अगस्त के साथ ही कांग्रेस की कलह का भी होगा अंत! सितंबर में बदल जाएगा सत्ता-संगठन का नजारा

तारीख पर तारीख के बाद अब इंतजार खत्म! अगस्त के साथ ही कांग्रेस की कलह का होगा अंत! लगभग सारी कवायद हो चुकी है पूरी, सत्ता और संगठन का मेकओवर करने की तैयारी, खत्म हो सकता है कांग्रेसियों का इंतजार

सितंबर से सत्ता-संगठन में बदलेगा नजारा
सितंबर से सत्ता-संगठन में बदलेगा नजारा

Politalks.News/Rajasthan. राजस्थान में कांग्रेस में कलह की सुलह और मंत्रिमंडल पुनर्गठन को लेकर लेटेस्ट अपेडट जो निकल कर आ रहा है कि 28 अगस्त से 3 सितंबर के बीच कभी भी नए मंत्रियों को शपथ दिलाई जा सकती है. 9 सितंबर से राजस्थान विधानसभा का सत्र शुरू होना है उसको देखते हुए कहा जा रहा है कि सत्र से पहले नए मंत्रियों को भी तैयारी के लिए कम से कम एक हफ्ते का समय तो चाहिए ही, लिहाजा अगस्त के महीने का अंत कांग्रेस की कलह का अंत माना जा रहा है.

राजस्थान में कांग्रेस संगठन और सरकार में होने वाला संभावित फेरबदल सभी की सहमति से हो रहा है. इसका प्रमाण ये है कि ना तो गहलोत औऱ ना ही पायलट कैंप की ओर से कोई बयानबाजी हो रही है. प्रदेश प्रभारी अजय माकन पहले ही कह चुके हैं कि इस शांति का श्रेय तो पार्टी के आलाकमान को दिया जाना चाहिए. सरकार और संगठन में होने वाले संभावित बदलाव में दोनों खेमों, वर्गों, जातियों और क्षेत्रों के हितों, संतुलन को ध्यान में रखकर किया जाएगा. क्योंकि किसी को खुश करने के लिए किसी के साथ अत्याचार नहीं किया जा सकता है.

सूत्रों की माने तो मंत्रिमंडल का शपथग्रहण समारोह 28 से 3 सितंबर के बीच कभी भी करवाया जा सकता है. इसमें अगर पंचायत चुनाव को ध्यान में रखा गया तो सम्भवतः 1 सितंबर के बाद ही शपथ ग्रहण होना तय माना जा रहा है. विधानसभा सत्र को देखते हुए मंत्रियों को विपक्ष के सवालों का जवाब देने के लिए कम से कम 7 दिन का समय तो दिया ही जाएगा. वरना बिना तैयारी के अगर मंत्री विधानसभा सत्र में उतरेंगे तो उनकी और सरकार की फजीहत होना तय माना जा रहा है. अब इसमें भी अगर कुछ गड़बड़ होती है तो शपथग्रहण समारोह विधानसभा सत्र के बाद तक टलना तय है. क्योंकि बीच सत्र में मंत्रिमंडल पुनर्गठन करना रणनीतिक मायनों में बिल्कुल भी ठीक नहीं रहेगा. हालांकि इसकी संभावना .01 प्रतिशत से ज्यादा नहीं है.

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सूत्रों की मानें और मंत्रिमंडल पुनर्गठन की बात करें तो सीएम गहलोत और पूर्व पीसीसी चीफ सचिन पायलट के बीच सहमति होने की खबर है. पायलट खेमे के 4 सिपहसालारों को गहलोत मंत्रिमंडल में जगह दी जाना तय माना जा रहा है. इसके बाद क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों के आधार पर मंत्री बनाए जाने हैं. एक सूत्र का तो कहना है कि हो सकता है किसी भी मंत्री का इस्तीफा नहीं लिया जाए और लेकिन खाली सीटों पर ही मंत्री बनाए जाएं. इसके बाद पायलट कैंप के अन्य विधायकों और समर्थकों को संगठन, निगम, और बोर्डों की राजनीतिक नियुक्तिों में एडजस्ट किया जाएगा. जैसा कि सचिन पायलट हमेशा कहते हैं कि जिन कार्यकर्ताओं ने लाठियां खाई हैं उन्हें सम्मान दिया जाए. पायलट की इस मांग को आलाकमान और सीएम गहलोत ने जायज मानते हुए उन्हें सम्मान देने का निर्णय कर लिया है.

वहीं बात कि जाए पूर्व पीसीसी चीफ और डिप्टी सीएम सचिन पायलट की क्या भूमिका रहेगी इसको लेकर भी दो फॉर्मूले तय किए गए हैं. पहला तो यह है कि पायलट को फिर से पीसीसी की कमान सौंप दी जाए और यहीं उनके लिए सम्मानजनक पद भी माना जा रहा है. क्योंकि इसके बाद सभी विधायकों पर पायलट की पकड़ बढ़ेगी साथ ही पदाधिकारियों की जिम्मेदारी वो अपने हिसाब से तय कर सकेंगे. ये फॉर्मूला आलाकमान पंजाब में लागू कर चुका है. काफी कश्मकश के बाद पंजाब में सत्ता और संगठन में तालमेल बैठता दिख रहा है. वहीं दूसरा फॉर्मूला यह है कि पायलट को दिल्ली केन्द्रीय संगठन में महासचिव बनाकर गुजरात का प्रभार दिया जाए. क्योंकि गुजरात में जल्द ही चुनाव होने हैं और इस राज्य में कांग्रेस को संभावनाएं दिख रही है. ऐसे हालात में गुजरात में किसी दमदार प्रभारी को भेज आलाकमान अपनी जीत को तय करना चाहता है. सचिन पायलट से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अपनी भूमिका तय करने का अधिकार उन्होंने आलाकमान को दे रखा है. आलाकमान जो भी भूमिका तय करेगा वो पायलट को मंजूर होगी.

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इधर पीसीसी में भी बदलाव तय माना जा रहा है सचिन पायलट को पीसीसी चीफ बनाया जाता है तो वो अपनी टीम अपने हिसाब से सीएम गहलोत कैंप के साथ मिलकर बना ही लेंगे. अगर पायलट पीसीसी चीफ नहीं बनते हैं तो राजस्थान में 1+4 का फॉर्मूला जो की पंजाब और उत्तराखंड में लागू किया गया है वो आजमाया जाना तय है. अगर 1+4 फॉर्मूला तय होता है तो पूर्व नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी और पूर्व चिकित्सा मंत्री दुरू मियां को मिल सकता है कार्यकारी अध्यक्ष का पद, गोविंद सिंह डोटासरा प्रदेशाध्यक्ष बने रह सकते हैं. साथ ही दो चौंकाने वाले नाम भी सामने आ सकते हैं. जिसमें एक महिला नेत्री जो मीडिया सेल की जिम्मेदारी निभाती रही हैं उनका नाम प्रायोरिटी पर है. वहीं एक नाम आदिवासी इलाके से भी आ सकता है. ये नेता पहले सांसद रह चुके हैं.

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