जब पूनियां ने कहा- भैरों सिंह, चतुर्वेदी और भाभड़ा ने घोंपा मेरी पीठ में छुरा, कस्वां को बताया भस्मासुर

टिकट नहीं मिलने से क्षुब्ध सतीश पूनियां ने गुलाबचंद कटारिया को खत लिखकर भैरो सिंह शेखावत, ललित किशोर चतुर्वेदी, हरिशंकर भाभड़ा पर पीठ में छुरा घोंपने का लगाया आरोप, वहीं राजेंद्र राठौड़ और राम सिंह कस्वां जैसे नेताओं को बताया था 'भस्मासुर', भाजयुमो अध्यक्ष के पद से दिया था इस्तीफा

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Politalks.News/Rajasthan. प्रदेश में कांग्रेस के साथ बीजेपी के अंदर की जबरदस्त गुटबाजी किसी से छिपी नहीं है. प्रदेश भाजपा की इसी खींचतान के चलते प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां के एक 22 साल पुराने एक खत ने सियासी भूचाल ला दिया है. जुलाई, 1999 में लिखा गया यह खत सतीश पूनियां ने भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के समय तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष गुलाबचंद कटारिया को लिखा था. तीन पेज के इस लम्बे खत में सतीश पूनियां लोकसभा व विधानसभा में टिकट नहीं देने के कारण उस समय पार्टी के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए बीजेपी के कई बड़े दिग्गजों पर जमकर निशाना साधा था. यहां तक कि सतीश पूनियां ने भैरो सिंह शेखावत, ललित किशोर चतुर्वेदी, हरिशंकर भाभड़ा पर पीठ में छुरा घोंपने का आरोप लगाया था. यही नहीं पूनियां ने राजेंद्र राठौड़ और राम सिंह कस्वां जैसे नेताओं को ‘भस्मासुर’ तक बताया था.

हालांकि 22 साल पुराने लेटर के अब सामने लाने को बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां ने सियासी षड्यंत्र बताते हुए कहा कि, ‘राजनीति में तात्कालिक परिस्थितियों के हिसाब से लिए गए फैसलों को उसी वक्त के हिसाब से देखा जाना चाहिए. उस वक्त की राजनीतिक परिस्थितियों के हिसाब से मैंने फैसला किया. उसे उसी वक्त की परिस्थितियों के संदर्भ में ही देखना चाहिए, आज के संदर्भ में नहीं. 1999 के लेटर में मैंने क्या लिखा था, काफी वक्त गुजर चुका है. इसलिए पूरा याद भी नहीं है. इस लेटर को अब सामने लाने के पीछे सियासी षड्यंत्र है.

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दरअसल, तत्कालीन भाजयुमो प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां ने अपना इस्तीफा देते हुए गुलाबचंद कटारिया को लिखा था कि, “युवा मोर्चा जिलाध्यक्षों के जरिए मेरे प्रति पूरे प्रदेशभर के लोगों ने अपनी बात रखी थी. मुझे तो घोर आश्चर्य है कि इस बार के चुनाव के उम्मीदवारों को लेकर प्रदेश में मंडल स्तर से बड़े स्तर के कार्यकर्ता से लेकर आप तक पूरी तरह आश्वस्त थे. पूर्व मुख्यमंत्री भैरो सिंह शेखावत, राजेंद्र राठौड़ और राम सिंह कसवा के प्रबल समर्थक रहे हैं. शेखावत दिल्ली जाने तक मुझे चुनाव लड़ने का स्पष्ट संकेत दे चुके थे. पूर्व उप मुख्यमंत्री हरिशंकर भाभड़ा, पूर्व मंत्री ललित किशोर चतुर्वेदी भी मुझे लड़ाने के लिए आश्वस्त किया था. लेकिन, मुझे जो विश्वस्त जानकारी मिली है उसके अनुसार इन लोगों ने दिल्ली में पासा पलटा. भैरो सिंह शेखावत, ललित किशोर चतुर्वेदी, हरिशंकर भाभड़ा ने मेरी पीठ में छुरा घोंपकर प्रदेशभर के कार्यकताओं की छाती पर पैर रखकर मेरा टिकट कटवाया है. प्रदेशभर के कार्यकर्ता इस अपमान को सहने की स्थिति में नहीं हैं. इतने दिन तक लगातार उपेक्षा से मैं क्षुब्ध हैं. मैं इस मानसिकता में नहीं कि मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष पद पर बना रहूं.”

सतीश पूनियां ने आगे लिखा कि, “मैं बुरे दिनों में पार्टी के साथ रहा और पार्टी के अच्छे दिनों में जिम्मेदारी छोड़ रहा हूं. मैंने अपनी क्षमता अनुसार पार्टी का काम करने का प्रयास किया है, लेकिन मैं महसूस कर रहा हूं कि संसदीय राजनीति के नाम पर पार्टी ने मेरी घोर उपेक्षा की है. मेरे मुकाबले बार-बार उन्हीं व्यक्तियों को तवज्जो मिलती रही है, जो परंपरागत रूप से इस विचारधारा के घोर विरोधी रहे. उन्होंने भाजपा के भीतर और बाहर रहकर कार्यकर्ता को प्रताड़ित किया है.” इस दौरान पूनियां ने चूरू से सांसद राम सिंह कस्वां को बार-बार टिकट देने पर सवाल उठाते हुए लिखा था कि, “1993 में मुझे सादुलपुर से विधानसभा चुनावों में टिकट से वंचित रखा गया, क्योंकि तत्कालीन सांसद राम सिंह कस्वां ने धमकी देकर अपनी पत्नी के लिए टिकट हासिल कर लिया, बाद में वह पराजित हुईं.”

सतीश पूनियां ने आगे लिखा कि, “1996 चूरू संसदीय क्षेत्र का लोकसभा, 1996 का सरदारशहर का उपचुनाव और 1998 का लोकसभा चुनाव रामसिंह कस्वां ने लड़ा और लगातार इन तीनों चुनावों में बुरी तरह पराजित हुए. पार्टी मुझे 1993 के विधानसभा चुनाव के बाद से लगातार आश्वस्त करती रही, लेकिन चुनाव राम सिंह कस्वां लड़ते रहे. 1998 विधानसभा चुनावों के दौरान भी मेरी उपेक्षा की गई और कस्वां को उम्मीदवार बनाया गया. 8 माह पहले चुनाव लड़ने और विधानसभा के बाद लगातार 7वीं बार इन लोकसभा चुनावों में राम सिंह कस्वां ही पार्टी की पसंद किस दबाव में बने रहे? मैं आज तक नहीं जान पाया.” पूनियां ने राम सिंह कस्वां को ‘भस्मासुर‘ बताते हुए लिखा था- मुझ जैसे कार्यकर्ता को तैयार करने में आप बरसों लगा देते हैं और संसदीय राजनीति के नाम पर उसकी अवहेलना करके आपकी विचारधारा को पलीता लगाने वाले भस्मासुर ही आपकी पसंद होते हैं. यह वास्तव में शोध का विषय है. ऐसी बात नहीं है कि आपको अवगत नहीं कराया गया. पार्टी बराबर आश्वस्त करती रही और यह सिलसिला विधानसभा और लोकसभा के विगत 6 चुनाव तक चलता रहा है.

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आपको बता दें, 22 साल पहले 5 जुलाई 1999 को सतीश पूनियां ने लोकसभा और विधानसभा में टिकट नहीं मिलने पर नाराज होकर युवा मोर्चा प्रदेशाध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था. तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष गुलाबचंद कटारिया ने पूनियां का इस्तीफा मंजूर कर लिया था. सतीश पूनियां के बाद जोधपुर के राघवेंद्र प्रताप सिंह को युवा मोर्चा का प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया. राघवेंद्र प्रताप के बाद प्रतापसिंह खाचरियावास युवा मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष बने थे. हालांकि, प्रतापसिंह बाद में 2004 में कांग्रेस में चले गए थे.

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