पाॅलिटाॅक्स ब्यूरो. दिल्ली में मतदान शुरू होने से 38 घण्टे पहले लगे बैन के बाद अब घर-घर जाकर मान मन्नोवल का दौर जारी है. पूरे चुनाव में शांत भाव से चुनाव प्रचार कर रहे दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप संयोजक अरविंद केजरीवाल अब चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में आक्रमक हो गए. चुनाव प्रचार समाप्त होने से पहले विकास के मुददे पर पूरी तरह केंद्रीत केजरीवाल ने अचानक अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए प्रचार समाप्ति के पूर्व भाजपा पर आक्रमक हो गए.
भाजपा द्वारा शाहीन बाग को अपना मुख्य हथियार बनाए जाने और चुनाव में इसके भाजपा को राजनीतिक फायदे की सम्भावनाओं के बीच केजरीवाल ने अचानक अपनी रणनीति को बदलते हुए भाजपा को चुनौती दी कि वो अपने मुख्यमंत्री पद के चेहरे को जनता के सामने लाएं. केजरीवाल ने भाजपा नेताओं को बुधवार एक बजे तक दिल्ली सीएम के लिए उसके चेहरे को घोषित करने की मांग की थी. केजरीवाल ने इसके लिए बकायदा प्रेस कांफ्रेस बुलाकर कहा कि दिल्ली की जनता जानना चाहती है कि अगर बीजेपी को वोट दिया जाए तो बीजेपी से मुख्यमंत्री कौन होगा?
केजरीवाल ने कहा कि जनता आप प्रत्याशियों को वोट देगी तो उसके सामने सीएम के तौर पर केजरीवाल का चेहरा है लेकिन बीजेपी से कौन होगा? केजरीवाल यहीं नहीं रुके उन्होंने कहा कि कहीं ऐसा ना हो कि भाजपा किसी अनपढ को सीएम न बना दे. लोकतंत्र में जनता को हर बात जानने का अधिकार है. बीजेपी पर आक्रमक रूख अपनाते हुए केजरीवाल ने कहा कि वोट दिल्ली की जनता देगी, बाद में अमितशाह तय करेंगे मुख्यमंत्री. केजरीवाल ने सवाल उठाया ऐसा क्यूं? उन्होंने कहा कि दिल्ली का मुख्यमंत्री अमित शाह नहीं दिल्ली की जनता तय करेगी.
केजरीवाल द्वारा मंगलवार को बुलाई गई इस प्रेस कांन्फ्रेस पर भाजपा नेताओं ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. हालांकि भाजपा पहले ही कह चुकी है कि चुनाव के बाद भाजपा के विधायक मुख्यमंत्री को तय करेंगे. भाजपा की ओर से लगभग सभी बडे नेताओं की ओर से इस तरह का बयान आ चुका है.
केजरीवाल ने चुनाव के शुरू में भी पूछा था कि भाजपा बताए कि उसकी तरफ से मुख्यमंत्री कौन होगा? केजरीवाल जानते हैं कि भाजपा में मुख्यमंत्री के चेहरों की लंबी फेहरिस्त है. भाजपा शुरू से ही इस मसले से बचकर चल रही है. भाजपा में मनोज तिवारी, हर्षवर्धन, विजय गोयल, गौतम गंभीर सहित कई नेताओं के नाम संभावित मुख्यमंत्री के तौर पर लिए जा रहे थे. लेकिन जब चुनाव के लिए भाजपा प्रत्याशियों की लिस्ट आई तो इनमें से एक भी चेहरा भाजपा की सूची में नहीं था.
वहीं इसमें भी कोई संदेह नहीं कि दिल्ली भाजपा में नेताओं के बीच राजनीतिक वर्चस्व को लेकर घमासान मचा हुआ है. कई मौके पर यह बात उजागर भी होती रही है. इसे भाजपा की बडी कमजोरी के रूप में भी देखा जा रहा था. आम आदमी पार्टी चुनाव प्रचार के दौरान इसी बात को मुख्य रूप से उठाती रही. हालांकि मुख्यमंत्री के चेहरे की घोषणा को लेकर जो स्थिति भाजपा की रही कमोबेश वही स्थिति कांग्रेस की भी रही. लेकिन केजरीवाल ने कांग्रेस से नहीं पूछा कि बताओं कौन है कांग्रेस का मुख्यमंत्री को चेहरा.
इसमें दो बात हो सकती है, केजरीवाल कांग्रेस को चुनावी दौड में शामिल ही नहीं मान रहे हों या फिर भविष्य के लिए रणनीति के तहत ऐसा कर रहे हों.
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर कांग्रेस 10 से 15 सीटों तक पहुंच गई तो आम आदमी पार्टी को सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के समर्थन की जरूरत पड सकती है. इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि अगर ऐसी राजनीतिक परिस्थितियां बन गई तो भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस आप को बिना शर्त या फिर कुछ शर्तों के साथ समर्थन देगी. यह बात अलग है कि 2015 से पहले भी आप और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई थी लेकिन दोनों की मिली जुली सरकार की गाडी कुछ ही महीने में पटरी से नीचे उतर गई और दिल्ली की जनता को फिर से चुनाव देखना पड गया.
अभी हाल ही में हुए महाराष्ट चुनाव के बाद बीजेपी से एलाइंस करने वाली शिवसेना की उद्वव ठाकरे सरकार को कांग्रेस ने समर्थन दिया है. अब जब प्रचार समाप्त हो गया है तो दिल्ली की जनता के पास अपने सारे राजननीतिक विकल्पों पर विचार करने का पूरा समय मिल गया है. देखना है कि दिल्ली का मतदाता वादे, प्रलोभनों, विकास और राष्ट्रवाद के माहौल के बीच हो रहे इन चुनाव के लिए क्या निर्णय करता है?