Politalks.News/Bihar. बिहार में विधानसभा चुनाव सरगर्मियां अपने अंतिम दौर में हैं. पहले स्टेज का नामांकन खत्म होने वाला है और चुनाव 28 अक्टूबर को. सभी दलों ने अपनी अपनी रणनीतियां बना ली है. तीन गठबंधन बिहार की राजनीति में हैं महागठबंधन- जिसका नेतृत्व तेजस्वी यादव कर रहे हैं, दूसरा है एनडीए- जिसका नेतृत्व नीतीश कुमार कर रहे हैं और तीसरा गठबंधन है बसपा-रालोसपा, जिसका नेतृत्व उपेंद्र कुशवाहा कर रहे हैं. पप्पू यादव, चिराग पासवान और ओवैसी की पार्टियां अलग अलग चुनावी मैदान में हैं. यहां एक और शख्स का जिक्र ना किया जाए तो बेमानी होगी. वो नाम है पुष्पम प्रिया चौधरी. बिहार में उन्हें मिस्ट्री गर्ल के नाम से जाना जा रहा है.
लंदन में पढ़ी पुष्पम प्रिया ने खुद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है. रातों रात अखबार में इश्तेहार के जरिए बिहार की राजनीति में दस्तक देने वाली पुष्पम प्रिया चौधरी ने अपनी ‘प्लुरल्स पार्टी‘ के फर्स्ट फेज चुनाव के 40 प्रत्याशियों की सूची जारी की है. इसमें सबसे अधिक सामाजिक मुद्दों पर काम करने वाले एक्टिविस्ट, डॉक्टर और अन्य पेशेवर लोग हैं. इनमें से कोई भी प्रत्याशी किसी पार्टी से जुड़ा हुआ नहीं है. यानि पार्टी साफ-सुथरी छवि वाले प्रत्याशियों के बल पर चुनाव लड़ना चाह रही है. पुष्पम खुद मधुबनी जिले के बिस्फी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगी. पुष्पम प्रिया ठेठ बिहारी वाले इमेज को भी भुना रही हैं, जिसे पीएम मोदी के लोकल फॉर वोकल के जरिए वोट की नीति भी समझा जा रहा है.
प्लुरल्स पोल कमिटी की अनुशंसा पर बिहार विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण के 40 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी गई है। शेष 31 की घोषणा अगले 24-36 घंटे में की जाएगी। प्लुरल्स के सभी घोषित प्रत्याशियों को बधाई और शुभकामनाएँ। चलिए बिहार बदलने की शुरुआत करते हैं। #सबकाशासन pic.twitter.com/Obt3fFeLDv
— Pushpam Priya Choudhary (@pushpampc13) October 4, 2020
राजनीतिक विशेषज्ञ इसे बिहार में चुनाव की नई स्ट्रैटजी मान रहे हैं, जिसे दिल्ली के अरविंद केजरीवाल मॉडल से जोड़ा जा रहा है. देखा जाए तो ये कुछ गलत भी नहीं है. पुष्पम प्रिया की बिहार में एंट्री देखें तो ठीक वैसी ही है जैसी दिल्ली में 2013 में हुए विधानसभा चुनावों की थी. राजनीति में नौसिखियों की एक फौज लेकर केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने चुनाव लड़ा और पहले ही चुनाव में 29 सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया. किसी पार्टी को बहुमत न मिलने पर आप पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई और अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने. 6 महीने बाद किसी मामले पर खुद ही धरने पर बैठ गए और बाद में इस्तीफा दे दिया.
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सरकार गिरी तो दोबारा चुनाव हुए. अबकी बार आप पार्टी ने पूरे दिल्ली में ऐसी झाडू फेरी कि कांग्रेस और बीजेपी हो गए चारों खाने चित. 70 में से 67 सीटों पर आप पार्टी के उम्मीदवार जीतकर विधानसभा पहुंचे और तीन सीटें मिली बीजेपी को. इसी साल की शुरुआत में फिर से चुनाव हुए तो जैसी की उम्मीद थी, केजरीवाल एंड पार्टी ने 70 में से 62 सीटों पर कब्जा जमा लिया. 8 सीटें बीजेपी के खाते में गई. कांग्रेस इस बार भी खाली हाथ रह गई.
अब सवाल ये है कि केजरीवाल की पार्टी का जिक्र यहां क्यों किया जा रहा है. दरअसल पुष्पम प्रिया की ‘प्लुरल्स पार्टी’ और अरविंद केजरीवाल की ‘आम आदमी पार्टी’ की कहानी करीब करीब एक जैसी है. पुष्पम प्रिया की पार्टी में जहां डॉक्टर्स, इंजीनियर्स और किसान हैं तो केजरीवाल की गैंग में डॉक्टर्स, इंजीनियर्स के साथ शायर, कवि और पत्रकार टाइप के हाई क्वालिफाइड लोग थे. दोनों की पार्टियों में राजनीति से अनजान लोगों की संख्या 98 फीसदी से भी ज्यादा है जिनका राजनीति से दूर दूर तक कोई सरोकार नहीं रहा.
पुष्पम प्रिया चौधरी की पार्टी प्लूरल्स की टीम जिस तरह से काम कर रही है, उसमें दिल्ली के अरविंद केजरीवाल का मॉडल दिख रहा है. अरविंद केजरीवाल की पार्टी भी ऐसे साफ सुथरे चेहरे वालों के सहारे दिल्ली की सत्ता में आई थी. बिहार में भी ऐसे ही काम किया जा रहा है. दोनों की पार्टी में एक बड़ी समानता ये भी है कि दोनों ही बड़े राजनेताओं की तरह रैली या सभा नहीं कर रहे. ये लोग घर घर जाकर खासतौर पर बस्तियों में जाकर पैदल ही घूम घूमकर प्रचार कर रहे हैं और देसी मुद्दों को इक्ट्ठा कर रहे हैं.
हालांकि दोनों पार्टियों में केवल एक ही अंतर है. जहां केजरीवाल को थोड़ा बहुत भी राजनीति का अनुभव नहीं था, वहीं पुष्पम प्रिया की रगों में राजनीति लहू बहता है. पुष्पम प्रिया चौधरी भले ही सियासत में नई हो लेकिन सियासत उन्हें विरासत में मिली हुई है. दरअसल प्रिया जदयू के लीडर और एमएलसी रह चुके विनोद चौधरी की बेटी हैं. इनके दादा उमाकांत चौधरी भी सियासी लीडर रहे हैं. पुष्पम प्रिया चौधरी ने लंदन के मशहूर लंदन स्कूल ऑफ इकॉनमिक्स से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स और इंग्लैंड के द इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज यूनिवर्सिटी से डेवलपमेंट स्टडीज में भी मास्टर्स की डिग्री ली है.
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विशेष में शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद राजनीति में क्यों आई, के सवाल पर पुष्पम प्रिया चौधरी का कहना है कि वो बिहार के बदलने आई हैं. उनका उद्देश्य बिहार में विकास को उपर पहुंचाना है इसलिए उनकी पार्टी का चिन्ह भी सफेद घोड़ा है जिसके पंख लगे हुए हैं. पुष्पम प्रिया का कहना है कि वे समाज से गरीबी हटाने, रोज़गार देने, बेहतर सेहत देने, किसानों का भला करने, अपना हक मांगने जैसे मुद्दों पर चुनाव लड़ेगी.
बिहार में एक कहावत बड़ी मशहूर है ‘बिहार से चुनाव लड़ना है तो बिहारीपन दिखाना होगा’. पुष्पम प्रिया चौधरी भी ऐसे ही हथकंडे अपना रही हैं. मिथिलांचल से ताल्लुक रखने वाली पुष्पम ‘खोंयछा’ से महिला वोटरों का हाथ मांग रही हैं. मिथिला में खोंयछा को सौभाग्य का द्योतक माना जाता है. जब बेटियां घर से बाहर आती हैं या फिर कहीं से घर आती हैं तो परिवार की सुख समृद्धि के लिए उन्हें खोंयछा दिया जाता है. मान्यताओं के अनुसार खोंयछा में अगर बेटियों को अन्न का एक दाना और एक सिक्का भी दे दिया जाए तो ये समृद्धि का द्योतक माना जाता है. पुष्मम खोंयछा जैसी लोकसंस्कृति को अपने प्रचार अभियान में भुना रही हैं. चुनावी दौरे में वह जहां भी जा रही हैं वहां वह महिलाओं से आशीर्वाद के रूप में खोंयछा ले रही हैं.
"बिहार का खोंयछा" बिहार के भविष्य के लिए जो कृषि क्रांति (चावल), औद्योगिक क्रांति (कपड़ा) और करोड़ों रोज़गार (सिक्का) को जन्म दे सके। प्लुरल्स के कार्यकर्ता 108 लाख खोंयछा घर-घर जाकर लाकर देंगे ताकि बिहार का क़र्ज़ मेरे रोम-रोम में बस जाए। #ChooseProgress #बिहार_का_खोंयछा pic.twitter.com/AH7uSPqigv
— Pushpam Priya Choudhary (@pushpampc13) October 3, 2020
पुष्पम प्रिया चौधरी की पार्टी प्लूरल्स की टीम जिस तरह से काम कर रही है, उसमें दिल्ली के अरविंद केजरीवाल का मॉडल साफ तौर पर दिख रहा है. जिस तरह केजरीवाल की आप पार्टी साफ सुथरे चेहरे वालों के सहारे दिल्ली की सत्ता में आई थी, बिहार में पुष्पम प्रिया और उनकी ‘प्लुरल्स पार्टी’ भी ऐसे ही काम किया जा रही है. अपने इसी फॉर्मुले पर चलते हुए उनकी पार्टी साफ सुथरी छवि के लोगों को साथ लेकर बिहार में दिल्ली का मॉडल तैयार कर रही है.
चूंकि पुष्पम प्रिया एक फ्रेश चेहरा है, ऐसे में उनकी टीशर्ट और जिंस वाली छवि ग्रामीण जनता को कम ही समझ आ रही है लेकिन उनका बिहार अंदाज और कुछ अलग करने की सोच दिग्गज राजनीतिज्ञों में भी उन्हें पहचान दिला रही है. अब बिहार की ये ‘लेडी केजरीवाल’ प्रदेश की राजनीति में अपनी किस्मत बदल पाती है नहीं, देखना रोचक रहने वाला है.