Politalks.News/Rajasthan. पंजाब और उत्तराखंड की कलह सुलझाने के बाद अब कांग्रेस आलाकमान का फोकस राजस्थान और हरियाणा पर रहने वाला है. आलाकमान ने पहले जल्द होने वाले विधानसभा चुनाव वाले राज्यों का मसला सुलझाया है. कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि अब आलाकमान राजस्थान और हरियाणा पर फोकस करने वाला है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि पंजाब और उत्तराखंड +4 वाला फॉर्मूला क्या राजस्थान पर भी लागू किया जाएगा. अगर एक प्रदेशाध्यक्ष और चार कार्यकारी अध्यक्ष वाला फॉर्मूला राजस्थान में लागू होता है तो पीसीसी की तस्वीर कैसी होगी इस पर कयास लगाए जाने लगे हैं.
राजस्थान में विधानसभा चुनाव में ढाई साल से भी कम का समय रह गया है. राजस्थान में गहलोत-पायलट कैंप में पावर शेयरिंग करना आलाकमान के लिए टेढी खीर साबित होने वाला है. सत्ता और संगठन में दोनों ही खेमों को बराबर की भागीदारी दी भी जाती है तो भी मुसीबतें कम होने का नाम नहीं लेंगी. गहलोत सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय और बसपा से कांग्रेसी बने विधायकों को भी एडजस्ट करना होगा. साथ ही कुछ ऐसे नेता भी राजनीतिक नियुक्तियों का इंतजार कर रहे हैं जो चुनाव हार गए थे और हारने के बाद से ठंड में पड़े है.
सूत्रों का कहना है कि अगले एक दो दिन में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत फाइनल लिस्ट के साथ दिल्ली जाएंगे और सोनिया, राहुल और प्रियंका से मुलाकात कर राजस्थान में चल रहे संकट को हल करने का रास्ता निकालेंगे. सभी को पता है कि इसे सीएम गहलोत की किस्मत कहें या रणनीति पिछले एक साल से किसी तरह से पायलट समर्थकों को मंत्रिमंडल में एडजस्ट करने का मसला टालते रहे हैं.
लेकिन जैसा कि बताया जा रहा है कि सचिन पायलट को यह कहा गया था कि पंजाब का मसला हल होते ही राजस्थान पर फोकस किया जाएगा. पंजाब में सिद्धू को प्रदेशाध्यक्ष बनाकर राजनीतिक संकट लगभग निपटा दिया गया है. काफी विरोध के बाद अमरिंदर सिंह सिद्धू की ताजपोशी में शामिल हुए है. अब आलाकमान भी राजस्थान के कलह को आगे तक टालने के मूड में नहीं होगा.वहीं, सचिन पायलट लगातार एक ही बात बोल रहे हैं कि सभी को अपनी बात करने का हक है लेकिन जब आलाकमान कोई फैसला कर ले तो सभी को उसका सम्मान करना चाहिए.
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पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद से यह पहला मौका है, जब दोनों ही प्रमुख पदों पर ओबीसी के पास हो. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत माली जाति से आते हैं वो भी ओबीसी से हैं. वहीं डोटासरा भी जाट समुदाय से हैं. अब अगर दिल्ली आलाकमान राजस्थान में एक प्रदेशाध्यक्ष और चार कार्यकारी अध्यक्ष वाला फॉर्मूला लागू करती है तो चार कार्यकारी अध्यक्षों में ब्राह्मण, मीणा, एससी और अल्पसंख्यक समुदाय से लिया जाने की संभावना जताई जा रही है. वहीं चार कार्यकारी अध्यक्षों में से 2 पायलट कैंप और 2 गहलोत कैंप के होने की पूरी संभावना जताई जा रही है. अगर किसी भी परिस्थिति में डोटासरा को पीसीसी चीफ के पद से हटाया जाता है क्योंकि उनके पास मंत्री पद भी है तो आलाकमान की गणित बिगड़ जाएगी. फिर से पूरी कवायद करनी पड़ेगी. पीसीसी की सूत्रों की माने तो फिर इस स्थिति में किसी जनरल यानि ब्राह्मण को प्रदेश की कमान दी जा सकती है. लेकिन इससे जाटों के नाराज होने की पूरी संभावना जताई जा रही है.
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कांग्रेस को जानने वाले सूत्रों का कहना है कि सीएम गहलोत और पायलट कैंप के बीच कभी सब कुछ ठीक नहीं हो पाएगा. क्योंकि मुख्यमंत्री गहलोत का हमेशा यह मानना रहा है कि युवा नेता उनके नेतृत्व के लिए जोखिम और खतरा हैं. वो ऐसी कोई स्थिति नहीं बनने देंगे कि कोई उन्हें चुनौती दे. अब देखना ये होगा कि सीएम गहलोत आलाकमान की अनसुनी कब तक कर पाएंगे. क्या राहुल और प्रियंका ने पंजाब ने जो बोल्ड डिसीजन लिया है क्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को दरकिनार कर ऐसा ही कुछ राजस्थान में लिया जा सकता है. इन सभी सवालों का जवाब तो आने वाले कल के पास ही है.