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यूपी में लोकसभा चुनाव के सातवें व अंतिम चरण के योद्धा तय हो गए हैं. आखिरी चरण की जिन 13 सीटों पर चुनाव होने हैं उनमें पीएम नरेंद्र मोदी की संसदीय सीट वाराणसी और सीएम योगी आदित्यनाथ के गृहक्षेत्र की गोरखपुर सीट भी शामिल है. इस चरण की सभी सीटें जातीय गणित पर सधने वाले पूर्वांचल में हैं. ऐसे में मोदी मैजिक व गठबंधन की अर्थमैटिक दोनों ही कसौटी पर है. इन सभी 13 सीटों पर किसके सिर जीत का सेहरा बंधेगा, यह तो 23 मई को पता चल ही जाएगा. इससे पहले 7वें चरण के इन सीटों पर डालते हैं एक नजर …

वाराणसी : मोदी को विपक्ष का वॉकओवर
पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में विपक्ष का रवैया वॉकओवर जैसा है. ऐसे में यहां लड़ाई अंतर पाटने जैसी ही लग रही है. 2014 में अरविंद केजरीवाल जैसे चेहरे की चुनौती के बाद मोदी को 56 फीसदी वोट मिले थे. इस बार सपा-बसपा गठबंधन आखिरी वक्त तक प्रत्याशी ही बदलता रहा. पहले शालिनी यादव को टिकट दिया. फिर उसे काटकर बीएसएफ के बर्खास्त जवान तेज बहादुर यादव को उम्मीदवार बना दिया. तेज बहादुर का पर्चा भी अभी तक अधर में लटका हुआ है. उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई है. हालांकि उन्होंने न्यायालय की शरण लेने की बात कही है. ऐसे में लग यही रहा है कि यहां से सपा-बसपा गठबंधन मैदान में नहीं होगा.

कांग्रेस ने प्रियंका गांधी की चर्चाओं के बीच इस सीट पर अपनी जमानत जब्त करा चुके पूर्व विधायक अजय राय को ही उम्मीदवारी दे दी. ऐसे में मोदी के कद के आगे लड़ाई कहीं टिकती नजर नहीं आ रही है. मुस्लिम, यादव, दलितों वोटरों की गोलबंदी अगर विपक्ष के साथ हो जाए तो जरूर लड़ाई कांटे की हो सकती है.
प्रत्याशी
नरेंद्र मोदी : बीजेपी
अजय राय : कांग्रेस
कुल वोटर : 17.96 लाख

महराजगंज: प्रत्याशियों के फेर-बदल में उलझी सीट
पूर्वांचल के अति पिछड़े क्षेत्र की इस सीट पर विपक्ष ने चेहरे तय करने में देरी कर खुद ही अपनी उलझने बढ़ा ली है. बीजेपी के पांच बार के सांसद पंकज चौधरी यहां से मैदान में हैं. कांग्रेस ने पूर्व सांसद हर्षवर्धन सिंह की बेटी सुप्रिया सिंह पर दांव खेला है. वहीं सपा ने पूर्व सांसद अखिलेश सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है. इस सीट पर पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी की बेटी तनुश्री त्रिपाठी को शिवपाल की पार्टी प्रसपा ने अपना प्रत्याशी बनाया लेकिन उन्होंने पर्चा नहीं भरा. इन स्थितियों ने बीजेपी की लड़ाई आसान कर दी.

जातिगत समीकरण पर नजर डाले तो इस सीट पर करीब 3 लाख कुर्मी वोटर हैं और बिरादरी से एकमात्र प्रत्याशी बीजेपी से ही हैं. हालांकि सवर्णों की संख्या प्रभावी है लेकिन 4 लाख से अधिक दलित-मुस्लिमों की गोलबंदी विपक्ष को मजबूत बना सकती है.
प्रत्याशी
पंकज चौधरी : बीजेपी
अखिलेश सिंह : सपा
सुप्रिया सिंह : कांग्रेस
कुल वोटर : 18.57 लाख

कुशीनगर: बुद्ध की धरती पर फंसे राजा
महात्मा बुद्ध की परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर में लड़ाई त्रिकोणीय है. बीजेपी ने मौजूदा सांसद राजेश पांडेय का टिकट काटकर विजय दूबे को उम्मीदवार बनाया है. विजय दूबे यहां 2009 में बीजेपी से तीसरे नंबर पर रहे थे. उस समय यहां की रियासत से संबद्ध आरपीएन सिंह कांग्रेस से सांसद बने थे, लेकिन 2014 में हार गए. इस बार आरपीएन सिंह फिर से कांग्रेसी उम्मीदवार हैं. सपा ने नथुनी प्रसाद कुशवाहा को प्रत्याशी बनाया है.

इस सीट पर ब्राह्मण व पिछड़े वर्ग के मतदाताओं खासकर सैंथवार, कुशवाहा, शाक्य की संख्या अधिक है. दलित-मुस्लिम भी काफी हैं. ऐसे में बीजेपी की उम्मीदें अपने कोर वोटरों के साथ रहने व गठबंधन का वोट बंटने पर टिकी है.
प्रत्याशी
विजय दुबे : बीजेपी
नथुनी प्रसाद कुशवाहा : सपा
आरपीएन सिंह : कांग्रेस
कुल वोटर : 17.36 लाख

गोरखपुर: चेहरा कोई भी हो, लड़ना योगी को है
इस सीट पर उपचुनाव के नतीजों ने पूरे यूपी की सियासी गणित को बदलकर रख दिया है. पिछले साल हुए उपचुनाव में 27 साल बाद यहां बीजेपी की हार ने दो धुर विरोधियों सपा-बसपा का गठबंधन करा दिया. अब सीएम योगी आदित्यनाथ व बीजेपी के सामने इस गढ़ को वापस लाने की चुनौती है. बीजेपी ने फिल्म अभिनेता रविकिशन को उम्मीदवार बनाया है लेकिन जमीन पर लड़ाई योगी को ही लड़नी है. बीजेपी को हराने वाले प्रवीण निषाद अब सपा का दामन छोड़ भाजपाई हो चुके हैं. उनकी जगह सपा ने रामभुआल निषाद को टिकट दिया है. कांग्रेस से मधुसूदन त्रिपाठी इस सीट से मैदान में हैं.

PoliTalks newsइस सीट पर तीन लाख से अधिक निषाद वोटरों के साथ ही मुस्लिमों की प्रभावी संख्या विपक्ष की बड़ी ताकत है. उपचुनाव में मिली हार से सबक लेते हुए बीजेपी का तंत्र पूरी तरह से सक्रिय है. योगी का संगठन हिंदू युवा वाहिनी भी जमीन बनाने में जुटा है. कांग्रेस के ब्राह्मण प्रत्याशी का बीजेपी को नुकसान हो सकता है.
प्रत्याशी
रविकिशन : बीजेपी
रामभुआल निषाद : सपा
मधुसूदन त्रिपाठी : कांग्रेस
कुल वोटर : 19.54 लाख

देवरिया : भितरघात की चुनौती से जूझ रहे सभी उम्मीदवार
बिहार की सीमा से सटी इस सीट पर पक्ष-विपक्ष, सबकी चुनौती अपने ही बने हैं. पूर्व मंत्री कलराज मिश्र के चुनाव न लड़ने की घोषणा के बाद बीजेपी ने यहां रमापति राम त्रिपाठी को टिकट दिया है. यहां से पूर्व सांसद श्रीप्रकाशमणि त्रिपाठी के बेटे शशांकमणि त्रिपाठी अहम दावेदार थे. ऐसे में बाहरी उम्मीदवार लाने से बीजेपी में असंतोष है. रमापति के बेटे व संतकबीर नगर से सांसद शरद त्रिपाठी का जूता कांड यहां भी चर्चा में है जिसका असर ठाकुर वोटों पर पड़ सकता है. बसपा ने विनोद जायसवाल को उतारा तो पिछली बार बसपा से चुनावी लड़ाई लड़कर दूसरे नंबर पर रहे नियाज अहमद कांग्रेस के टिकट पर मैदान में आ गए हैं.

ब्राह्मण व वैश्य वोटर्स के साथ अति-पिछड़े जाति के वोटरों की संख्या भी यहां प्रभावी है. यादव, दलित, मुस्लिम बिरादरी के वोटर भी अच्छी संख्या में हैं. पिछली बार बीजेपी को यहां 51 फीसदी वोट मिले थे लेकिन बसपा के वैश्य उम्मीदवार होने के चलते बीजेपी के वोटरों में सेंध लगेगी. यहां भगवा दल की पूरी गणित कांग्रेस के प्रदर्शन पर टिक गई है.
प्रत्याशी
रमापति राम त्रिपाठी : बीजेपी
विनोद जायसवाल : बसपा
नियाज अहमद : कांग्रेस
कुल वोटर : 17.29 लाख

बांसगांव : सवर्ण वोट तय करेंगे चुनाव का रूख
इस लोकसभा का विस्तार देवरिया जिले तक है. सुरक्षित सीट पर बीजेपी से कमलेश पासवान हैट्रिक लगाने के लिए उतर रहे हैं. बसपा ने यहां पहले घोषित प्रत्याशी दूधनाथ का टिकट काटकर सदल प्रसाद को उतारा है. सदल 2014 में भी बसपा से लड़े थे और दूसरे नंबर पर रहे. कांग्रेस ने पूर्व आईपीएस कुश सौरव पासवान को उम्मीदवार बनाया था लेकिन उनका पर्चा ही खारिज हो गया. इस लोकसभा में ब्राह्मण-ठाकुरों की बहुतायत है. ऐसे में सवर्ण वोटरों का रूख ही परिणाम तय करेगा. 2014 में बीजेपी को सपा-बसपा व कांग्रेस तीनों के कुल वोटों से अधिक वोट मिले थे. इस बार लड़ाई पिछली बार जितनी आसान नहीं है.
प्रत्याशी
कमलेश पासवान : बीजेपी
सदल प्रसाद : बसपा
कुल वोटर : 17.27 लाख

घोसी: आसान नहीं है दोबारा कमल खिलाना
कभी वामपंथ का गढ़ रहे इस संसदीय सीट पर बीजेपी ने पहली बार मोदी लहर में 2014 में ही खाता खोला था. दलित-मुस्लिम बहुल इस सीट पर बीजेपी के लिए इस बार दूसरी पारी आसान नहीं दिख रही. बीजेपी ने मौजूदा सांसद हरिनारायण राजभर को ही टिकट दिया है. माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के करीबी अतुल राय बसपा से यहां गठबंधन के उम्मीदवार हैं. यहां पहली बार बसपा को जीत दिलाने वाले बालकृष्ण चौहान कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं.

इस सीट पर चौहान, राजभर, मौर्या, निषाद सहित दूसरी अति पिछड़ी जातियों की आबादी प्रभावी है. इसके अलावा ब्राह्मण, वैश्य और ठाकुर वोटरों की संख्या भी डेढ़ लाख से अधिक है. बीजेपी इन वोटों की गोलबंदी से ही उम्मीदें पाले हैं. पिछली बार बसपा से लड़े दारासिंह चौहान इस बार बीजेपी में हैं और योगी सरकार में मंत्री है लेकिन बीजेपी के वोटों में कांग्रेस की सेंधमारी का खतरा है.
प्रत्याशी
हरनारायण राजभर : बीजेपी
अतुल राय : बसपा
बाल कृष्ण चौहान : कांग्रेस
कुल वोटर : 19.54 लाख

सलेमपुर : कांग्रेस ने दिलचस्प बनाई लड़ाई
देवरिया से लेकर बलिया तक के विस्तार वाली इस लोकसभा सीट पर जातीय गणित से ही नतीजे सधते हैं. 2014 में मोदी लहर में रविंद्र कुशवाहा ने पहली बार यहां कमल खिलाया था. इनके पिता हरिकेवल प्रसाद ने जरूर समता पार्टी के टिकट पर 1998 में बीजेपी गठबंधन का खाता खुलवाया था. बीजेपी ने फिर रविंद्र कुशवाहा पर भरोसा जताया है. बसपा के प्रदेश अध्यक्ष आरएस कुशवाहा यहां गठबंधन के उम्मीदवार हैं. कांग्रेस ने बनारस से पूर्व सांसद राजेश मिश्र को प्रत्याशी बना लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है.

इस सीट पर सबसे अधिक संख्या पिछड़े और उसमें भी खासकर अति पिछड़े वर्ग के वोटरों की है. सलेमपुर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी की भी विधानसभा है. ऐसे में बीजेपी के लिए यहां दुबारा कमल खिलाना चुनौतियों से भरा है. पिछले चुनाव में यहां बीजेपी को सपा- बसपा के कुल वोटों से करीब आठ फीसदी वोट अधिक मिले थे.
प्रत्याशी
रविंद्र कुशवाहा : बीजेपी
आरएस कुशवाहा : बसपा
राजेश मिश्र : सलेमपुर
कुल वोटर : 16.34 लाख

बलिया : समाजवाद के गढ़ में भगवा की सेंध
पूर्व पीएम चंद्रशेखर की परंपरागत सीट रही बलिया समाजवाद का गढ़ मानी जाती रही है. 2014 में उनके ही बेटे नीरज शेखर को हराकर भगवा दल ने पहली बार इस किले में सेंध लगाई थी. अब इस चुनाव में पक्ष हो या विपक्ष, दोनों के ही चेहरे बदल चुके हैं. बीजेपी ने मौजूदा सांसद भरत सिंह का टिकट काट भदोही के सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त पर दांव लगाया है. सपा ने नामांकन के आखिरी दिन उम्मीदवार घोषित किया लेकिन नीरज शेखर की उम्मीदें तोड दी. ब्राह्मण वोटों की उम्मीद में पूर्व विधायक सनातन पांडेय यहां सपा की पसंद बने. 2014 में बीजेपी यह सीट 1.39 लाख से जीती थी. तब बसपा को भी 1.60 लाख वोट मिले थे. मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल से लड़े अफजाल अंसारी ने 1.41 लाख वोट हासिल किए थे.

इस बार लड़ाई सीधी है इसलिए वोटों का बंटवारा न होना विपक्ष की ताकत है और बीजेपी की परेशानी. ब्राह्मण, ठाकुर, भूमिहार और यादव के साथ ही इस सीट पर राजभर-कुशवाहा भी प्रभावी संख्या में है. हालांकि, कभी कोई ब्राह्मण का यहां का सांसद नहीं बना है. उम्मीदवारी में देरी व नीरज का टिकट कटना बीजेपी के लिए फायदेमंद है लेकिन मौजूदा सांसद भरत सिंह और इसी क्षेत्र से विधायक व मंत्री ओम प्रकाश राजभर की नाराजगी बीजेपी को भारी पड़ सकती है.
प्रत्याशी
वीरेंद्र सिंह मस्त : बीजेपी
सनातन पांडेय : सपा
कुल वोटर : 17.92 लाख

गाजीपुर : सिन्हा की ‘रेल’ में चैनपुलिंग का खतरा
पीएम नरेंद्र मोदी की संसदीय सीट से सटे गाजीपुर में रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा की जीत की रेल में इस बार चैनपुलिंग का बड़ा खतरा है. 2014 के आंकड़े देखें तो तस्वीर और साफ दिखती है. तब मनोज सिन्हा महज 32 हजार वोट से जीते थे. सपा-बसपा के संयुक्त वोट करीब 52 फीसदी थे. सपा से बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी शिवकन्या कुशवाहा दूसरे नंबर पर रही. वहीं कौमी एकता दल से लड़े डीपी यादव को भी 60 हजार वोट मिले थे. इसे ही बीजेपी की जीत व सपा की हार की वजह माना गया था. इस बार यह सीट बसपा के खाते में हैं जिसको अब तक इस सीट से जीत नसीब नहीं हुई है.

जातीय गणित मनोज सिन्हा को यहां कमजोर बना रही है और पांच साल में किए विकास कार्य उनको मजबूत. गाजीपुर में यह धारणा आम है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर व जन सुविधाओं में मनोज सिन्हा ने क्षेत्र का नक्शा बदल दिया है. यह धारणा वोट में बदली मनोज की रेल आगे भी दौड़ेगी, नहीं तो उस यार्ड में खड़ा होना होगा. कांग्रेस गठबंधन से अजीत सिंह कुशवाहा बीजेपी व बसपा दोनों के लिए ही वोटकटवा की भूमिका में मुश्किल खड़ी कर सकते हैं.
प्रत्याशी
मनोज सिन्हा : बीजेपी
अफजाल अंसारी : बसपा
अजीत कुशवाहा : कांग्रेस गठबंधन
कुल वोटर : 18.51 लाख

चंदौली : बीजेपी अध्यक्ष की राह कांटों भरी
बनारस जिले की दो विधानसभाओं को शामिल करने वाली चंदौली को विकास के मोर्चे पर अभी लंबी लड़ाई लड़नी है. यहां से बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय दूसरी पारी के लिए मैदान में है. सपा ने इस सीट से संजय चौहान को मैदान में उतारा है. कांग्रेस से पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी शिवकन्या कुशवाहा उम्मीदवार हैं. मोदी लहर में इस सीट को 1.50 लाख से अधिक वोटों से बीजेपी जीती थी लेकिन सपा-बसपा के कुल वोटों से बीजेपी के वोट कम थे. यादव-दलित वोटरों की प्रभावी संख्या भी विपक्ष की उम्मीदें बढ़ाती है.

कांग्रेस के कुशवाहा प्रत्याशी के चलते बीजेपी के अति-पिछड़े वोटरों में भी सेंधमारी का खतरा है. बीजेपी मौजूदा सांसद के काम, अपने कोर वोटरों के जुड़ाव व मोदी के नाम के भरोसे जीत को लेकर आश्वस्त है. बनारस जिले तक प्रसार होने के चलते मोदी इफेक्ट का फायदा बीजेपी को मिलेगा. सपा के प्रत्याशी घोषित करने में हुई देरी व पूर्व मंत्री ओम प्रकाश सिंह जैसे चेहरों की दावेदारी नजरअंदाज करने का नुकसान भी विपक्ष को उठाना पड़ सकता है.
प्रत्याशी
महेंद्र नाथ पांडेय : बीजेपी
संजय चौहान : सपा
शिवकन्या कुशवाहा : कांग्रेस गठबंधन
कुल वोटर : 17.19 लाख

मीरजापुर : त्रिकोणीय लड़ाई में फंसी अनुप्रिया
1999 से सपा-बसपा खाते में आती-जाती रही इस सीट पर 2014 में बीजेपी के सहयोगी अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने बड़ी जीत हासिल की थी. सपा-बसपा के कुल वोटों से अनुप्रिया को एक लाख से भी अधिक वोट मिले थे. अनुप्रिया के सामने इस बार सपा ने भदोही से बीजेपी के सांसद रामचरित्र निषाद को उतारा है. रामचरित्र को टिकट देने के लिए सपा ने पूर्व घोषित राजेंद्र एस बिंद का टिकट काट दिया है. कांग्रेस ने फिर ललितेश त्रिपाठी पर भरोसा जताया है. पिछले चुनाव में ललितेश तीसरे नंबर पर थे. जातीय समीकरण पर नजर डाले तो यहां पटेल, मौर्य व बिंद मिलाकर करीब पांच लाख वोटर हैं. इसमें भी आधी पटेल बिरादरी है जिसकी रहनुमाई अनुप्रिया करती हैं.

हालांकि, दलितों, मुस्लिमों के याथ ही बिंद-निषाद वोटरों की प्रभावी संख्या सपा को लड़ाई में मजबूत बनाती है. कांग्रेस प्रत्याशी सवर्णों में अच्छी पकड़ के साथ ही दलित-मुस्लिम वोटरों में सेंधमारी कर सकते हैं. ऐसे में त्रिकोणीय लड़ाई में कोर वोटरों के साथ फ्लोटिंग वोटर निर्णायक रहेंगे.
प्रत्याशी
अनुप्रिया पटेल : बीजेपी गठबंधन
रामचरित्र निषाद : सपा
ललितेश त्रिपाठी : कांग्रेस
कुल वोटर : 18.23 लाख

रार्बट्सगंज : बाहरियों में अपना बनने की जंग
यूपी के आखिरी छोर पर बसी इस लोकसभा में तीनों ही प्रमुख दलों के प्रत्याशी मीरजापुर के रहने वाले यानि बाहरी हैं. बीजेपी से बागी तेवर दिखाने वाले सांसद छोटेलाल खरवार का टिकट कट गया है. यहां गठबंधन सहयोगी अपना दल से पकौड़ीलाल उम्मीदवार हैं. 2009 में सपा से सांसद रहे पकौड़ी पिछली बार तीसरे नंबर पर थे. इस बार अपना दल का दामन थाम लिया. सपा ने भाई लाल कौल को टिकट दिया है. कांग्रेस से भगवती प्रसाद चौधरी मैदान में हैं. पिछली बार भी वह यहां चुनाव लड़े थे. 2014 में यहां बीजेपी को सपा-बसपा से भी अधिक वोट मिले थे. इस सीट पर सवर्ण व अति पिछड़े वोटर निर्णायक भूमिका में हैं.

अपना दल के प्रत्याशी के सामने विपक्ष से अधिक चुनौती भीतर है. पार्टी के ही विधायक प्रत्याशी को बाहरी बता विरोध कर रहे हैं. वहीं प्रदेश सरकार में गठबंधन सहयोगी ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा के तेवर भी तल्ख हैं. ऐसे में विपक्ष के वोटों में बंटवारे पर ही यहां अपना दल की राह तय होगी.
प्रत्याशी
पकौड़ीलाल : बीजेपी गठबंधन
भाई लाल कौल : सपा
भगवती प्रसाद चौधरी : कांग्रेस
कुल वोटर : 16.92 लाख

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