इंसाफ नहीं दे सकते तो बंद कीजिए ये तमाशा, ‘माई लॉर्ड’

राज्यपालों के संवैधानिक अधिकार भी हर राज्य के लिए अलग-अलग नजर आते हैं जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश और राजस्थान के, अपन तो सौ बातों की एक बात जानते हैं, अगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास 101 या उससे ऊपर विधायकों का आंकड़ा है, तो तारीख आज मिले या कल, या फिर किसी और दिन, 101 विधायक गहलोत को सारे षड़यंत्रों को हराते हुए न्याय दिलवाने की ताकत रखते हैं

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Politalks.News/Rajasthan. फिल्म दामिनी का यह डाॅयलाॅग बहुत ही सुपर हिट है. जिसने भी यह फ़िल्म देखी होगी, कोर्ट में वकील की हैसियत से खड़े सन्नी देयोल के डाॅयलाॅग को नहीं भूल सकता. मामला महिला के बलात्कार से जुड़ा था. कोर्ट में तारीख पर तारीख मिल रही थी, हर बार कोर्ट नई तरीख या तो दे रहा था, या फिर आरोपी के ही वकील से पूछ रहा था. तब सन्नी देयोल ने कहा था कि यही होता रहा है मी लार्ड तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख मिलती रही है लेकिन इंसाफ नहीं मिला मी लार्ड, मिली है तो सिर्फ ये तारीख. कानून के दलालों ने इंसाफ को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया है मी लार्ड. दो तारीखों के बीच ये अदालत के बाहर कानून का धंधा करते हैं, धंधा. जहां गवाह तोड़े जाते हैं, खरीदे जाते हैं, मारे जाते हैं, रह जाती है सिर्फ तारीख. अपना सबकुछ बेचकर अदालतों के चक्कर काटते फरियादी खुद बन जाते हैं एक तारीख. यह केस हिन्दुस्तान के सताए हुए लोगों का है, उनकी नजरें आप पर गढ़ी हैं आप पर, कि आप उन्हें क्या देते हैं, इंसाफ या तारीख. अगर आप इंसाफ नहीं दे सकते तो बंद कीजिए ये तमाशा.

यह कहानी सिर्फ फ़िल्म दामिनी के किरदार के बलात्कार के बाद न्याय के लिए तरस रही महिला तक ही सीमित नहीं है. कानून की किताबों को खंगालने वाले लोगों पास ऐसा बहुत कुछ है, जिससे लोकतंत्र भी उलझा पड़ा है. संवैधानिक पदों पर बैठे लोग कहने को तो किसी पार्टी के नहीं, लेकिन उनके निर्णय किसी पार्टी से कम भी नहीं हैं. पर्दे के पीछे गठजोड़ के इसी बंधन को लोकतंत्र में परिभाषित नहीं किया गया. उसे रोकने के लिए ऐसे कदम नहीं उठाए गए, जिनसे इस तरह के गठजोड़ रूक सकें.

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बात करें राजस्थान के सियासी घमासान की तो यहां गहलोत सरकार विधानसभा सत्र बुलाने के लिए तारीख मांग रही है. उन्हें तारीख तो मिल नहीं रही बल्कि तारीख पर तारीख का एक नया सिलसिला शुरू हो गया है. संविधान की बात करें तो एक बात साफ है कि केबिनेट के विधानसभा सत्र बुलाने संबंधी निर्णय, प्रस्ताव को मानने के लिए राज्यपाल बाध्यकारी है.

सबसे पहले केबिनेट की मुहर के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधानसभा सत्र बुलाने सम्बन्धी एक प्रस्ताव राजभवन में राज्यपाल कलराज मिश्र को भिजवाया. जब इस पर जवाब नहीं आया या कहें राज्यपाल ने अनुमति नहीं दी तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सभी विधायकों के साथ राजभवन जाकर राज्यपाल से विधानसभा का सत्र बुलाने के लिए निवेदन किया. राज्यपाल ने इंतजार भी करवाया.

इसके बाद गहलोत केबिनेट द्वारा भेजे प्रस्ताव के जवाब में राज्यपाल ने सरकार को एक पत्र भेजकर 6 बिंदुओं पर जवाब मांग लिया. अब गहलोत सरकार ने रात 2 बजे तक फिर अगले दिन कई घंटों तक विचार विमर्श के बाद राज्यपाल को 6 बिंदुओ का जवाब भिजवाते हुए दूसरा संशोधित प्रस्ताव भिजवा दिया. इस पर सत्र चलाने की अनुमति के जवाब के बदले एक बार फिर से राज्यपाल ने 3 नए बिंदुओं पर जवाब मांग लिया. जिसके अंदर विधानसभा स्पीकर की जिम्मेदारियों की चिंता भी राज्यपाल महोदय ने ही कर ली.

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खैर, अब गहलोत सरकार एक बार फिर इन तीन बिंदुओं का जवाब का जवाब तैयार करने में जुटी है जिसके लिए मुख्यमंत्री आवास पर केबिनेट की बैठक में तीसरा प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है. अब हालात ऐसे बन गए हैं कि एक चुनी हुई सरकार पूरे बहुमत के साथ राजभवन जाने के बाद भी विधानसभा सत्र नहीं बुलवा पा रही, जो कि उसका संवैधानिक अधिकार है. उधर राज्यपाल भी संवैधानिक अधिकारों के हिसाब से ही निर्णय कर रहे हैं, इधर गहलोत सरकार भी संवैधानिक अधिकार को पाने के लिए जूझती नजर आ रही है. इस बीच राज्यपाल ने संविधान का हवाला देते हुए यह भी बता दिया कि सत्र बुलाने के लिए 21 दिन का नियम भी प्रमुखता रखता है.

इस हिसाब से तो राज्यपालों के संवैधानिक अधिकार भी हर राज्य के लिए अलग-अलग नजर आते हैं. महाराष्ट्र में सरकार के लिए न सिर्फ राजभवन बल्कि राष्ट्रपति भवन तक रात तीन बजे खुल जाते हैं और सुबह 5 बजे दो लोगों को मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की शपथ दिला दी जाती है. वो भी ऐसे मुख्यमंत्री को जिनके पास बहुमत ही नहीं होता है. उधर कर्नाटक में राज्यपाल किसी ओर भूमिका में नजर आते हैं तो गुजरात और मध्य प्रदेश में किसी ओर तरह का निर्णय राज्यपाल करते हैं.

अपन तो सौ बातों की एक बात जानते हैं, अगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास 101 या उससे ऊपर विधायकों का आंकड़ा है, तो तारीख आज मिले या कल, या फिर किसी और दिन, 101 विधायक गहलोत को सारे षड़यंत्रों को हराते हुए न्याय दिलवाने की ताकत रखते हैं. तारीख के इस खेल में वो सब भी बेनकाब हो चुके हैं, जो विधानसभा सत्र बुलाने की मांग से इधर-उधर भाग रहे हैं. जो कांग्रेस के पायलट खेमे के 19 विधायकों के गहलोत के प्रति विद्रोह करने के बाद भी प्रमुख विपक्षी दल होने के बाद भी विधानसभा में गहलोत को बहुमत साबित करने के लिए नहीं ललकार रहे हैं. तारीखों के इस खेल में जरूर कुछ ना कुछ तो ऐसा चल रहा है, जो हमसे यानि जनता से छुपाया जा रहा है.

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खैर, राजस्थान की गहलोत सरकार को ही नहीं अब जनता को भी अब उस तारीख का इंतजार है, जब इस पूरे राजनीतिक तमाशे की कलई खुलेगी या दूसरे शब्दों में अंत होगा. अब महामहिम यह तारीख कब की देंगे यह देखना भी बड़ा दिलचस्प होगा. उस तारीख तक क्या-क्या सियासी घटनाक्रम होंगे, यह भी बड़ा दिलचस्प रहेगा.

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