लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा है. सपा को सिर्फ पांच सीटों पर जीत हासिल हुई. हालात इतने बुरे रहे कि मुलायम परिवार के तीन सदस्य कन्नौज से डिंपल यादव, फिरोजाबाद से अक्षय यादव और बदायूं से धर्मेन्द्र यादव को हार का सामना करना पड़ा. तीनों प्रत्याशी 2014 की मोदी लहर में भी जीतने में कामयाब रहे थे लेकिन इस बार बसपा से गठबंधन के बावजूद सपा अपने घर बचाने तक में नाकामयाब रही.
वहीं बसपा के हालात पिछली बार की तुलना में सुधरे तो जरूर, लेकिन पार्टी को जिस प्रदर्शन की उम्मीद थी, बसपा वैसा प्रदर्शन नहीं कर पायी. रालोद के हालात तो 2014 की तरह ही निराशाजनक रहा. सपा-बसपा से गठबंधन होने के बावजूद पार्टी का प्रदेश में खाता तक नहीं खुला. जबकि पार्टी के खाते में गठबंधन की गणित के हिसाब से मजबूत सीटें आयी थी. रालोद सुप्रीमो चौधरी अजित सिंह को जाटलैंड मुजफ्फनगर और उनके पुत्र जयंत को बागपत से हार का सामना करना पड़ा है.
चुनाव में मिली हार के बाद अब यह चर्चा आम है कि सपा और बसपा का गठबंधन जारी रहेगा या टूट जाएगा. अगर गठबंधन जारी रहता है तो अब सपा-बसपा की अगली परीक्षा विधानसभा उपचुनावों में होगी. बता दें कि लोकसभा चुनाव में यूपी के 11 विधायक सांसद चुने गए हैं. इन विधायकों में आठ बीजेपी और एक बीजेपी के सहयोगी अपना दल के हैं. सपा और बसपा का एक-एक विधायक है.
प्रदेश की जिन सीटों पर उपचुनाव होंगे उनमें डला, गोविंद नगर, लखनऊ कैंट, प्रतापगढ़, गंगोह, मानिकपुर, जैदपुर, बलहा, इगलास, रामपुर सदर और जलालपुर सीटें शामिल हैं. लोकसभा चुनावों में बीजेपी की जबरदस्त कामयाबी और विपक्ष को मिली करारी पराजय के बाद ये उपचुनाव सत्तारूढ़ बीजेपी और विपक्ष के बीच शक्ति परीक्षण का पहला अवसर होगा. खासतौर पर विपक्ष के लिए खोई ताकत कुछ हद तक वापस पाने का मौका होगा. उपचुनावों में अच्छा प्रदर्शन कर सपा और बसपा 2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारी को भी परख पाएंगे.
वैसे उपचुनावों में विपक्षी गठबंधन हो या न हो, बसपा के रुख पर सबकी निगाहें रहेंगी. क्योंकि पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि बसपा उपचुनाव में हिस्सा नहीं लेती है. योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री और केशव प्रसाद मौर्य के उप-मुख्यमंत्री बनने के बाद हुए गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में भी बसपा ने भाग नहीं लिया था. बसपा के पुराने रुख को देखते हुए तो ये सुनिश्चित लग रहा है कि इन उपचुनावों में तो बसपा अखिलेश यादव का साथ देगी. इन्हीं चुनावों के नतीजों के आधार पर सपा-बसपा के साथ का भी फैसला हो जाएगा. अगर सपा को कामयाबी मिली तो गठबंधन लंबा चल सकता है. अन्यथा खराब प्रदर्शन की स्थिति में दोनों का साथ छूटना तय है.
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