BDS admission scam: प्रदेश के 11 बड़े प्राइवेट डेंटल कॉलेजों सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. न्यायाधिपति जेके माहेश्वरी और विजय विश्नोई की पीठ ने राजस्थान में नियमों को ताक पर रखकर एडमिशन देने के एक पुराने मामले में फैसला सुनाते हुए 11 प्राइवेट डेंटल कॉलेजों पर 110 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है. हालांकि उच्चतम न्यायालय ने मानवीय आधार पर उन डॉक्टर्स की डिग्रियां रद्द होने से बचा ली हैं, जिन्होंने अपना कोर्स पूरा कर लिया है, लेकिन कोर्ट ने उनके के लिए एक बड़ी शर्त रखी है, जिसके मुताबिक, इन डॉक्टर्स को शपथ पत्र देकर राज्य में 2 साल तक नि:शुल्क सेवा देनी होगी. पीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि यह राहत केवल पास हो चुके छात्रों के लिए है.
बीती 18 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने शैक्षणिक सत्र 2016-17 के दौरान प्रदेश में हुए बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी (बीडीएस) एडमिशन फर्जीवाड़े पर फैसला सुनाते हुए कहा कि प्रत्येक कॉलेज से 10-10 करोड़ रुपए वसूले जाएंगे. यहां आपको बता दें कि वर्ष 2016 में नीट (NEET) के बाद कॉलेजों में कई सीटें खाली रह गई थीं. ऐसे में 30 सितंबर 2016 को राजस्थान सरकार ने एक आदेश जारी कर नीट के न्यूनतम पर्सेंटाइल में 10% की छूट दी थी. लेकिन इसके बाद भी सीटें खाली रहने पर राज्य सरकार ने 4 अक्टूबर 2016 को विशेष परिस्थिति बताते हुए 5% की अतिरिक्त छूट और दे दी थी.
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इस पर डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया (DCI) ने 5 अक्टूबर 2016 को केंद्र सरकार को पत्र लिखकर इसे नियमों का उल्लंघन बताया था. डीसीआई ने स्पष्ट किया कि पर्सेंटाइल कम करने का अधिकार केवल केंद्र का है. ऐसे में 6 अक्टूबर 2016 को केंद्र सरकार ने राजस्थान सरकार को फटकार लगाते हुए अपना आदेश वापस लेने को कहा और चेतावनी दी कि ऐसे एडमिशन (शुरू से ही) अवैध माने जाएंगे. बावजूद इसके प्रदेश के 11 प्राइवेट कॉलेजों ने इन तारीखों के बीच न केवल सरकारी छूट का फायदा उठाया, बल्कि उससे भी आगे बढ़कर शून्य और नेगेटिव नंबर वाले छात्रों को भी एडमिशन दे दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि 2016-17 में नीट (NEET) के न्यूनतम पर्सेंटाइल को कम करने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास था, जिसे ‘डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया’ (DCI) की सलाह से किया जाना था, लेकिन राजस्थान सरकार ने अपने स्तर पर ही पहले 10% और फिर 5% की छूट दे दी. कोर्ट ने माना कि प्राइवेट कॉलेजों ने लालच के चलते राज्य सरकार द्वारा दी गई छूट से भी आगे बढ़कर ऐसे छात्रों को भी एडमिशन दे दिया जिनके नंबर शून्य या नेगेटिव थे. कोर्ट ने इसे नियमों का खुला उल्लंघन मानते हुए निर्देश दिया कि गलती कॉलेजों और राज्य सरकार की थी, जिसका खामियाजा छात्र क्यों भुगतें. इसलिए डिग्री रेगुलराइज की जा रही है, लेकिन इसे भविष्य के लिए नजीर नहीं माना जाएगा.
बता दें, कोर्ट में बहस के दौरान डीसीआई के वकील ने तर्क दिया कि एडमिशन लेने वाले छात्र निर्दोष नहीं हैं, उन्हें पता था कि यह अनियमित है, इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए. वहीं छात्रों के वकील ने तर्क दिया कि 2018 में हाईकोर्ट की सिंगल बेंच और बाद में डिवीजन बेंच के अंतरिम आदेशों के भरोसे उन्होंने पढ़ाई पूरी की है, ऐसे में अब छात्रों की डिग्री छीनना उनके जीवन के साथ खिलवाड़ होगा.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राहत पाने वाले सभी डॉक्टर्स को एक शपथ पत्र देना होगा कि भविष्य में जब भी राज्य सरकार को प्राकृतिक आपदा, महामारी या स्वास्थ्य आपातकाल या किसी भी सार्वजनिक संकट के समय में जरूरत होगी, वे 2 साल तक बिना किसी वेतन के सेवा देंगे. यदि कोई छात्र यह शपथ पत्र नहीं देता है, तो उसकी जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दी जाएगी और शपथ पत्र नहीं देने पर डिग्री की मान्यता खतरे में पड़ सकती है. इसके साथ ही कोर्ट ने इस फर्जीवाड़े में शामिल प्रत्येक अपीलकर्ता कॉलेज पर 10 करोड़ रुपए और राजस्थान सरकार पर 10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है. यह राशि 8 सप्ताह में ‘राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण’ (RSLSA) के पास जमा करानी होगी.
उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में निर्देशित किया है कि इस राशि को फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) में रखा जाएगा और इससे मिलने वाले ब्याज का उपयोग राज्य के ‘वन स्टॉप सेंटर’, ‘नारी निकेतन’, वृद्धाश्रमों और Child Care Institutions के रखरखाव और सुधार के लिए किया जाएगा. इसके सही उपयोग की निगरानी के लिए राजस्थान हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस 5 जजों की एक कमेटी बनाएंगे, जिसमें कम से कम एक महिला जज शामिल होंगी.
























