Politalks.News/Delhi. कांग्रेस पार्टी में कमाल की राजनीति हो रही है. पता नहीं है कांग्रेस आलाकमान से मामला संभल नहीं रहा है या संभालने की इच्छा नहीं हो रही है या जान बूझकर संकट पैदा किया गया है. पर हकीकत यह है कि देश के 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कांग्रेस के सिर्फ तीन मुख्यमंत्री हैं और इन तीनों मुख्यमंत्रियों के राज्य में सरकार और संगठन का संकट चल रहा है. राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब तीनों राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकार का संकट सुलझ ही नहीं रहा है. महीनों से संकट चल रहा है. कभी प्रभारी बात करते हैं, कभी कोई कमेटी बात करती है तो कभी खुद सोनिया, राहुल और प्रियंका बात करते हैं फिर भी संकट चलता रहता है.
कलह वाले राज्यों में जहां खुलकर गुट आमने-सामने हैं तो वो है पंजाब. पंजाब कांग्रेस की कलह थमने का नाम नहीं ले रही है. यहां भी कांग्रेस की रणनीतिक समझदारी की दाद देनी होगी. यह काम कोई बहुत अव्वल दर्जे का ‘समझदार’ नेता ही कर सकता था कि उत्तराखंड और पंजाब दोनों जगह एक साथ चुनाव होने हैं और उत्तराखंड के सबसे बड़े नेता को पंजाब का प्रभारी बना दिया जाए. कांग्रेस ने यह ‘समझदारी’ का काम किया था. हरीश रावत को पंजाब का प्रभारी बनाया था. पिछले कई महीने से वे पंजाब का झगड़ा सुलझाते रहे. कुछ दिन पहले उनको उत्तराखंड के चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया और उनकी पसंद के गणेश गोंदियाल को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई. इसके बावजूद कांग्रेस ने उनको पंजाब के प्रभारी पद से मुक्त नहीं किया है और किसी नए नेता की नियुक्ति नहीं की है. सो, अभी तक हरीश रावत झगड़ा सुलझाने में लगे हैं. कल भी देहरादून में सभी काम छोड़कर रावत को पंजाब से पहुंचे मंत्रियों के साथ बैठक करनी पड़ी और हो सकता है कि उन्हें इस मसले को लेकर दिल्ली दरबार में भी आना पड़े.
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अब आप अंदाजा लगाइये हरीश रावत खुद अपना चुनाव लड़ेंगे या पंजाब का झगड़ा सुलझाएंगे? उनके पास इतना समय नहीं है कि वे चंडीगढ़ जाकर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले बागी विधायकों से मिल सकें. सो, उन्होंने बागी विधायकों को उत्तराखंड बुलाया. इस तरह से पंजाब कांग्रेस का मामला उत्तराखंड और दिल्ली में सुलझाया जाएगा. अगर यह मामला सुलझ भी जाता है तो आगे क्या होगा? क्या पंजाब में चुनाव की तैयारी, टिकटों का बंटवारा, प्रचार की रणनीति सब उत्तराखंड में बैठ कर हरीश रावत बनाएंगे?. तो उत्तराखंड में चुनाव कौन लड़ेगा?.
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बात करें रावत के उत्तराखंड की तो यहां भी चुनावी लड़ाई त्रिकोणीय होती दिख रही है. कांग्रेस के सामने सत्ताधारी दल भाजपा के साथ आम आदमी पार्टी की भी चुनौती है. कांग्रेस को क्या इतनी सी बात समझ में नहीं आ रही है कि अगर हरीश रावत को उत्तराखंड में मुख्यमंत्री का अघोषित दावेदार बना दिया गया है तो उनको वहां पार्टी को चुनाव लड़ाने दिया जाए और पंजाब में नया प्रभारी नियुक्त हो!. पंजाब में छह महीने में चुनाव हैं अभी किसी जानकार नेता को प्रभारी बनाया जाए तो पूरा समय वहां दे सके तो उससे कांग्रेस को ज्यादा फायदा होगा. लेकिन कांग्रेस में फैसले ऐसे नहीं होते. महीने लटके रहने और नुकसान हो जाने के बाद ही फैसला होता है.