पॉलिटॉक्स ब्यूरो. देश में इन दिनों नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप (NRC) को लेकर माहौल काफी गर्म है. इसी बीच राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) की नई पहेली और आ गई. लेकिन देश में सबसे अधिक डर एनआरसी को लेकर समाया हुआ है. इसके चलते अब जिन घरों में बच्चे जवान हो रहे हैं और उन्हें बहू चाहिए तो वे वैवाहिक विज्ञापनों में भी इस नियम को ध्यान में रखकर ही विज्ञापन दे रहे हैं. अब घरों में सुंदर, सुशील और पढ़ी लिखी बहू तो चाहिए लेकिन ये सब गुण दूसरी प्राथमिकता हैं. बहू में सबसे जरूरी बात तो ये मांगी जा रही है कि उसके पास भारतीय नागरिकता का सबूत है या नहीं. (Indian citizen)
पढ़ने में थोड़ा अजीब जरूर लग रहा है लेकिन सच है. नागरिकता कानून (Indian citizen)लागू होने के बाद अब वैवाहिक विज्ञापनों का भी एंगल बदला जा रहा है. ऐसा ही एक अनोखा विज्ञापन बंगाल के एक दैनिक अखबार पत्र में प्रकाशित हुआ है. विज्ञापन में लिखा गया है, ‘बहू ऐसी चाहिए जिसके पास भारतीय नागरिक होने का सबूत हो. 1971 से पहले उसके परिवार का भारत में रहना अनिवार्य होना चाहिए. विवाह के लिए कन्या पक्ष को बाकायदा कागजी सबूत दिखाना होगा. वर स्कूल शिक्षक है और मुर्शिबाद में रहते हैं लेकिन उनका पैतृक निवास उत्तर 24 परगना जिले के हाबरा में है. विज्ञापन में संपर्क के लिए एक फोन नंबर दिया गया है जो वर के जीजाजी का है.
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हालांकि माना जा रहा है कि ये विज्ञापन नागरिकता संशोधन कानून के विरोध कर प्रचार पाने का एक हथकंडा है. लेकिन इस विज्ञापन ने ये तो कम से कम जता ही दिया है कि सच में बंगाल में सीएए और एनआरसी को लेकर कितना डर समाया हुआ है. खुद बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी किसी भी कीमत पर ये दोनों कानून प्रदेश में नहीं लागू करने की धमकी केंद्र सरकार को दे चुकी है. हाल में उन्होंने सरकारी खर्चे पर नो सीएए नो एनआरसी का विज्ञापन भी मीडिया में प्रकाशित कराया था जिस पर कोलकाता हाईकोर्ट ने संज्ञान लेते हुए ऐसा करने के लिए सरकार को पाबंद किया. इसके बावजूद बंगाल सहित देश के अन्य राज्यों में विरोध कम नहीं हुआ है. (Indian citizen)
इसी बीच जब वैवाहिक विज्ञापन देने वाले व्यक्ति से संपर्क किया गया जो उन्होंने बताया कि एनआरसी और सीएए की आंच उनके परिवार पर भी पड़ चुकी है. शादी के लिए कन्या पक्ष से केवल भारतीय नागरिकता के कागजी सबूत के अलावा कुछ नहीं चाहिए. अगर शादी के बाद बहू की नागरिकता खतरे में पड़ती है तो उसे डिटेंशन कैंप भेजा जा सकता है. अगर ऐसा हुआ तो वर के छोटे भाई का क्या होगा, इसलिए ये शर्त रखी गई है. वर पक्ष का डर इस बात से ही पता चल जाता है कि राशन कार्ड और आधार कार्ड पर भी भरोसा करने को तैयार नहीं. वर पक्ष के अनुसार, सरकार कब क्या करेगी, पता नहीं इसलिए 1971 से पहले का रिकॉर्ड मांगा गया है.
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खैर…ये तो बात रही बंगाल की लेकिन एनआरसी लागू होने के बाद देशभर में ये स्थिति देखने को मिल सकती है. वजह ये है कि अगर सरकार आधार कार्ड या फिर ऐसे ही दस्तावेज नागरिकता रजिस्टर में शामिल नहीं करती तो ऐसे अनगिनत मामले सामने आएंगे जिनके पास 1971 से पहले देश में रहने का कोई सबूत नहीं है. उस परिस्थतियों से दो चार होने से पहले ही बंगाल का ये परिवार शायद पहले से ही समझ चुका है. आने वाले समय में समाचार पत्र ऐसे ही (Indian citizen)वैवाहिक विज्ञापनों से भरा नजर आए, इस बात में कोई अचैंभा नहीं होना चाहिए.