यूपी के लोकसभा चुनाव में कई सियासी धुरंधर ऐसे हैं जो खुद तो चुनावी दंगल में नहीं उतरे लेकिन उनके परिवार के सदस्य या नजदीकी के मैदान में होने से उनकी प्रतिष्ठा दांव पर है. हालात कुछ ऐसे हैं कि खुद चुनाव लड़ने पर वह जितनी मेहनत करते, उससे कहीं ज्यादा मेहनत उन्हें अपने ‘प्रियजन’ की कामयाबी के लिए करनी पड़ रही है. ऐसे ही कुछ नेताओं के बारे में यहां बताया जा रहा है.

राम गोपाल यादव – समाजवादी पार्टी
राम गोपाल यादव को समाजवादी पार्टी का थिंक टैंक माना जाता है. राम गोपाल यादव वर्तमान में राज्यसभा सदस्य हैं. मुलायम सिंह की तरह चुनाव के दौरान पार्टी के प्रचार की जिम्मेदारी उनके कंघों पर भी होगी लेकिन फिरोजाबाद सीट उनके लिए भी अहम बन गई है. यहां से उनके पुत्र अक्षय यादव सपा के टिकट पर मैदान में हैं. हालांकि, अक्षय इस सीट से मौजूदा सांसद भी हैं लेकिन इस बार उनकी टक्कर किसी और से नहीं बल्कि अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव से है.

कल्याण सिंह – बीजेपी
राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह भले ही संवैधानिक पद पर हों, लेकिन यूपी की एटा सीट उनकी प्रतिष्ठा से जोड़ कर देखी जा रही है. दो बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह के बेटे राजवीर एटा संसदीय सीट से एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं. 2014 का लोकसभा चुनाव राजवीर अपने पिता कल्याण सिंह की सीट एटा से जीत चुके हैं. वर्तमान में राजवीर इसी सीट से सांसद हैं. मैदान में भले ही राजवीर सिंह हों लेकिन दांव पर इज्जत कल्याण सिंह की लगी हुई है.

स्वामी प्रसाद मौर्य – बीजेपी
बसपा छोड़ कर भारतीय जनता पार्टी में आए स्वामी प्रसाद मौर्य योगी सरकार में मंत्री हैं. उनके ऊपर भी लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी है. फिलहाल उनका पूरा ध्यान बदायूं सीट पर केंद्रित है. दरअसल इस सीट से बीजेपी ने मौर्य की बेटी संघमित्रा को उतारा है. उसके साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि बदायूं सीट समाजवादियों का गढ़ है और अखिलेश के भाई धर्मेंद्र यादव इस सीट से लगातार चुनाव जीतते आए हैं. ऐसे में संघमित्रा की सफर बदायूं सीट पर आसान नहीं होगा.

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पीएल पुनिया – कांग्रेस
रिटायर्ड आईएएस पीएल पुनिया सपा और बसपा के करीबी संबंध होने के बावजूद कांग्रेस से राजनीति कर रहे हैं. वर्तमान में राज्यसभा सदस्य होने के साथ वह छत्तीसगढ़ कांग्रेस कमिटी के प्रभारी भी हैं. 2009 के लोकसभा चुनाव में पीएल पुनिया राजधानी से सटी बाराबंकी सीट से सांसद रहे लेकिन पिछली बार मोदी लहर में हार गए. इस बार बाराबंकी से उनके पुत्र तनुज पुनिया कांग्रेस के टिकट से मैदान में हैं. अब यह सीट पुनिया के लिए नाक का सवाल बनी हुई है.

राम लाल राही – कांग्रेस
1991 में कांग्रेस की नरसिंम्हा राव सरकार में गृह राज्य मंत्री रहे रामलाल राही मिश्रिख संसदीय सीट से दो बार सांसद रहे. उनके पुत्र बीजेपी में हैं और वर्तमान में हरगांव सीट से विधायक हैं. रामलाल राही ने पिछले दिनों फिर कांग्रेस में वापसी की. कांग्रेस ने राही की पुत्रवधु मंजरी राही को उनकी लोकसभा सीट मिश्रिख से मैदान में उतारा है. चुनाव भले ही बहू लड़ रही है लेकिन प्रतिष्ठा तो रामलाल राही की ही दांव पर है.

अमर सिंह – बीजेपी
भारतीय राजनीति में अमर सिंह कोई अनजाना नाम नहीं है. यूपी से अपना सियासी सफर शुरू करने वाले अमर सिंह कभी मुलायम सिंह के दाहिने हाथ माने जाते थे अब उनका हाथ बीजेपी के साथ है. अमर सिंह की खास मानी जाने वाली अभिनेत्री जया प्रदा ने भी हाल ही में सपा का साथ छोड़ बीजेपी का दामन थामा है और पार्टी के टिकट पर रामपुर से मैदान में हैं. हालांकि वह पूर्व में भी इसी सीट से सपा सांसद रह चुकी हैं. सीधी टक्कर सपा के आजम खान से है. अगर जया प्रभा यहां से चुनाव हारती हैं तो किरकिरी तो अमर सिंह की ही होगी न.

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