पॉलिटॉक्स ब्यूरो. 16 दिसम्बर, 2012 को देश की राजधानी दिल्ली की सड़क पर रात के अंधेरे में एक पैरामेडिकल स्टूडेंट के साथ ऐसा ऐसी हैवानियत हुई जिससे पूरा देश थर्रा गया. आज उस हादसे (Nirbhaya) को सात साल हो गए हैं लेकिन दोषी सजा से दूर हैं. निचली अदालत के बाद हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक निर्भया के सभी दोषियों को फांसी के फंदे पर लटकाने की सजा सुना चुका है लेकिन सभी चारों दोषी किसी ने किसी कानून सलाह के बहाने से सजा को टालने और समय निकालने की कोशिशों में लगे हैं. कहना गलत न होगा कि उनकी ये कोशिश सफल भी हो रही है. हाल ही के दिनों में जो भी किया जा रहा है, वो इस कोशिश का नया पैतरा है.
सभी आरोपी एक एक करके अपनी दया याचिका अलग अलग जगहों पर भेज रहे हैं जिससे केवल समय बर्बाद हो सके. दरअसल 5 मई, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने उक्त सभी आरोपियों को दोषी मानते हुए फांसी की सजा सुनाई. सजा को टालने के लिए तीन अभियुक्तों मुकेश, विनय शर्मा और पवन गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट में फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की जिसे पिछले साल 9 जुलाई को कोर्ट ने खारिज कर दी. चौथे दोषी अक्षय सिंह ठाकुर ने इस संबंध में कोई याचिका नहीं लगाई. (Nirbhaya)
अब जैसे ही लगने लगा कि अब दोषियों को सजा जल्दी हो जाएगी, ऐन वक्त पर सबसे पहले विनय सिंह ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को दया याचिका भेजी. इस पर दिल्ली सरकार ने तत्काल संज्ञान लेने ते हुए याचिका खारिज करने की सिफारिश उप राज्यपाल के जरिए केंद्र को भेजी. जब केंद्र ने तत्काल इस याचिका को राष्ट्रपति के पास भेजा तो विनय की ओर से कहा गया कि इस याचिका पर उसके दस्तखत नहीं हैं और इसे उसकी अनुमति के बिना भेजा गया है. निश्चित तौर पर इस याचिका को लौटाया जाएगा और फिर से राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा जिसमें दो से तीन महीने या इससे भी ज्यादा समय लग सकता है.
इसी बीच अक्षय सिंह ठाकुर ने एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करा दी जिसमें कोर्ट को फांसी की सजा पर पुनर्विचार करने को कहा गया है. याद दिला दें कि अन्य तीन की पुनर्विचार याचिका को कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है. खास बात ये भी है कि अक्षय सिंह के वकील एपी सिंह ने फांसी की सजा का विरोध काफी यूनिक तरीके से किया. उन्होंने याचिका में कहा, ‘दिल्ली में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर है और शहर गैस चैंबर बन चुकी है. यहां का पानी भी जहरीला हो चुका है. प्रदूषित हवा और पानी के चलते पहले ही लोगों की उम्र कम होती जा रही है. ऐसे में फांसी की सजा की क्या जरूरत है’. (Nirbhaya)
याचिका में वेद, पुराण और उपनिषद आदि का भी हवाला दिया गया है जिसमें कहा गया, ‘धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक सतयुग में लोग हजारों साल तक तीवित रहते थे. त्रेता युग में भी एक व्यक्ति हजार वर्ष तक जीता था लेकिन कलयुग में आदमी की आयु केवल 50 से 60 वर्ष तक सीमित रह गई है. ऐसे में फांसी की सजा की जरूरत नहीं है.
सभी को पता है कि ये उजूल फुजूल तर्क हैं जिस पर कोर्ट इसे खारिज करेगा लेकिन इससे दोषियों को फिर से समय मिल जाएगा क्योंकि मामला कोर्ट में चल रहा है. उसके बाद चारों दोषियों की अलग अलग क्षमा याचिकाएं राष्ट्रपति को भेजी जाएगी जिसमें साल, दो साल का वक्त जायां होना पक्का है. (Nirbhaya)
आखिर में सवाल केवल एक है कि कब तक इस निर्दयता पूर्ण कृत्य के बावजूद लचर न्याय प्रणाली और तमाम लूप का फायदा उठाकर ये दोषी फांसी का मामला टालते रहेंगे. जबकि देश चाहता है कि 16 दिसम्बर को इस कांड की 7वीं बरसी पर ये फांसी दी जाए. बता दें, इस निंदनीय कार्य में 6 आरोपी शामिल थे जिनमें एक नाबालिग भी शामिल है. उसे डेढ़ साल बालगृह में रखने के बाद कानून का फायदा देकर रिहा कर दिया गया. एक आरोपी की जेल में मौत हो गई. अब ये चार कब तक इस सजा को टालने में सफल होते हैं, देश तो केवल इंतजार ही कर सकता है.