Politalks.News/Punjab-UP. कोरोना महामारी की दूसरी लहर के कमजोर होने के साथ-साथ देश के कई राज्यों में सियासी सरगर्मियां तेज होने लगी हैं. कई राजनीतिक दलों ने सियासी मोहरे तलाशने शुरू कर दिए हैं. अगले साल होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों में आपाधापी शुरू हो गई है. आज एक बार फिर पंजाब के सियासी पटल पर दो पुराने साथियों ने हाथ मिला लिए हैं. दोनों राजनीतिक दलों को एक दूसरे की मौजूदा समय में ‘जरूरत‘ भी थी. चर्चा को आगे बढ़ाने से पहले यहां हम आपको बता दें कि ‘बसपा के संस्थापक कांशीराम को उत्तर प्रदेश और पंजाब की सियासत ज्यादा भाती रही है‘.
ऐसे में एक बार फिर बसपा को पंजाब में अपनी पुरानी ‘दोस्ती‘ याद आ गई. उत्तर प्रदेश के बाद सबसे अधिक पंजाब में बीएसपी का ‘वोट बैंक’ मजबूत माना जाता रहा है. यूपी में ‘सुस्त‘ होती जा रही पार्टी अब पंजाब में अपनी ‘जड़ें‘ एक बार फिर से मजबूत करने के लिए तैयार है. साल 2022 की शुरुआत में पांच राज्यों के साथ पंजाब में भी विधानसभा चुनाव होने हैं. मौजूदा समय में पंजाब में कांग्रेस की सत्तारूढ़ सरकार है. पिछले 25 सालों से यहां अकाली दल और भाजपा का गठबंधन रहा है. लेकिन पिछले वर्ष कृषि बिल के विरोध में अकाली दल भाजपा (एनडीए) से अलग हो गई. अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल भी पंजाब विधानसभा चुनाव को लेकर ‘साथी‘ की तलाश में थे.
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ऐसे में बसपा सुप्रीमो मायावती ने शनिवार को अकाली दल से गठबंधन करके भाजपा की संभावनाओं को ‘खत्म‘ कर दिया. कुछ दिनों पहले तक अटकलें यह भी लग रही थी कि पंजाब चुनाव में एक बार फिर अकाली दल एक साथ मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं. दोनों दलों के गठबंधन के बाद मायावती और सुखबीर बादल ने इसे ‘ऐतिहासिक दिन‘ करार दिया. गठबंधन के बाद बसपा को अपना 25 साल पुराना साथी मिल गया है जो भाजपा ने ‘छीन‘ लिया था. अकाली दल के साथ गठबंधन करने में एक बार फिर मायावती के खास सिपहसलार और पार्टी के रणनीतिकार सतीश मिश्रा ने प्रमुख भूमिका निभाई.
आपको बता दें, बीएसपी और शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के बीच गठबंधन की घोषणा करने के लिए बसपा के महासचिव सतीश मिश्रा पहले ही चंडीगढ़ पहुंच गए थे. अकाली दल नेता सुखबीर बादल और सतीश मिश्रा ने शनिवार को गठबंधन का एलान किया. इस अवसर पर बसपा सांसद सतीश मिश्रा ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक दिन है क्योंकि शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन किया गया है, जो पंजाब की सबसे बड़ी पार्टी है. बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश मिश्रा ने कहा कि हम कांग्रेस के नेतृत्व में भ्रष्टाचार और घोटालों को खत्म करने के लिए काम करेंगे.
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बता दें कि सीट शेयरिंग फॉर्मूले के तहत राज्य की 117 सीटों में से अकाली 97 और बसपा 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. बीएसपी के हिस्से में जालंधर के करतारपुर साहिब, जालंधर पश्चिम, जालंधर उत्तर, फगवाड़ा, होशियारपुर सदर, दासुया, रुपनगर जिले में चमकौर साहिब, पठानकोट जिले में बस्सी पठाना, सुजानपुर, अमृतसर उत्तर और अमृतसर मध्य आदि सीटें आईं हैं. जहां से बसपा चुनाव लड़ेगी इन इलाकों को दलित बाहुल्य माना जाता है. गठबंधन के बाद बसपा चीफ मायावती ने ट्वीट कर कहा कि ‘पंजाब में आज शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी द्वारा घोषित गठबंधन यह एक नया राजनीतिक व सामाजिक पहल है, जो निश्चय ही यहां राज्य में जनता के बहु-प्रतीक्षित विकास, प्रगति व खुशहाली के नए युग की शुरुआत करेगा, इस ऐतिहासिक कदम के लिए लोगों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं’.
वहीं अकाली दल ने भी इसे ऐतिहासिक दिन करार दिया. अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि दोनों पार्टियों की सोच दूरदर्शी है, दोनों ही पार्टियां गरीब किसान मजदूरों के अधिकारों की लड़ाई लड़ती रही है, ये पंजाब की सियासत के लिए ऐतिहासिक दिन है. आइए अब आपको ढाई दशक पहले लिए चलते हैं.
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साल 1996 में अकाली दल-बसपा गठबंधन के साथ पंजाब में ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी
बता दें कि तीन दशक पहले 1992 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 9 विधानसभा सीटें जीतकर पंजाब की राजनीति में अपनी ‘दमदार शुरुआत‘ की थी. इसके बाद अकाली दल और बसपा ने 1996 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन किया था. बसपा की कमान कांशीराम के हाथ में थी और यूपी में मायावती मुख्यमंत्री बन चुकी थीं. दलितों के बीच बसपा ने काफी हद तक जगह बना ली थी. 1996 के चुनाव में पंजाब में अकाली-बसपा गठबंधन को जोरदार सफलता मिली थी, राज्य की 13 लोकसभा सीटों में से 11 सीटें इस गठबंधन ने झटकी थींं, जिसमें अकाली दल को 8 और बसपा को 3 सीटें मिली थीं. उस समय तत्कालीन बसपा सुप्रीमो कांशीराम पंजाब से चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे थे. लेकिन उसके बाद अकाली दल ने बीजेपी के साथ हाथ मिला लिया था और तब से लेकर एनडीए गठबंधन 2020 तक चलता रहा. पिछले वर्ष मोदी सरकार के संसद के दोनों सदनों में किसान विधेयक पारित कराने के बाद शिरोमणि अकाली दल ने एनडीए से खुद को अलग लर लिया.
इस तरह अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले शिरोमणि अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर बादल ने एक बड़ा सियासी दांव खेला. दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में घटते बजनाधार से परेशान बसपा को भी नए साथी की तलाश थी. गौरतलब है कि पंजाब में दलितों का करीब 34 फीसदी वोट बैंक है और शिअद के सुखबीर सिंह बादल चुनाव जीतने के बाद दलित समुदाय से डिप्टी सीएम बनाने का एलान कर चुके हैं.
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कांग्रेस में कैप्टन अमरिंदर सिंह बनाम नवजोत सिद्धू की खींचतान के बीच अकाली और बसपा का यह मिलन अहम हो सकता है. हालांकि कांग्रेस में बिगड़े हालातों को सही करने और सिद्धू को सम्मान देने की पूरी कोशिशें हो रही हैं. लेकिन इस हालत और नए समीकरणों के बीच बीजेपी को राज्य में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है. बता दें कि पंजाब में अगले साल चुनाव होने हैं और तीन कृषि कानूनों को लेकर राज्य में इस समय जबरदस्त विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं. ऐसे में आने वाले समय में सबकी नजर अब बसपा और अकाली दल के समीकरणों पर होगी.