ajit pawar
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Maharashtra Political Crisis: 2019 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बाद प्रदेश की सियासत और राजनीति में काफी कुछ ऐसा देखने को मिला, जिस पर विश्वास करना तो दूर की बात, सोचना भी नामुमकिन था. हर बार कुछ नाटकीय क्रम में ऐसा घट रहा है जिसकी उम्मीद किसी को नहीं है. राजनीतिक विशेषज्ञों की छोड़िए, खुद विस चुनावों में वोट दे रही जनता भी इसी गफलत में है कि जिसको भी चुना, वो सही है या फिर गलत. खिचड़ी बन चुकी महाराष्ट्र की राजनीति में बीते दिवस फिर एक भुचाल आ गया जब एनसीपी के अजीत पवार ने अपने चाचा और पार्टी सुप्रीमो शरद पवार का साथ छोड़कर शिंदे और बीजेपी से हाथ मिलाया और केवल 12 महीनों में ही फिर से डिप्टी सीएम की शपथ ले ली. वे 13 साल में 5वी बार उप मुख्यमंत्री बने.

हालांकि एनसीपी प्रमुख शरद पवार से अजीत पवार का अलगाव काफी समय से चल रहा था लेकिन बीते दो साल से बात मनभेद से बढ़कर मतभेद तक आ चुकी थी. दरअसल अजित पवार सिर्फ सुप्रिया सूले के कार्यकारी अध्यक्ष बनाने से नाराज नहीं थे. वे पिछले दो साल से शरद पवार के रुख से भी नाराज चल रहे थे. दरअसल शरद पवार की वजह से ही अजित पवार 2019 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे. महाराष्ट्र में जब महाविकास अघाड़ी सरकार बनी, तो सीएम पद के लिए अजित पवार का नाम सबसे आगे चल रहा था. उनके नाम पर तीनों दलों में कोई विवाद भी नहीं था. इसके बावजूद शरद पवार ने उन्हें बायपास कर उद्धव ठाकरे को सीएम बनवाया.

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वहीं माना यह भी जा रहा है कि अजीत पवार ने शरद पवार के कहने पर ही एक सोची समझी राजनीति के तहत 2019 में देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी, ताकि महाराष्ट्र से राष्ट्रपति शासन हट सके. इसके बाद ही प्रदेश में महाविकास अघाड़ी सरकार का गठन हो पाया था. हालांकि इसकी कीमत अजीत पवार को चुकानी पड़ी और इसके बाद से अजित पवार को पार्टी में शक की निगाह से देखा जा रहा था.

इसके बाद भी कई ऐसे मौके आए जब अजीत पवार को साइड लाइन किया गया. 2021 में सेंट्रल एजेंसियों ने अजीत पवार और उनके परिवार के सदस्यों के घर पर रेड की थी. पारिवारिक सूत्रों की माने तो शरद पवार ने अजीत की मदद नहीं की और खुद को मामले से अलग कर लिया. यहां तक कि अजित के बेटे पार्थ पवार को मावल सीट से लोकसभा चुनाव लड़वाने का भी शरद पवार ने विरोध किया था. अजीत की नाराजगी को देखते हुए केवल मजबूरी में पार्थ को टिकट देना पड़ा था. पार्टी के करीबी सूत्रों से यह भी पता चला है कि पार्थ को शरद पवार के इशारे पर ही ग्राउंड पर सपोर्ट नहीं दिया गया और वे चुनाव हार गए. अजीत पवार को इस बात से अंदर तक धक्का लगा था.

दरअसल इस अनबन की शुरूआत तो 2004 में ही हो चुकी थी जब उस साल हुए विधानसभा चुनाव में राकंपा सबसे बड़ी पार्टी बनी. उस चुनाव में पार्टी को 71 और कांग्रेस को 69 सीटें मिली थीं. इस हिसाब से मुख्यमंत्री का पद एनसीपी को मिलना चाहिए था. अगर ऐसा होता तो निश्चित तौर पर अजीत पवार सीएम बनते लेकिन शरद पवार ने कांग्रेस के साथ बात की और कांग्रेस को मुख्यमंत्री का पद दे दिया. उसके बदले में दो कैबिनेट पद और एक राज्य मंत्री का अतिरिक्त पद लिया. यहीं से शरद पवार और अजित पवार के बीच अनबन शुरू हुई थी.

मतभेद की यह खाई बीते दो तीन महीनों में तब और भी गहरी हो गई जब शरद पवार ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. उस समय अजीत पवार ही अध्यक्ष पद की रेस में सबसे आगे चल रहे थे लेकिन उनके मनसूबों पर तब पानी फिर गया जब शरद पवार ने इस्तीफा वापिस ले लिया. कुछ दिनों बाद सुप्रिया सूले को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष घोषित कर दिया गया. इसकी वजह सुप्रिया की राष्ट्रीय राजनीति में उपस्थिति को बताया गया जबकि अजीत ने अपने आपको एक स्थानीय लीडर की छवि से बाहर निकलने नहीं दिया. हालांकि इसके बाद से ही माना जा रहा है कि सुप्रिया सुले NCP चीफ की अगली उत्तराधिकारी हैं. बस यहीं से अजीत पवार के मन में कड़वाहट अधिक बढ़ने लगी. यही वजह रही कि सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने के बाद अजित ने नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ने का ऐलान कर दिया.

इसके अलावा भी कई ऐसे मौके बने जहां अजीत को नीचा दिखाने की कोशिश की गई. हाल में 28 जून को दिल्ली में हुई एनसीपी की कार्यकारिणी की बैठक में मंच पर लगे पोस्टर में अजीत पवार को जगह नहीं मिली. इस बात से भी अजीत काफी नाराज हुए. इस पोस्टर में शरद पवार के साथ कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल थे. यहीं से अजीत के बीजेपी और शिंदे गुट के साथ जाने की परिपाठी रची गई और महाराष्ट्र के सियासी समीकरण दो जुलाई को एक बार फिर पलट गए.

एनसीपी के प्रमुख नेता और प्रदेश के पूर्व डिप्टी सीएम अजीत पवार ने चाचा शरद पवार का दूसरी बार साथ छोड़ा और 8 सीनियर विधायकों के साथ बीजेपी-शिवसेना (शिंदे गुट) सरकार में शामिल हो गए. आनन फानन में ही अजीत को डिप्टी सीएम की शपथ दिलाई गई. एनडीए ने जितनी तेजी अजीत पवार को डिप्टी सीएम और उनके विधायकों को मंत्री बनाने में दिखाई, उतनी ही रफ्तार से पार्टी ने अजीत पवार को एनसीपी से अलग करने में दिखाईं अब महाराष्ट्र की वास्तविक राजनीति बीजेपी, एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना के साथ शिंदे गुट एवं अजीत पवार गुट सहित 6 भागों में बंट गई है. आने वाले लोकसभा चुनाव में शिंदे गुट और अजीत पवार खेमे को पार्टी से की गई दगाबाजी और अपनी की गई भूल का अंदाजा किस तरह से होगा, इसके लिए ज्यादा वक्त इंतजार नहीं करना होगा.

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