Politalks.News/Uttrakhand. उत्तराखंड भले ही छोटा सा राज्य है लेकिन राजनीति गतिविधियों के मामले में बेहद सक्रिय रहा है. सूबे के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पिछले कुछ महीनों से राज्य में विकास योजनाओं को लेकर बेहद सक्रिय नजर आ रहे हैं. लेकिन अपने मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर वे हमेशा पीछे हटते रहे हैं. काफी समय से त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं लेकिन हर बार यह आगे के लिए टाल दी जाती है.
बता दें कि त्रिवेंद्र सरकार में दो मंत्री पद तो सरकार के गठन से ही खाली पड़े हैं, वहीं पिछले जून माह में भाजपा के कद्दावर मंत्री प्रकाश पंत के निधन के बाद से एक मंत्री पद और खाली हो गया है. तीन मंत्री पदों को भरने के लिए हालांकि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अभी फिलहाल कुछ नहीं कह रहे हैं. लेकिन पिछले दिनों उन्होंने संकेत दिए हैं कि अपना मंत्रिमंडल विस्तार नवरात्र में कर सकते हैं.
बताया जा रहा है कि तीन मंत्री पद के लिए प्रदेश भाजपा के कई विधायक दावेदार बताए जा रहे हैं. मसूरी के तेजतर्रार विधायक गणेश जोशी भी मंत्री बनने के लिए भाजपा के लिए आलाकमान से जुगाड़ लगाए हुए हैं. जोशी पिछले तीन बार से मसूरी विधानसभा से विधायक हैं. ऐसे ही भाजपा विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने भी मंत्री बनने के संकेत दिए हैं.
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हालांकि उत्तराखंड में मंत्रिमंडल विस्तार के लिए अभी अक्टूबर तक इंतजार करना होगा. राज्य में मंत्रिमंडल विस्तार की देरी पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत का कहना है कि यह मामला मुख्यमंत्री के कार्यक्षेत्र का है और इसलिए यह उन पर ही छोड़ दिया गया है. वह जब वे ठीक समझेंगे, विस्तार करेंगे. यहां हम आपको बता दें कि 2 सितंबर से 17 सितंबर तक श्राद्ध पक्ष है, फिर 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक अधिमास (मलमास) है. आमतौर पर श्राद्ध और अधिकमास में शुभ काम अच्छे नहीं माने जाते हैं.
त्रिवेंद्र सिंह रावत को पांच साल अपना राजपाट पूरा करने की रहेगी चुनौती-
आने वाली 18 सितंबर को त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद संभाले साढ़े तीन साल पूरे हो जाएंगे. लेकिन अगला डेढ़ साल बड़ा चुनौतीपूर्ण रहने वाला है. ऐसा हम इसलिए भी कह रहे हैं कि उत्तराखंड में सिर्फ नारायण दत्त तिवारी को छोड़ दें तो और किसी भी नेता ने मुख्यमंत्री रहते हुए अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है. आइए आपको कुछ पीछे लिए चलते हैं. उत्तराखंड राज्य का गठन नौ नवंबर वर्ष 2000 को हुआ था. तब भाजपा आलाकमान ने नित्यानंद स्वामी को पहली अंतरिम सरकार का मुख्यमंत्री पद सौंपा. स्वामी को पहले ही दिन से पार्टी के अंतर्विरोध से जुझना पड़ा और बाद में केंद्रीय आलाकमान ने स्वामी को एक साल पूरा करने से पहले ही हटा दिया था.
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उसके बाद भगत सिंह कोश्यारी राज्य के मुख्यमंत्री बनाए गए लेकिन 4 महीने बाद हुए राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता पर काबिज हो गई. इस तरह कोश्यारी सिर्फ 4 महीने ही मुख्यमंत्री रह सके. इसके बाद मार्च 2002 में नारायण दत्त तिवारी प्रदेश के एक मात्र मुख्यमंत्री बने जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल 2007 तक पूरा किया. इसके बाद मुख्यमंत्री बने भुवन चन्द्र खंडूरी, रमेश पोखरियाल निशंक और विजय बहुगुणा में से किसी ने भी मुख्यमंत्री रहते हुए अपने पांच साल पूरे नहीं किए.
बहुगुणा के बाद अलग-अलग टुकड़ों में तीन बार मुख्यमंत्री बने हरीश रावत ने भी मुख्यमंत्री रहते हुए अपना पांच साल का कार्यकाल कभी पूरा नहीं किया. उत्तराखंड में 20 वर्ष की सत्ता भाजपा और कांग्रेस के कब्जे में रही लेकिन कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी के सिवा यह सौभाग्य किसी की नहीं मिला. ऐसे में अब त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास चुनौती होगी कि वह अपना राजपाट 5 साल पूरा करें और नारायण दत्त तिवारी की बराबरी में आ सकें, लेकिन अब उनके बचे डेढ़ साल कम चुनौती भरे नहीं होंगे.
कुछ माह पहले त्रिवेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने की लगी थीं अटकलें-
बीते जून महीने में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को बदलने की अटकलें उत्तराखंड में तेज हो गई थी. अनुभव और वरिष्ठता के आधार पर भाजपा में ज्यादातर नेता त्रिवेंद्र सिंह रावत से वरिष्ठ हैं. सतपाल महाराज हों या विजय बहुगुणा, मदन कौशिक या रमेश पोखरियाल निशंक सब कद्दावर और वरिष्ठ नेता हैं. बता दें, उत्तराखंड से भाजपा के राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी अगर बीमार न पड़े होते तो वह त्रिवेंद्र सिंह रावत पर भारी पड़ सकते थे.
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कुछ समय पहले प्रदेश भाजपा के ही अपनों ने दिल्ली दरबार और संघ के गलियारों में माहौल बनाया था कि त्रिवेंद्र सिंह रावत से सूबे के लोग खुश नहीं हैं. उन्हें आलाकमान ने हटाया नहीं तो अगले चुनाव में कांग्रेस की सत्ता पर काबिज हो सकती है. मुख्यमंत्री विरोधी खेमा तो दावा कर रहा है कि कोरोना का संक्रमण नहीं हुआ होता तो अब तक रावत की छुट्टी हो चुकी होती.
हरिद्वार के विधायक और रावत सरकार में मंत्री मदन कौशिक खुद मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल हैं. कौशिक लगातार चौथी बार विधायक हैं और जनाधार भी कम नहीं है, वहीं संघ परिवार से भी उनकी नजदीकी है. शायद यही वजह है कि मुख्यमंत्री रावत पिछले कुछ दिनों से राज्य विकास योजनाओं को लेकर तेजी दिखा रहे हैं. लेकिन उनकी असल परीक्षा आने वाले समय में मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर रहेगी. क्योंकि चुनौती यह है कि मंत्रिमंडल में खाली चल रहे तीन मंत्री पदों के लिए कई विधायक दौड़ में हैं और अपनी दावेदारी ठोक चुके हैं. अब देखना दिलचस्प होगा कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने मंत्रिमंडल में किस विधायक को जगह देते हैं और किसकी नाराजगी मोल लेते हैं, या यह फैसला केंद्रीय भाजपा आलाकमान पर छोड़कर बच निकलते हैं.