पाॅलिटाॅक्स न्यूज. भारत और चीन सीमा पर 1962 के बाद का अब तक का सबसे तनाव भरा समय शुरू हो गया है. लद्दाख क्षेत्र में स्थित एलएसी पर दोनों देशों की सेनाएं संभावित युद्ध की आशंका के बीच लाव लश्कर के साथ तैनात हो चुकी है. चीन के सैनिक भारतीय सीमा में अंदर आकर बैठ चुके हैं और सीमा विवाद के बीच वापस जाने का नाम नहीं ले रहे. पिछले कुछ दिनों में बढ़े तनाव के बीच सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर दोनों देशों के बीच बातचीत शुरू हो चुकी है. विवाद सुलझाने के लिए पहली बार दोनों देशों के बीच पूर्वी लद्दाख में लेफ्टिनेंट लेवल के अधिकारियों के बीच वार्ता भी चल रही है.
वार्ता में जहां एक ओर भारत ने कहा कि चीन भारतीय क्षेत्र में घुसी अपनी सेनाओं को वापस हटाएं, वहीं चीन ने कहा कि भारत सीमाओं के नजदीक बन रही सड़कों के निर्माण कार्यों को रोके. हालांकि भारत ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया है. यही नहीं, झारखंड से करीब 12 हजार मजदूरों को लद्दाख बॉर्डर पर सड़क निर्माण कार्य के लिए भेजे जाने को भी स्वीकृति दे दी गई है. भारत चाहता है कि सड़क निर्माण कार्य जल्द से जल्द पूरा किया जा सके. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) को राज्य के 11,800 से अधिक श्रमिकों को महत्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए भर्ती करने की अनुमति दे दी है. मजदूरों को बॉर्डर तक पहुंचाने के लिए 11 विशेष रेलगाडियां उपलब्ध कराई जाएंगी.
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आखिर चीन को भारत में बन रही इन सड़कों से क्या परेशानी हो सकती है? आखिर चीन के लिए 73 सामरिक महत्व की इन सड़कों से कौनसा भय या चिंता सता रही है कि वो इन सड़कों के निर्माण का रूकवाना चाहता है? इससे पहले भारत और चीन के बॉर्डर की स्थिति को समझना जरूरी है.
5 राज्यों से जुड़ी है भारत-चीन की सीमाएं
भारत और चीन का बॉर्डर देश के पांच राज्यों से जुड़ा है. जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम एवं अरुणाचल प्रदेश से जुड़ा यह बॉर्डर लगभग 4 हजार किलोेमीटर लंबा है. चीन एक बार नहीं, कई बार वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लधंन कर सीमा पर तनाव बढ़ाता रहा है. दोनों देशों के बीच करीब 300 किलोमीटर के बीच कोई निश्चित एलएसी नहीं होने के कारण अक्सर तनाव बन जाता है. लंबी बातचीतों के बाद यह तनाव समाप्त हो जाता है और स्थितियां पहले की तरह बहाल हो जाती है.
खास बात यह है कि सीमा रेखाओं का उल्लघंन एक तरफा होता है और यह चीन के द्वारा किया जाता है. कभी भी ऐसी स्थिति नहीं बनती जैसी कि इस बार बनी है. इस बार चीन न सिर्फ भारत की सीमा में घुस आया है बल्कि उसने अपनी फौज का भी जमावड़ा कर लिया है. उसने लद्दाख क्षेत्र में भारतीय सीमा में अपने बंकर बना दिए हैं और आर्मी टेंट लगा दिए है. इसके चलते भारत ने भी चीन की सेना के बराबर अपने सैनिक तैनात कर दिए हैं. इसके साथ ही युद्ध के साजो समान भी तैयार कर लिए हैं.
2017 में चीन के सड़क निर्माण पर हुआ गतिरोध
चीन सीमा से जुड़े पांच राज्यों के अंदर भारत की ओर से 73 सड़कों का निर्माण कराया जा रहा है. यह सड़कें भारत के सामरिक महत्व से जुड़ी हैं. इन सड़कों के बनने के बाद आपातकाल की स्थिति में भारतीय सेनाओं को चीन सीमाओं तक आसानी से पहुंचाया जा सकेगा. 2017 में हुए डोकलाम गतिरोध के बाद भारत सतर्क हो गया है. भारत चीन से सटी लंबी सीमा के करीब कई रणनीतिक बिंदुओं पर सैन्य उपकरण पहुंचाने लगा है.
भारत ने सड़क समेत बुनियादी संरचना का विकास बड़े स्तर पर शुरू कर दिया है. चीन की सीमा के पश्चिमी और पूर्वी हिस्से के नजदीक 31 हवाई क्षेत्रों का विकास किया गया है. इनमें असम के चाबुआ और तेजपुर के एयरपोर्ट सबसे अहम हैं. इसके अलावा भारत ने अरुणाचल के तवांग और दिरांग में दो एडवांस लैंडिंग ग्राउंड (एएलजी) का भी निर्माण किया है.
48 घंटों में सीमा पर पहुंच सकती है चीनी सेना
चीन भी लगातार इन क्षेत्रों में सामरिक परियोजनाओं को चला रहा है. भारत के साथ लगने वाली उसकी सीमाओं पर उसने योजनाओं को पूरा किया है. बीते कुछ वर्षों के दौरान चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के करीब अपने बुनियादी ढांचे के विकास के कई कार्य पूरे किए हैं. जानकारी के मुताबिक चीन ने तिब्बत और युन्नान प्रांत में बड़े स्तर पर सड़कों और रेल नेटवर्क का जाल बिछा लिया है.
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चीन ने भारत की सीमा पर 15 प्रमुख हवाई अड्डे और 27 छोटी हवाई पट्टियों का निर्माण पूरा कर लिया है. इनमें हर तरह के मौसम में इस्तेमाल किया जाने वाला तिब्बत का गोंकर का एयरपोर्ट है, जहां एडवांस फाइटर प्लेन तैनात किए गए हैं. खबरें हैं कि चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास करीब 31 जगहों पर पक्की सड़कें बना ली हैं. चीन का दावा है कि चीनी सेना सिर्फ 48 घंटों में सीमा पर पहुंच सकती है.
चीन लगातार कर रहा सैनिक पोस्ट का निर्माण
चीन की ओर से गलवान घाटी में बड़ी तादाद में अपने बॉर्डर डिफेंस रेजिमेंट के सैनिकों को आगे लाया है. इनके साथ सैनिकों के रहने की जगह बनाने के लिए भारी उपकरण भी आगे लाए गए हैं. कई सैटेलाइन इमेज में चीनी सेना की टैंक और गाड़ियां साफ नजर आ रही हैं. गलवान नदी काराकोरम पहाड़ से निकलकर अक्साइ चिन के मैदानों से होकर बहती है, जिस पर चीन 1950 के दशक में अवैध कब्जा कर लिया था. चीन पहले ये मानता रहा कि उसका इलाका नदी के पूर्व तक ही है लेकिन 1960 से उसने इस दावे को नदी के पश्चिमी किनारे तक बढ़ा दिया.
जुलाई 1962 में गोरखा सैनिक के एक प्लाटून ने जब गलवान घाटी में अपना कैंप लगाया तो चीनी सेना ने उसे घेर लिया. ये 1962 के युद्ध की सबसे लंबी घेरेबंदी थी, जो 22 अक्टूबर तक जारी रही जब चीनी सेना ने भारी गोलाबारी कर पोस्ट को तबाह कर दिया. युद्ध के बाद भी चीनी सेना उसी सीमा तक वापस गई जो उसने 1960 में तय की थी यानि अवैध कब्जा बरकरार रखा. इस बार भी चीन ने अपने सैनिकों को उस जगह तक तैनात कर दिया है जो उसके दावे के मुताबिक उसकी सरहद यानि चाइनीज क्लेम लाइन है.
भारत भी सामरिक स्थिति मजबूत करने में जुटा
हालांकि भारत और चीन के सैनिकों के बीच कई बार झड़प होती है लेकिन इस बार हालात अलग हैं. इसकी वजह भारत का तेजी से इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाना है. भारत-चीन के बीच 1962 में हुए युद्ध के बाद चार दशक से ज्यादा समय तक इन क्षे़त्रों में कोई सड़क या पुल नहीं बनाया गया. लेकिन 2006 में भारत ने अपनी रणनीति में बड़ा परिवर्तन करते हुए हिमालय के इलाकों में 73 रणनैतिक महत्व की सड़कें बनाने का काम बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन को सौंप दिया.
भारत ने जनवरी 2019 में चीन सीमा तक तेजी से सैनिक साजोसामान पहुंचाने के लिए 21000 करोड़ रुपये की लागत से 44 रणनैतिक महत्व की सड़कें बनाने की भी घोषणा की. ये सड़कें लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में बनाई जाएंगी. लद्दाख में रणनैतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण दौलत बेग ओल्डी तक पहुंचने के लिए बनाई गई 255 किमी लंबी दुरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड भी पिछले साल अप्रैल में यातायात के लिए खोल दी गई. इस सड़क के जरिए डेपसांग मैदान, रूकी नाला होते हुए काराकोरम तक आसानी से और बहुत कम वक्त में पहुंचा जा सकता है. यानि जो सफर 90 के दशक में 20 दिनों में पूरा होता था उसे अब 12 घंटे में पूरा किया जा सकता है. सैनिकों और साजो-सामान को पहुंचाने के लिए अब साल भर हवाई जहाज के बजाए इस सड़क का इस्तेमाल किया जा सकता है.
मौजूदा तनाव की जगह गलवान घाटी तक पहुंचने का रास्ता भी इस सड़क के बनने से आसान हुआ है. जाहिर है एलएसी पर तेजी से हो रहे इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण से चीन परेशान है क्योंकि इससे एलएसी पर उसकी अब तक मजबूत रही स्थिति कमजोर हो रही है.
भारत बना रहा है 17 सामरिक महत्व की टनल
सड़कों के अलावा 2017 में भारत ने एलएसी पर 17 रणनैतिक टनल बनाने की भी शुरुआत की. इनमें लद्दाख तक पूरे साल आवागमन खोले रखने के लिए मनाली से लेह के बीच लाचुंग ला, बारालाच ला और तंगलांग ला के अलावा श्रीनगर से लद्दाख को जोड़ने वाले जोजिला पास बनने वाली टनल शामिल हैं. इन्हीं टनल में से एक अरुणाचल प्रदेश के सेला पर बन रही है जिसका काम पिछले साल फरवरी में शुरू हो चुका है. सेला वही जगह है जहां 1962 में भारतीय सेना को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था. इस टनल से असम के तेजपुर से एलएसी तक पहुंचना बेहद आसान हो जाएगा. सिक्किम में भी रणनैतिक रूप से महत्वपूर्ण टनल इस सूची में शामिल हैं.
मानसरोवर मार्ग से भी चीन को परेशानी
उत्तराखंड से मानसरोवर मार्ग को आसान करने के लिए एक महत्वपूर्ण सड़क खुलने से चीन की परेशानी और बढ़ गई. ये सड़क धारचुला को लिपलेक पास से जोड़ती है जो इस मार्ग में भारत की सीमा पर पड़ता है, हालांकि इस सड़क का मुख्य उद्देश्य मानसरोवर यात्रियों की सुविधा है लेकिन इससे रणनैतिक रूप से महत्वपूर्ण ट्राई जंक्शन तक सैनिक आवागमन में आसानी होगी. चीन ने यहां नेपाल को आगे किया और एक नया नक्शा पेश करवाया जिसमें भारत के कई हिस्से नेपाल में शामिल दिखाए गए हैं. इन सभी जगहों पर बहुत लंबे अरसे से भारत का ही कब्जा है और नेपाल को कभी आपत्ति नहीं हुई. यहां चीन ने नेपाल को आगे करके पुरानी संधियों और नक्शों को नकारकर, तथ्यों को तोड़ मरोड़कर नया विवाद पैदा कराया.
अब आगे क्या
दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है. इन हालातों के बीच दोनों देशों ने संयम बना रखा है. दोनों देश कूटनीतिक स्तर पर इस तनाव को समाप्त करने के फार्मूले पर काम कर रहे हैं. कोरोना वायरस के चलते जहां चीन पूरी दुनिया की आंखों की किरकिरी बन रहा है, वहीं भारत भी विपरीत हालातों से संघर्ष कर रहा है. बावजूद इसके ऐसा लग नहीं रहा है कि यह मसला डोकलाम विवाद की तरह आसानी से हल हो जाएगा.