कोरोना महामारी के बीच ‘सियासी रविवार’ तय करेगा सहाड़ा, राजसमंद व सुजानगढ़ में कौन होगा ‘सरताज’

3 सीटों पर उपचुनाव का परिणाम, किसके बनेगा सरताज? कोरोना काल में 'सियासी रविवार' तय करेगा कौन है सहाड़ा, राजसमंद और सुजानगढ़ का असली 'सरदार', भाजपा-कांग्रेस और आरएलपी के अपने-अपने दावे, परिणाम तय करेंगे आने वाले समय में प्रदेश की सियासत की तस्वीर, परिणाम यहां आएगा मंथन हर हाल में होगा दिल्ली में, दोनों ही पार्टियों में खींचतान बढ़ना है तय

उपचुनाव परिणाम तय करेंगे दिग्गजों का भविष्य
उपचुनाव परिणाम तय करेंगे दिग्गजों का भविष्य

Politalks.News/Rajasthan. राजस्थान की 3 सीटों सहाड़ा, राजसमंद और सुजानगढ़ में हुए उपचुनाव का चुनाव परिणाम कल यानी रविवार को आएगा. सुबह 8 बजे से मतगणना शुरू होगी और दोपहर 1 बजे तक चुनावी तस्वीर पूरी तरह साफ होने की संभावना जताई जा रही है. विधानसभा चुनाव में रण में कौन मारेगा बाजी इसका फैसला तो मतगणना के बाद ही होगा. हालांकि उपचुनाव को लेकर दोनों ही प्रमुख दलों भाजपा-कांग्रेस के अपने-अपने दावे किए हैं तो वहीं आरएलपी ने भी अपनी जीत का दावा ठोका है.

सबसे पहले बात उपचुनाव के परिणाम के बाद बदलने वाली ‘सियासी तस्वीर’ की….
कांग्रेस की परीक्षा
वैसे तो तीनों ही सीटों के परिणाम से ना तो कांग्रेस को कोई फर्क पड़ने वाला है ना ही बीजेपी को, लेकिन जीत से मनोबल जो बढ़ेगा, सारा खेल उसका है. अगर कांग्रेस यहां पर तीनों सीटों पर जीतती है तो इसे अशोक गहलोत सरकार के कामों पर मुहर माना जाएगा. इसके साथ ही कांग्रेस में चले आ रहे सीएम गहलोत और पायलट के बीच के संकट पर भी इन परिणामों का असर पड़ेगा. तीनों सीटों पर कांग्रेस जीतती है तो इस का श्रेय गहलोत सरकार के काम और कोरोना प्रबंधन को ही मिलने वाला है, लेकिन वहीं अगर हार होती है तो गहलोत सरकार पर अंगुली उठना भी तय माना जा रहा है. क्योंकि पायलट खेमे ने इन उपचुनावों से उचित दूरी बनाए रखी है. सचिन पायलट इन तीनों सीटों पर हुए नामांकन की सभा में तो शामिल हुए लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान जनता इनको देखने को तरस गई. वहीं पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा की भी यह अग्निपरीक्षा है. प्रदेश अध्यक्ष के नाते तो तीनों सीटों पर ही हार-जीत का श्रेय या ठीकरा फूटना तय है लेकिन खासकर सुजानगढ़ सीट पर डोटासरा की प्रतिष्ठा दांव पर है, इस सीट पर गोविंद सिंह डोटासरा का पूरा फोकस रहा था.

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बीजेपी का सियासी हाल
बीजेपी को अगर इस चुनाव में जीत मिलती है तो प्रदेश भाजपा के वर्तमान नेतृत्व यानी सतीश पूनियां मजबूत होंगे और पार्टी में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को साइडलाइन करने की नीति को बल मिलेगा. क्योंकि पिछले बीस साल में ये पहला मौका है जब बीजेपी ने कोई भी चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की पूर्णतया गैर मौजूदगी में लड़ा गया है. वसुंधरा राजे तीनों सीटों पर हुए चुनाव के दौरान एक दिन भी प्रचार के लिए नहीं गईं. वैसे इसका कारण ये भी बताया गया कि उनकी बहू निहारिका सिंह की तबीयत नासाज थी. लेकिन वसुंधरा राजे की गैर मौजूदगी में चुनाव प्रचार तो हुआ ही है. प्रत्याशियों के पोस्टर बैनर से भी वसुंधरा राजे गायब ही रहीं. इन परिस्थितियों में बीजेपी अगर राजसमंद सीट बचाते हुए बाकि कि दो सीटों में से एक सीट भी जीत लेती है तो बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां की स्थिति मजबूत होना तय माना जा रहा है. अगर ऐसा होता है तो वसुंधरा राजे को बीजेपी द्वारा साइडलाइन करने की रणनीति आगे भी जारी रहेगी. लेकिन यदि बीजेपी की इन तीनों सीटों पर हार होती है तो बीजेपी के प्रदेश नेतृत्व पर सवाल उठना तय है.

बात करें आरएलपी की तो राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के पास इन तीनों सीटों पर खोने को कुछ भी नहीं है. लेकिन अपने दमदार प्रचार अभियान से आरएलपी ने दोनों पार्टियों के समीकरण बिगाड़ दिए हैं. राजस्थान की ग्राउंड राजनीति की जानने वाले तो कह रहे हैं कि सुजानगढ़ और सहाड़ा में तो बीजेपी और कांग्रेस में से किसकी जीत होगी ये इस बात पर निर्भर करता है कि दोनों सीटों पर आरएलपी के उम्मीदवारों को कितने वोट मिले. सुजानगढ़ सीट पर तो आरएलपी सियासी पंडितों को चौंका भी सकती है.आरएलपी के संयोजक और नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने तीनों सीटों पर दमदार प्रत्याशी उतारे और प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी. सुजानगढ़ और सहाड़ा में से अगर एक सीट भी आरएलपी ने कांग्रेस बीजेपी से छीन ली तो हनुमान बेनीवाल उत्साह चरम पर होगा और अगर तीनों सीटों पर आरएलपी का प्रदर्शन आशा के अनुसार नहीं रहा तो इसे वोट कटवा पार्टी माना जाने लगेगा.

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सुजानगढ़ सीट का सियासी घमासान
हर बार विधानसभा चुनाव में सुजानगढ़ सीट पर कांग्रेस-भाजपा में सीधी टक्कर रहती थी, पर इस बार आरएलपी की एंट्री और जातिगत समीकरण चुनाव को दिलचस्प बना रहे हैं. सुजानगढ़ में कम वोटिंग प्रतिशत ने सबको चौंकाया है. दिवंगत मास्टर भंवरलाल के बेटे और कांग्रेस प्रत्याशी मनोज मेघवाल को सहानुभूति लहर की आस है. कांग्रेस ने पूरा चुनाव इस फैक्टर पर लड़ा और कांग्रेस को गहलोत सरकार के काम पर भी पूरा भरोसा है. भाजपा को अंदरूनी खींचतान का डर सता रहा है बीजेपी उम्मीदवार खेमाराम मेघवाल को पार्टी के एक धड़े की तरफ से अंदरूनी तौर पर नुकसान पहुंचाने की भी चर्चा है. चुनाव प्रचार के दौरान एक सभा में पूर्व मंत्री राजेन्द्र राठौड़ को खीज उतारते देखा गया. आरएलपी उम्मीदवार सोहन नायक ने जोरदार चुनाव प्रचार किया. दोनों पार्टियों को नायक के चुनाव प्रचार ने कुछ मुश्किल में डाल दिया है. अब देखना ये होगा कि क्या आरएलपी उम्मीदवार सोहन नायक सुजानगढ़ के असली ‘नायक’ बन पाते हैं या नहीं, कांग्रेस को सहानुभूति और गहलोत सरकार के काम पर भरोसा है. तो बीजेपी को अंदरुनी खींचतान का भय सता रहा है.
सहाड़ा का ‘सियासी अखाड़ा’
कांग्रेस ने सहाड़ा में भी सहानुभूति वाला कार्ड खेला. सहाड़ा में दिवंगत कांग्रेस विधायक कैलाश त्रिवेदी की पत्नी गायत्री देवी को मैदान में उतारा गया. कांग्रेस यहां कैलाश त्रिवेदी परिवार की सहाड़ा में प्रतिष्ठा और सहानुभूति के घोड़े पर सवार है. भाजपा ने सहाड़ा में अपने ही बागी लादूलाल पितलिया को जैसे तैसे बैठाकर अपना रास्ता तो साफ किया था. लेकिन भाजपा उम्मीदवार रतनलाल जाट का वोटिंग से ठीक तीन दिन पहले कोरोना पॉजिटिव हो गए जिससे बीजेपी का यहां मैनेजमेंट थोड़ा गड़बड़ा गया.मतदाताओं में ये मैसेज तक चला गया की कहीं फिर के उपचुनाव का सामना ना करना पड़ जाए. वहीं रही सही कसर आरएलपी ने जाट उम्मीदवार को उतार के कर दी. आरएलपी के संयोजक हनुमान बेनीवाल ने बीजेपी में ही सेंध लगाकर पार्टी का उम्मीदवार उतार दिया. जातीय ध्रुवीकरण का नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ रहा है. लादूलाल पितलिया के समर्थकों ने भी चुनाव से दूरी बनाई जिसका सीधा नुकसान भाजपा को और फायदा कांग्रेस को होने की बात सामने आ रही है. और आरएलपी जाट और बीजेपी के वोटों में सेंध लगाने में कामयाब रही तो परिणाम चौंकाने वाले भी आ सकते हैं.

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राजसमंद की राजनीति का गणित
राजसमंद सीट बीजेपी का परंपरागत गढ़ है तो ये उपचुनाव कांग्रेस के लिए भाजपा के गढ़ में सेंध लगाने का मौका. भाजपा ने यहां सहानुभूति का कार्ड खेला. बीजेपी ने दिवंगत विधायक किरण माहे्श्वरी की बेटी दीप्ती माहेश्वरी को मैदान में उतार दिया. पूर्व मंत्री रहीं किरण माहेश्वरी की छवि से बीजेपी को आस है. कांग्रेस में केलवा के मार्बल व्यापारी तनसुख बोहरा को उम्मीदवार बनाया. कांग्रेस के उम्मीदवार तनसुख बोहरा के सामने पहचान का संकट था, युवा वर्ग से उनका जुड़ाव नहीं दिखा लेकिन नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया की महाराणा प्रताप को लेकर की गई बयानबाजी से नाराजगी का असर अगर वोटिंग पर हुआ है तो यहां भाजपा को कुछ नुकसान हो सकता है. कांग्रेस के लिए यहां उम्मीद भाजपा का भीतरघात और कटारिया के बयान से नुकसान ही है. वहीं वोटिंग से एक दिन पहले राजनगर थाने में बीजेपी के कार्यकर्ताओं का हंगामा और उनकी गिरफ्तारी से भी मैनेजमेंट गड़बड़ा गया. वहीं राजसमंद में आरएलपी ने प्रहलाद खटाना पर दाव खेला. कांग्रेस और बीजेपी के परंपरागत वोटर्स के बीच खटाना को लेकर उत्साह देखने को नहीं मिला. लेकिन अगर खटाना बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब हो जाते हैं तो कांग्रेस की लॉटरी लग सकती है.

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