. खबर आ रही है कि महागठबंधन असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) पार्टी को अपने खेमे में लाने की कोशिश कर रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने महागठबंधन की मुस्लिम बहुल सीटों पर बड़ा नुकसान किया था और 5 सीटें भी जीती थी. अब ओवैसी को अपने साथ मिलाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार की अगुवाई वाले एनडीए को मात देने के लिए महा गेम प्लान सेट किया जा रहा है.
सीमांचल में सुरक्षित होना चाह रहा महागठबंधन
सियासी जानकारों की नजर में महागठबंधन सिर्फ सीमांचल में सेफ नहीं होना चाहता है, बल्कि 2020 में शाहाबाद में जिस तरह से प्रदर्शन किया था, वही प्रदर्शन सीमांचल के इलाके में अपनाना चाहता है. 2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने शाहाबाद के इलाके से एक तरह से एनडीए को पूरी तौर पर साफ कर दिया था. इस बार सीमांचल से भी वाइप आउट करने की तैयारी कर रहा है. पिछली बार एनडीए को सीमांचल और मिथिलांचल क्षेत्र के साथ चंपारण का साथ मिला था और एनडीए बहुमत के आंकड़े तक पहुंच पाने में सफल हो पाया था.
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बीते चुनाव में सीमांचल पर असदुद्दीन ओवैसी के फैक्टर से एनडीए गठबंधन को फायदा पहुंचाया था और सीमांचल के किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार जिले की 24 सीटों पर ओवैसी की पार्टी ने महागठबंधन को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया था. सीमांचल में एनडीए को 24 में 14 सीटों पर जीत प्राप्त हुई थी. वहीं, शाहाबाद के क्षेत्र में एनडीए को बहुत बड़ा झटका लगा था. यही वजह रही कि बहुमत के 122 के आंकड़े से महज 5 सीटें ही ज्यादा एनडीए गठबंधन जीत पाया था.
महागठबंधन की शाहाबाद पर है मजबूत पकड़
शाहाबाद क्षेत्र में मोटे तौर पर चार जिले आते हैं जिनमें भोजपुर, रोहतास, कैमूर और बक्सर शामिल हैं. इन चारों जिलों में कुल मिलाकर 22 सीटें हैं. बीते विधानसभा में इन 22 सीटों में 20 सीटों पर महागठबंधन के उम्मीदवारों ने कब्जा जमाया था, जबकि एनडीए गठबंधन को मात्र दो सीटें ही मिल पाई थी. शाहाबाद महागठबंधन का कितना मजबूत गढ़ है, इसे केवल इस तरह समझा जा सकता है कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में शाहाबाद की चारों लोकसभा सीटें सासाराम, काराकाट, आरा और बक्सर से महागठबंधन के उम्मीदवारों ने जीत प्राप्त की थी. साफ है कि शाहाबाद महागठबंधन के लिए अब भी मजबूत गढ़ है.
ओवैसी ने पहुंचाया था महागठबंधन को नुकसान
पिछला बिहार विसचु ओवैसी ने बीएसपी और रालोसपा के साथ चुनाव लड़ा था और 20 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. इनमें से 5 सीटों पर ओवैसी की पार्टी की जीत हुई थी. पार्टी को करीब पूरे बिहार में सवा प्रतिशत वोट मिले थे. जिन पांच सीटों पर जीत मिली थी, वह सीमांचल की मुस्लिम बहुल अमौर, कोचाधामन, जोकीहाट, बायसी और बहादुरगंज की सीटें थीं. यहां एआईएमआईएम ने लालू की राजद के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाई थी.
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इस बार ओवैसी की पार्टी की 50 से अधिक सीटों पर लड़ने की योजना है. ज्यादा नुकसान होने के खतरे को भांपते हुए महागठबंधन ने अपना रुख लचीला कर लिया है.
सीमांचल पर फंस रहा महागठबंधन का पेंच
खबर है कि ओवैसी से महागठबंधन की आगे बढ़ चुकी है, मगर सीमांचल की सीटों को लेकर पेंच फंसा हुआ है. AIMIM सीमांचल क्षेत्र की 24 सीटों पर अपनी दावेदारी ठोक रही है. यही वजह है कि महागठबंधन में शामिल राजद और कांग्रेस की ओर से अंतिम सहमति नहीं बन पाई है. फिर भी अगर आने वाले समय में ओवैसी महागठबंधन का हिस्सा हो जाते हैं तो यह एनडीए के लिए बड़े खतरे का संकेत हो सकता है. इससे नीतीश कुमार के परंपरागत वोट बैंक में भी सेंध लगना निश्चित है. सीमांचल में असदुद्दीन ओवैसी का बढ़ता प्रभाव और महागठबंधन में इनके शामिल होने के बाद मुस्लिम मतों में बिखराव पर ब्रेक इसकी दो बड़ी वजह हैं जो महागठबंधन के लिए बिग बूस्ट साबित हो सकता है.