देश में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां अहम चुनाव बता रही हैं. कांग्रेस इन चुनावों में लोकतंत्र और संविधान बचाने की दलील देते हुए भाजपा सरकार को हटाने का आह्वान कर रही है तो भाजपा मजबूत और सशक्त सरकार बनाने के नाम पर एक बार पुनः जनता से वोट मांग रही है. इन सबसे बीच जोधपुर सीट के चुनावी परिणाम राजस्थान की राजनीतिक की दिशा और दशा तय करने वाले साबित होंगे.

जोधपुर सीट से एक ओर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने पुत्र वैभव गहलोत की राजनीतिक लॉन्चिंग की है तो दूसरी तरफ बीजेपी ने एक बार फिर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पर दांव खेला है. कहने को तो यह मुकाबला गजेंद्र सिंह शेखावत और वैभव गहलोत के बीच है लेकिन वैभव के पीछे अशोक गहलोत खुद यहां से चुनाव लड़ रहे हैं. इस वजह से खुद गहलोत की साख इस सीट के चुनावी परिणाम पर टिकी हुई है. इस हिसाब से जोधपुर सीट के चुनावी परिणाम प्रदेश की राजनीति के भविष्य के लिए काफी अहम साबित होंगे.

अशोक गहलोत यदि अपने सुपुत्र वैभव गहलोत को यहां से विजयश्री दिलवाने में सफल रहते हैं तो अशोक गहलोत का न केवल प्रदेश में बल्कि आलाकमान के सामने भी कद बढ़ेगा. साथ ही अपनी ही पार्टी के राजनीतिक विरोधियों के विरोध के स्वर भी धीमे होंगे. अब ऐसा नहीं होता है और वैभव को इस सीट से हार मिलती है तो अशोक गहलोत के राजनीतिक कैरियर में ठहराव आ सकता है. इस पराजय के बाद गहलोत के विरोधी इसे आलाकमान के सामने अशोक गहलोत की असफलता बताएंगे.

इस बार के विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर जिस तरह की कशमकश हुई थी, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अशोक गहलोत का चौथी बार मुख्यतंत्री दावेदार बनना मुमकिन नहीं होगा. पिछले लोकसभा चुनावों में मोदी लहर में बहते हुए गजेंद्र सिंह शेखावत अपनी नैया को पार लगाने में सफल हुए थे. इस बार भी उनके टिकट को लेकर संशय के बादल थे लेकिन कुशल वाकपटुता और संघ के नजदीकी होने का लाभ उन्हें मिला और एक बार फिर वह जोधपुर लोकसभा सीट से मैदान में हैं.

अगर वैभव को पटखनी देकर शेखावत यहां से जीत दर्ज करते हैं तो निश्चित तौर पर न केवल बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के सामने बल्कि प्रदेश में भी उनका राजनीतिक कद ऊंचा होगा. इसके बाद अगर केंद्र में मोदी की सरकार बनती है तो गजेंद्र सिंह को कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिल सकता है. साथ ही उन्हें प्रदेश का भावी प्रदेशाध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार भी माना जाएगा. वहीं अगर गजेंद्र सिंह यहां से पराजित होते हैं तो उनके राजनीतिक जीवन में ठहराव की स्थिति भी आ सकती है.

पिछले चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह विश्नोई का टिकट काटकर जब उन्हें उम्मीदवार बनाया गया था तो इसका कई जगह पर विरोध हुआ था. इस वजह से गजेंद्र के भविष्य के लिए उन्हें यहां से जीत दर्ज करना जरूरी होगा. यही वजह है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों के स्थानीय कार्यकर्ता और सभी विधायकों ने चुनावी प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. खासतौर पर कांग्रेस विधायकों को इस बात का एहसास है कि यदि वैभव यहां से ​जीत दर्ज करते हैं तो इसका सीधा लाभ उन्हें मिलेगा. वहीं गजेंद्र को विजयश्री दिलाकर बीजेपी नेता केन्द्रीय नेतृत्व के सामने क्षेत्र में अपनी राजनीतिक शक्ति का एहसास करा सकेंगे जो भविष्य में उनके लिए फायदे का सौदा साबित होगा.

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