बिहार विधानसभा चुनाव से पहले प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी को तीसरा धड़ा माना जा रहा था. साफ सुधरी छवि वाले नेताओं को जनता के बीच लाकर उन्होंने युवा बिग्रेड में एक खास जगह बनायी थी. हालांकि चुनाव परिणाम इसके पूर्णतया उलट रहे. पीके की पार्टी खाता तक नहीं खोल सकी, जबकि पार्टी ने 238 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. आखिर उनकी पार्टी एक भी सीट पर खाता क्यों नहीं खोल पाई, इसका जवाब अब खुद पीके ने दिया है. चुनावी परिणाम के बाद अपनी चुप्पी तोड़ते हुए प्रशांत किशोर ने दावा किया कि चुनाव में ‘कुछ गड़बड़’ जरूर हुई है. हालांकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उनके पास इसका प्रत्यक्ष प्रमाण फिलहाल नहीं है.
बिहार चुनाव में करारी हार पर जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने कहा, ‘चुनाव नतीजे उनके जमीनी आकलन और जनसुराज यात्रा के दौरान मिले समर्थन से बिल्कुल मेल नहीं खाते. कई अंजान पार्टियों को लाखों वोट मिले, जो असामान्य है. बहुत सी चीजें मेल नहीं खातीं. लगता है कुछ गलत हुआ, लेकिन हमारे पास कोई सबूत नहीं है.’
यह भी पढ़ें: एनडीए की प्रचंड लहर के बाद भी बिहार में कैसे छा गए ओवैसी ?
पीके ने एनडीए पर चुनाव के दौरान महिलाओं को बड़े पैमाने पर पैसा बांटने का भी आरोप लगाया. उन्होंने दावा कया कि प्रदेशभर में हजारों महिलाओं को 10-10 हजार रुपये तक दिए गए. उनके मुताबिक, ‘मैंने कहीं नहीं देखा कि सरकारें इस तरह चुनाव के दौरान 50 हजार महिलाओं को पैसा बांटें.’
प्रशांत ने यह भी माना कि जनता के बीच ‘जंगलराज की वापसी’ का डर भी उनकी हार का एक बड़ा कारण बना. उनके अनुसार, कई मतदाताओं को विश्वास नहीं था कि जनसुराज चुनाव जीत पाएगी. उन्हें चिंता थी कि तीसरे विकल्प को वोट देने से कहीं अप्रत्यक्ष रूप से लालू प्रसाद यादव के पुराने ‘जंगलराज’ की वापसी न हो जाए. इस डर ने जनसुराज के संभावित वोटरों को अन्य दलों की ओर मोड़ दिया.
किशोर ने स्पष्ट किया कि हार के बावजूद वे पीछे हटने वाले नहीं हैं. आलोचकों को भी तीखा जवाब देते हुए पीके ने कहा, ‘ये वही लोग हैं जो जीत पर ताली बजाते थे. अगर अब मेरे बारे में अवसान लिख रहे हैं तो यह उनकी राय है. कहानी अभी बाकी है..’.



























