अफगानिस्तान में अमेरिकी नीति-इंटेलीजेंस फेल, दुनियाभर में थूं-थूं, बाइडेन ने अशरफ गनी पर फोड़ा ठीकरा

अफगानिस्तान को अधर में छोड़कर लौटे? बाइडेन की गलतियों से क्यों घिर रहा अमेरिका? अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने संबोधन में सेना के निकालने के फैसले को ठहराया सही, 'अफगानिस्तान की लीडरशिप ने बिना लड़े मानी हार', जो बाइडेन प्रशासन द्वारा हुई वो कौन-सी गलती, जिनको लेकर खड़े हो रहे हैं सवाल, अमेरिकी सेना के निकलते ही अफगानिस्तान के हाल खराब,अमेरिका की नीति और इंटेलीजेंस फैलियर की दुनियाभर में आलोचना

दुनियाभर में थूं-थूं, बाइडेन ने अशरफ गनी पर फोड़ा ठीकरा
दुनियाभर में थूं-थूं, बाइडेन ने अशरफ गनी पर फोड़ा ठीकरा

Politalks.News/Delhi. अफगानिस्तान में संकट चरम पर है. इस देश के हालात जिस तरह से पिछले कुछ दिनों में बदले हैं, उसे देखकर पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई है. देखते ही देखते पूरे मुल्क पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है, हालात ये हो गए कि राष्ट्रपति अशरफ गनी को देश छोड़ना पड़ गया. अफगानिस्तान की इस स्थिति के लिए सबसे ज्यादा दोष अमेरिका पर फोड़ा जा रहा है, क्योंकि अमेरिकी सेना की वापसी के तुरंत बाद से ही तालिबान ने अपना कब्जा जमाना शुरू कर दिया था. अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद पहली बार अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन देश को संबोधित किया. बाइडेन ने कहा कि, ‘अफगानिस्तान में हालात अचानक बदल गए. इसका असर दूसरे देशों पर भी पड़ा है, लेकिन आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई जारी रहेगी’. बाइडेन का यह संबोधन भारतीय समय के अनुसार सोमवार और मंगलवार की दरमियानी रात करीब 1.30 बजे हुआ. बाइडेन ने तालिबान को चेतावनी भी दी है कि, ‘अगर अमेरिकियों को नुकसान पहुंचाया तो तेजी से जवाब दिया जाएगा’.

अपने संबोधन में बाइडेन ने कहा कि, ‘हमारे सैनिकों ने बहुत त्याग किए हैं. अफगानिस्तान में भरोसे का संकट है. हम कोशिश कर रहे हैं कि अमेरिका का हर नागरिक वहां से सुरक्षित लौटे. लोग हम पर सवाल उठा रह हैं. उन्हें अफगानिस्तान छोड़कर जाने वाले उनके राष्ट्रपति अशरफ गनी से भी सवाल करने चाहिए. हमारी सेना और
जोखिम नहीं उठा सकती थी. उम्मीद है कि वहां हालात फिर बेहतर होंगे’.

बाइडेन की स्पीच की मुख्य बातें…
1. मेरी नेशनल सिक्योरिटी टीम और मैं खुद हालात पर पैनी नजर रख रहे हैं. हमें ये देखना होगा कि अमेरिका वहां क्यों गया था. हम वहां 20 साल रहे. हमने अल कायदा को नेस्तनाबूद किया. ओसामा बिन लादेन को खत्म किया. अफगानिस्तान को बनाने के लिए हर मुमकिन कोशिश की. अमेरिका ने अल-कायदा को खत्म करने के अपने लक्ष्य को हासिल करने में कामयाबी हासिल की है.
2. जब मैंने सत्ता संभाली तो उससे पहले डोनाल्ड ट्रम्प तालिबान से बातचीत कर रहे थे. 1 मई के बाद हमारे पास ज्यादा विकल्प नहीं थे, या तो हम वहीं रहते और तालिबान से लड़ते या फिर अमेरिकी सैनिकों को वापस लाते. मैं अपने प्लान पर कायम रहा.
3. मैं मानता हूं कि तालिबान बहुत जल्द काबिज हो गया. अफगान लीडरशिप ने बहुत जल्द हथियार डाल दिए. हमने वहां अरबों डॉलर खर्च किए. अफगान फोर्स को ट्रेंड किया. इतनी बड़ी फौज और हथियारों से लैस लोगों ने हार कैसे मान ली, यह सोचना होगा. यह गंभीर मुद्दा है.
4. अमेरिकी सेना वहां कितना और रुकती. एक साल या पांच साल. इससे क्या हालात बदल जाते? मैंने अशरफ गनी से जून में बात की थी. उनसे कहा था कि वे प्रशासन में करप्शन को खत्म करें. गनी को भरोसा था कि उनकी फौज तालिबान का मुकाबला कर लेगी.
5. मैं वो गलतियां नहीं कर सकता था जो पहले के लोगों ने कीं. इसलिए अपने प्लान पर जमा रहा. अफगान लोगों को अपना भविष्य तय करने का अधिकार है. वहां की फौज हमारे कई नाटो सहयोगियों से ज्यादा है. उनके पास हथियार भी थे. फिर ये क्यों हुआ? तालिबान तो संख्या में भी कम थे.
6. मैंने खुद वहां तैनात अपने सैनिकों से बातचीत की. फिर ये तय किया कि इस मामले को डिप्लोमैटिक तरीके से हल करना होगा. आखिरकार मुझे अमेरिका के हित भी देखने थे.
7. फिलहाल, हमने 6 हजार सैनिक वहां भेजे हैं, ताकि वे हमारे और अपने सहयोगी देशों के लोगों को निकाल सकें. वे वहां दिन रात काम कर रहे हैं. मैं चाहता हूं कि हमारे सभी सिविलियन वहां से सुरक्षित लौटें.
8. कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं कि हमने अफगानिस्तान के कुछ हमारे मददगारों को क्यों नहीं निकाला, लेकिन वे खुद यहां नहीं आना चाहते।.उन्हें हालात सुधरने का भरोसा है. अब तक अमेरिका के चार राष्ट्रपति अफगानिस्तान संकट झेल चुके हैं. मैं नहीं चाहता कि पांचवा राष्ट्रपति भी यही सब देखे.
9. हमने ओसामा बिन लादेन का एक दशक तक पीछा किया और उसे ढेर किया. मुझे अपने फैसले पर कोई अफसोस नहीं है, क्योंकि यह अमेरिका के हित में है. अपनी सेना को वहां रखना हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा हित में भी नहीं था.
10. हमने तालिबान को साफ कर दिया है कि अगर हमारे सैनिकों पर हमला हुआ तो हम बहुत सख्त और बहुत तेज एक्शन लेंगे. अमेरिकी सैनिक वहां से जा रहे हैं, लेकिन हम वहां पूरी तरह नजर रख रहे हैं.

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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने संबोधन में सेना के निकालने के फैसले को सही ठहराया है, लेकिन विश्व शक्ति होने का दावा करने वाला अमेरिका अब दुनिया के निशाने पर है और उसपर चौतरफा हमले हो रहे हैं. ऐसे में जो बाइडेन प्रशासन द्वारा वो कौन-सी गलती की गई हैं, जिनको लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं.

सैनिकों को निकालने की जल्दबाजी, तालिबान को मिलती गई बढ़त!
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 11 सितंबर तक अफगानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने का ऐलान किया था. इसी मिशन के तहत अमेरिका लगातार काम भी कर रहा था, करीब 90 से 95 फीसदी सैनिकों को वापस बुला लिया गया, लेकिन यही फैसला भारी पड़ गया और तालिबान का कब्ज़ा हो गया. जो बाइडेन ने तर्क दिया है कि अफगानी सैनिक जिस जंग को नहीं लड़ना चाह रहे हैं, ऐसे में अमेरिकी सैनिक अपनी जान क्यों दें. हमने अरबों रुपये खर्च किए हैं, 3 लाख से अधिक सैनिकों को ट्रेन किया है, मित्र देशों के साथ मिलकर काम किया है. हालांकि, जो बाइडेन की इन दावों से इतर जैसे अमेरिका ने आपाधापी में अपने सैनिकों को निकाला, उससे हालात बिगड़ते चले गए. यही कारण है कि मुश्किल वक्त में अफगानिस्तान को ऐसे छोड़कर जाने पर अमेरिका की दुनियाभर में थू-थू हो रही है.

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अमेरिका का सबसे बड़ा इंटेलिजेंस फेलियर?
अभी कुछ वक्त पहले ही जो बाइडेन से सवाल किया गया था कि अगर अमेरिकी सेना अफगानिस्तान छोड़ देगी, तो क्या तालिबान का कब्जा नहीं होगा? जिसपर बाइडेन ने बड़े ही जोश में कहा था कि नहीं, ये संभव ही नहीं है. हमने हर तरह से तैयारी की है और एक प्लान के तहत अफगानिस्तान से बाहर निकल रहे हैं. दरअसल, अमेरिका को उम्मीद थी कि जबतक उनकी सेना बाहर निकलेगी, तबतक अफगानिस्तानी आर्मी की ट्रेनिंग का असर दिखेगा और तालिबान आगे आने की हिम्मत नहीं करेगा. लेकिन अमेरिका के ऐलान के बाद ही तालिबान ने एक-एक कर पूरे इलाके पर कब्जा कर लिया और अमेरिकी एजेंसियां कुछ नहीं कर पाईं.

अफगानिस्तान के ताज़ा सच से बच रहा अमेरिका
अफगानिस्तान के ताजा हालात काफी बुरे हैं, लोग किसी भी तरह देश छोड़ना चाहते हैं. लेकिन लाखों लोगों में से सिर्फ कुछ को ही कामयाबी मिल रही है. सबसे बड़ा संकट महिलाओं और बच्चों पर आ रहा है, क्योंकि उनके सामने कोई रास्ता नहीं दिख रहा है. ऐसे में अमेरिका द्वारा सिर्फ अपने ही नागरिकों को निकालने पर सवाल खड़े हो रहे हैं. काबुल एयरपोर्ट पर भी अमेरिकी सैनिकों ने हवाई फायरिंग करते हुए अफगानी नागरिकों को प्लेन पर चढ़ने से रोका और अपने नागरिकों को वापस लाने का काम किया. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समेत कई रिपब्लिकन ने जो बाइडेन की इस नीति पर सवाल खड़े किए और इसे अमेरिकी सेना की सबसे बड़ी हार करार दिया.

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अपने संबोधन में राष्ट्रपति जो बाइडेन ने साफ कहा कि, ‘अफगान की लीडरशिप तालिबान का सामना करने की बजाय वहां से भाग गई है, ऐसे में अमेरिका वहां पर रहकर क्यों लड़ाई लड़े. हालांकि, अब इसी बयान को लेकर बाइडेन को घेरा जा रहा है, क्योंकि 20 साल पहले अलकायदा को खत्म करने के लिए अफगानिस्तान में घुसे अमेरिका के कारण वहां की स्थिति लगातार बिगड़ती चली गई. अब जब तालिबान मजबूत हुआ तो अमेरिका ने फिर अफगानिस्तान से मुंह फेर लिया. जो बाइडेन ने तीन लाख सैनिकों को ट्रेन करना का दावा किया है, हालांकि तालिबान के लड़ाकों द्वारा जिस तरह से अफगानी आर्मी को निशाना बनाया जा रहा है, उससे खतरा बढ़ता गया है. तालिबानियों के सामने अफगानी सेना ने हार मान ली और कई इलाकों में सरेंडर तक कर दिया. जो बाइडेन ने कहा कि मैंने अशरफ गनी को तालिबान के साथ बातचीत करने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने सेना के लड़ने की बात कही जिसमें वो फेल हो गए. अमेरिका की छवि को लगी सबसे बड़ी चोट?

अमेरिका हमेशा खुद को दुनिया की सुपरपॉवर घोषित करने की कोशिश करता है. विकसित देश होने के कारण उसे इस बात का फायदा भी मिलता है, लेकिन जिस तरह से ताजा प्रशासन ने अफगानिस्तान की स्थिति को हैंडल किया है, उससे अमेरिका की इस छवि को चोट पहुंची है. चाहे अमेरिका में हो या फिर दुनिया में इस नीति की हर ओर आलोचना हो रही है और यही कारण है कि एक्सपर्ट्स ये मान रहे हैं कि 21वीं सदी में अमेरिका की छवि पर सबसे बड़ा झटका है.

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