Politalks.News/Uttarpardesh. उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासत गर्माती जा रही है. लगभग सभी पार्टियों ने गठबंधन को लेकर अपनी दरवाजे खुले रखे हैं. इस क्रम में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री ओम प्रकाश राजभर यूपी विधानसभा चुनावों से पहले प्रदेश के सभी राजनीतिक दलों के प्रमुख से लगभग मिल चुके हैं. अब ओम प्रकाश राजभर यूपी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह से मिलने उनके आवास पर पहुंचे. भाजपा नेता दयाशंकर सिंह भी उनके साथ थे. यह मुलाकात करीब 1 घंटे चली. अब ये शिष्टाचार मुलाकात तो थी नहीं. अब इस मुलाकात को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है.
लखनऊ में हुई इस सियासी मुलाकात के बाद जब राजभर से सवाल किया गया कि, ‘बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष से मुलाकात के क्या मायने निकालें जाएं? इस पर राजभर ने कहा कि, ‘वैसे बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष से मुलाकात तो शिष्टाचार मुलाकात थी, लेकिन राजनीति में कौन-कौन क्या कर रहा है, इसकी थाह समय-समय पर लेते रहना चाहिए’. राजभर ने बड़े संकेत देते हुए कहा कि, ‘दो बड़े नेता व्यक्तिगत मुलाकात भी कर सकते हैं. जब ममता बनर्जी और सोनिया गांधी मिल सकती हैं, जब मायावती और अखिलेश मिल सकते हैं तो राजनीति में कुछ भी सम्भव है‘. इससे पहले राजभर ने कहा था कि अमित शाह भी बुलाएंगे तो नहीं जाएंगे बीजेपी के साथ और अब स्वतंत्र देव सिंह से मुलाकात के लिए पहुंच गए हैं.
राजभर ने मुलाकात के बाद कहा कि, ‘देश पहले कृषि प्रधान था, लेकिन अब जाति प्रधान हो गया है. छोटी जातियों की काफी उपेक्षा हुई है, हम प्रदेश में भागीदारी संकल्प मोर्चा इन सबको को न्याय दिलाएंगा‘. राजभर ने कहा कि ‘उत्तर प्रदेश में अति पिछड़ी तथा 70 प्रतिशत पिछड़ी जातियां काफी उपेक्षित थीं. यह किसी को भी सरकार बनाने में मदद करती हैं’. राजभर ने कहा कि, ‘प्रदेश की 45 प्रतिशत ओबीसी जातियां हमारे साथ हैं, हम इसी दम पर सरकार बनाएंगे, हमारे पास 45 प्रतिशत वोट हैं, इसी वोट के दम पर सरकार बनती या बिगड़ती है, हमारे पास तो पर्याप्त वोट हैं’.
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बीजेपी से गठबंधन के लिए रखीं 5 शर्तें
बीजेपी से गठबंधन के सवाल पर राजभर ने कहा कि, ‘कौन नहीं चाहता ओम प्रकाश से गठबंधन हो जाए. हमारी पांच शर्तें हैं. अगर बीजेपी शर्तें मान लें तो उसके बाद विचार करेंगे. क्योंकि मैं धोखा खा चुका हूं. एक शर्त ये है कि चुनाव जीतने पर पिछड़ी जाति का नेता ही मुख्यमंत्री होगा. प्रदेश 52 फीसदी पिछड़ी आबादी है. ऐसे कैसे कि वोट हमारा और राज तुम्हारा. अब ऐसा नहीं होगा. वोट हमारा होगा और राज भी हमारा होगा. हम 2022 करके दिखाएंगे.’ सूत्रों की माने तो ओम प्रकाश राजभर तभी बीजेपी के साथ गठबंधन करेंगे जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री उम्मीदवार नहीं होंगे. वहीं बीजेपी योगी आदित्यनाथ को ही सीएम उम्मीदवार बनाने की तैयारी कर रही है. ऐसे में बीजेपी और ओम प्रकाश राजभर का गठबंधन मुश्किल लग रहा है.
राजभर ने बीजेपी के साथ गठबंधन की संभावनाओं को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि, ‘मैं गारंटी के साथ कह सकता हूं कि हमारा समझौता भारतीय जनता पार्टी से नहीं होगा. भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश से ओम प्रकाश राजभर ही नेस्तनाबूद करेगा.’
ओवैसी संग गठबंधन पर ये बोले ओमप्रकाश राजभर
असदुद्दीन ओवैसी संग गठबंधन की चर्चाओं पर ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि, ‘असदुद्दीन ओवैसी उनके मोर्चे, भागीदारी मोर्चा का अभी तक आधिकारिक तौर पर हिस्सा नहीं हैं’. ओमप्रकाश राजभर ने पूछा कि क्या आप कोई ऐसा वक्तव्य दिखा सकते हैं कि, असदुद्दीन ओवैसी कभी भागीदारी मोर्चा में शामिल होने की घोषणा की गई हो’. ओमप्रकाश राजभर के मुताबिक बीजेपी उनकी शर्ते मान ले जातीय जनगणना और सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट बीजेपी लागू कर दे तो वह एनडीए का हिस्सा बन जाएंगे.
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लल्लू जी के साथ चाय अभी बाकी है- राजभर
क्या राजभर कांग्रेस से भी बात करेंगे इस सवाल पर ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि, ‘कांग्रेस की चाय लल्लू जी के साथ अभी बाकी है. जल्द ही उनकी भी चाय पीएंगे’. आपको बता दें कि सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर इससे पहले 2017 में भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़े थे और बीजेपी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने थे, लेकिन बाद में बागी की भूमिका में आ गए और बीजेपी का साथ छोड़ दिया.
राजभर इन दिनों एक्टिव हैं. एंटी बीजेपी की भूमिका में रहते हुए ओमप्रकाश राजभर समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव से भी मुलाकात कर चुके हैं. सपा प्रमुख के चाचा और प्रसपा प्रमुख शिवपाल यादव से भी लगातार संपर्क में हैं. AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी से भी उनकी मुलाकात हो चुकी है. यही नहीं आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह से भी मुलाकातों का दौर चला चुके हैं.
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ओमप्रकाश राजभर ने संकेत दिया कि, ‘हम सभी छोटे दलों को एक साथ मिलाकर मोर्चा तैयार किए हैं, जो चुनावी मैदान में उतरेगा’. इस तरह की मुलाकातें राजनीतिक नब्ज पहचानने के लिए जरूरी होती हैं. वैसे सूत्रों का कहना है कि ओमप्रकाश राजभर ‘प्रेशर पॉलिटिक्स’ कर रहे हैं और जहां उन्हें फायदा होगा, वह वहां जाने से गुरेज नहीं करेंगे. राजभर ने अब तक सभी विकल्प खुले रखे हैं.
ओमप्रकाश को NDA में लाने की कोशिश- दयाशंकर सिंह
यूपी बीजेपी के उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने कहा कि, ‘उनकी कोशिश है कि ओमप्रकाश राजभर को एनडीए में लाया जाए क्योंकि राजनीति में कोई परमानेंट मित्र या शत्रु नहीं होता है. ओमप्रकाश राजभर प्रधानमंत्री मोदी की दलित और पिछड़े वर्गों के लिए किए गए कार्यों के समर्थक रहे हैं. प्रधानमंत्री के प्रशंसक रहे हैं. ऐसे में वह हमारे साथ दोबारा आ सकते हैं जब वह बीजेपी छोड़ कर के भी गए थे तो कोई वैचारिक वजह नहीं थी बल्कि टिकट का मामला था इसलिए वह दोबारा आ सकते हैं’.
हार के डर से गठबंधन के लिए यहां-वहां भटक रही है बीजेपी- विपक्ष
ओपी राजभर की स्वतंत्र देव सिंह से मुलाकात पर कांग्रेस ने तंज कसा है. कांग्रेस नेता सुरेंद्र राजपूत ने कहा कि, ‘क्या बीजेपी ने भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाने को कहा है. एक तरफ ओवैसी और दूसरी तरफ राजभर बीजेपी के नेता से मिल रहे हैं. बीजेपी की साजिश का पर्दाफाश हुआ है‘. सपा नेता अनुराग भदौरिया ने इस मुलाकात पर कहा कि, ‘बीजेपी हार के डर से गठबंधन के लिए यहां-वहां भटक रही है’.
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उत्तरप्रदेश में राजभर कितने महत्वपूर्ण
ओम प्रकाश राजभर ने छोटे-छोटे राजनीतिक दलों का ‘भागीदारी संकल्प मोर्चा’ बनाया हैं, जिसमें कई छोटे दल शामिल हैं. इस मोर्चे के गठन और 2022 के आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर वह एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी से भी कई बार मिल चुके हैं. उत्तरप्रदेश में करीब 4 फीसदी और पूर्वांचल में 18-20 फीसदी राजभर वोटर्स हैं. पूर्वांचल के दो दर्जन जिलों की 100 से अधिक सीटों पर राजभर वोटर हार-जीत तय करने की क्षमता रखते हैं. इनमें वाराणसी जिले की 05, आजमगढ़ की 10, मऊ की 04, बलिया की 07, गाजीपुर की 07, जौनपुर की 09 और देवरिया की 07 विधानसभा सीटों पर राजभर वोटर्स काफी तादात में हैं. राजभर की मानें तो यूपी की 66 सीटों पर 80,000 से 40,000 तक और करीब 56 सीटों पर 45,000 से 25,000 तक राजभर वोटर हैं. राजभर की पार्टी सुभासपा का दावा है कि, ‘उसके साथ 90 से 95 फीसदी राजभर वोटर हैं’