कर्नाटक में कांग्रेस की एकतरफा अप्रत्याशित जीत ने देश की राजनीति को भी हिलाकर रख दिया है. इसका असर कर्नाटक में मुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम की ताजपोशी में ही देखने को मिल गया, जहां देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बुलावा भेजा गया लेकिन कांग्रेसी विचारधारा से विपरीत चलने वाले अरविंद केजरीवाल को इस आयोजन से दूर रखा गया. दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी संयोजक अरविंद केजरीवाल को इस आयोजन में आमंत्रित नहीं किया गया था क्योंकि आप कांग्रेस की विचारधारा से एकराय नहीं रखती है. उडीसा के मुख्यमंत्री और बीजू दल सुप्रीमो नवीन पटनायक को भी केजरीवाल की केटेगिरी में ही रखा गया था.
सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की मौजूदगी में अरविंद केजरीवाल को पराया करने के बाद आगामी लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के ‘हनुमान’ बने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब अरविंद केजरीवाल से याराना बढ़ाने पहुंचे हैं. कांग्रेस के परायेपन को अपनेपन में बदलने पहुंचे नीतीश कुमार ने दिल्ली पहुंचकर सूबे के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की और इसी दौरान विपक्षी एकता में शामिल होने का प्रस्ताव भी रखा. इसके बाद नीतीश कुमार कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और पार्टी नेता राहुल गांधी से भी मुलाकात करने पहुंचे.
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2024 लोकसभा चुनावों के एक साल पहले ही एक्शन मोड में आ चुके बिहारी बाबू नीतीश कुमार लगातार विपक्ष को एकजुट करने में जुटे हुए हैं और लगातार दिल्ली के चक्कर लगा रहे हैं. इसी क्रम में नीतीश खरगे के आवास पर पहुंचे जहां राहुल गांधी के साथ कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल, जदयू अध्यक्ष ललन सिंह और बिहार सरकार में मंत्री संजय झा भी मौजूद रहे.
जैसा कि हमारी पिछले लेख में हमने बताया था, नीतीश कुमार को जल्दी ही यूपीए में महत्वपूर्ण पद पर सुशोभित किया जाएगा. ऐसे में खासतौर पर उन राज्यों में, जहां कांग्रेस कमजोर है या जहां कांग्रेस की विचारधारा अन्य राजनैतिक पार्टियों से मैच नहीं खाती, वहां पर विपक्षी एकता को मजबूत करने का दारोमदार नीतीश के कंधों पर रहेगा. यही वजह है कि कर्नाटक में सीएम की शपथ ग्रहण समारोह में न बुलाए जाने के तुरंत बाद नीतीश दिल्ली पहुंच गए और सबसे पहले अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की. यहां उन्होंने केंद्र सरकार के चुनी हुई राज्य सरकारों से शक्तियां छीनने वाले अध्यादेश पर केजरीवाल का समर्थन करते हुए उनकी उस दुखती रग पर मलहम रखने का काम कर दिया, जिसमें केजरीवाल को खुद अन्य राज्यों का साथ चाहिए था.
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वैसे भी देखा जाए तो ममता बनर्जी के विपक्षी एकता को समर्थन देने के बाद अरविंद केजरीवाल इकलौते ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो अकेले केंद्र की मोदी सरकार या यूं कहें कि पीएम नरेंद्र मोदी को टक्कर दे रहे हैं. हालांकि केजरीवाल का मीडिया में दिया गया ये बयान विपक्षी एकता में शामिल होने का निमंत्रण स्वीकार करने जैसा है. केजरीवाल ने कहा कि नीतीश हमारे पक्ष में हैं. अगर सभी दल राज्यसभा में एक साथ आ जाएं और अध्यादेश पारित ना हो पाए तो एक संदेश जाएगा कि 2024 में पीएम नरेंद्र मोदी को हराया जा सकता है.
कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनने से पहले बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी भी केजरीवाल के समकक्ष ही खड़ी थीं लेकिन यहां कांग्रेस की अप्रत्याशित जीत ने ममता के हौसलों को पस्त कर दिया है और अब उन्हें भी लगने लगा है कि बिना कांग्रेस या विपक्षी एकता के मोदी को हराना नामुमकिन है. शीर्ष चेहरा कैसे बनना है, इसका फैसला बाद में कर लिया जाएगा. विपक्षी एकता की मजबूती के लिए दिल्ली में केजरीवाल और बंगाल में ममता का साथ होना जरूरी है. उडीसा में नवीन पटनायक किसी भी दल को समर्थन देने से इनकार कर चुके हैं. हालांकि उनसे ममता के राजनीतिक रिश्ते काफी अच्छे हैं. ऐसे में अंतिम क्षणों में उन्हें समर्थन में लाने का जिम्मा दीदी के पास रहने वाला है.
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कर्नाटक में कांग्रेस की पीएम मोदी एंड कंपनी पर एक तरफा जीत ने विपक्षी एकता और अन्य राज्यों की राजनीतिक पार्टियों को भी हौसला दिया है. यही वजह है कि शपथ ग्रहण के तुरंत बाद ही नीतीश कुमार ने अन्य राजनीतिक पार्टियों को साधना शुरू कर दिया है. इन्हीं सब बातों पर मंथन के लिए नीतीश कुमार कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से भी उनके आवास पर मुलाकात करने पहुंचे थे. कर्नाटक में हार के बाद बीजेपी भी सदमे मे है. ऐसे में अगर विपक्षी एकता मजबूत होती है तो आगामी लोकसभा चुनावों में मोदी एंड कंपनी की राह कांटों भरी होगी, इस बात में कोई दोराय नहीं होगी.