Politalks.News/Rajasthan. केन्द्रीय मंत्री वीरेन्द्र कुमार ने जयपुर दौरे के दौरान गुर्जर आरक्षण मुद्दे को हवा देने वाला बयान दिया है. दरअसल राजस्थान सरकार ने एमबीसी आरक्षण को नौवीं अनुसूची में शामिल करने की सिफारिश करते हुए दावा किया है कि वर्ष 2019 और 2020 में यह सिफारिश केन्द्र सरकार को भेजी गई है. उधर इसी के उलट केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने कहा है कि, ‘राजस्थान में गुर्जर सहित एमबीसी में शामिल जातियों को मिल रहे 5 प्रतिशत आरक्षण के लाभ को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने का कोई प्रस्ताव हमारे पास विचाराधीन नहीं है. वीरेन्द्र सिंह ने लोकसभा में हाल ही में लाए गए कांस्टीट्यूशनल अमेंडमेंट बिल के जरिए महाराष्ट्र के मराठा समाज के आरक्षण मामले का उदाहरण भी दिया.
केन्द्र सरकार ने किया संसोधन- वीरेन्द्र कुमार
केन्द्रीय मंत्री वीरेन्द्र सिंह ने कहा कि, ‘इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी. हमारे विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू याचिका लगाई, लेकिन उसे भी कोर्ट ने खारिज कर दिया. जिसके बाद केन्द्र सरकार लोकसभा में कांस्टीट्यूशनल अमेंडमेंट बिल लाई है. इसके जरिए राज्य सरकारों को यह अधिकार दिए हैं कि राज्य भी अपनी सूची में नाम जोड़ने-घटाने का काम कर सकती है.
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केन्द्रीय मंत्री के बयान के बाद सक्रिय हो सकते हैं गुर्जर नेता
केंद्रीय मंत्री वीरेन्द्र कुमार द्वारा एमबीसी आरक्षण का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं होने की बात कहने के बाद गुर्जर समाज फिर सक्रिय हो सकता है. आपको बता दें कि गुर्जर समाज के लंबे आंदोलन के बाद राज्य सरकार ने गुर्जर, रेबारी, रायका, गाड़िया लुहार और बंजारा समाजों को एमबीसी में पांच फीसद आरक्षण दिया था. इस संबंध में राज्य सरकार ने विधानसभा में एक संकल्प पारित करा कर केंद्र सरकार को भेजा था. अब मंत्री के बयान के बाद गुर्जर नेताओं ने चर्चाओं का दौर शुरू कर दिया है
केन्द्र विचार स्पष्ट करें तो हमें भी फैसला लेने में सहूलियत होगी- विजय बैंसला
उधर गुर्जर नेता विजय बैंसला ने कहा कि, केन्द्र सरकार ने गुर्जर समाज के साथ बड़ा विश्वास घात किया है. जिसे MBC समाज कभी नहीं भूलेगा. राज्य सरकार ने दो बार सिफारिश की चिट्ठी केंद्र को भेजी. वहीं सांसदों ने ये मुद्दा सदन में उठाया है. इसके बावजूद भी कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है तो बीजेपी को विचार स्पष्ट करने चाहिए ताकि समाज भी किसी नतीजें पर पहुंच सकें. समाज के एकमात्र सांसद सुखबीर सिंह ने भी धोखा किया है.
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गुर्जर आंदोलन का इतिहास
आपको बता दें कि, राजस्थान में गुर्जर आंदोलन की शुरुआत साल 2006 से हुई थी. तब से लेकर अब तक कई बार बड़े आंदोलन हो चुके हैं. साल 2006 के बाद 2007, 2008, 2010, 2015, 2019 और अब 2020 में एक बार फिर आंदोलन शुरू किया गया. इस दौरान भाजपा और कांग्रेस की सरकारें रहीं, मगर किसी सरकार से गुर्जर आरक्षण आंदोलन की समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकला. वर्ष 2006 में एसटी में शामिल करने की मांग को लेकर पहली बार गुर्जर राजस्थान के हिंडौन में सड़कों व रेल पटरियों पर उतरे थे. गुर्जर आंदोलन 2006 के बाद तत्कालीन भाजपा सरकार महज एक कमेटी बना सकी, जिसका भी कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला गुर्जर समाज पहले खुद को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग कर रहे थे. उसके बाद अति पिछड़ा वर्ग में शामिल होने के लिए राजी हो गए. लेकिन, 2008 के बाद शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में पांच फीसदी आरक्षण की मांग कर रहे हैं. जब से गुर्जर आंदोलन की शुरुआत हुई है तब से 75 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं.
गहलोत सरकार ने दिया MBC आरक्षण
कांग्रेस की गहलोत सरकार ने गुर्जर समाज को न सिर्फ 5 फीसदी आरक्षण का लाभ देकर सरकारी नौकरी दी, बल्कि आवासीय स्कूल देकर भी गुर्जर समाज को राहत दी. एमबीसी वर्ग के 1252 अभ्यर्थियों को नियमित वेतन श्रंखला के समकक्ष परिलाभ मिलने लगा है.