भारी बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करने के बाद सदन के पहले सत्र की शुरुआत में ही मोदी सरकार ने तीन तलाक बिल को एक बार फिर पेश किया है. बिल पेश करने के समर्थन में 186 जबकि विरोध में 74 वोट पड़े. अब सरकार की इस बिल को लेकर असली परीक्षा राज्यसभा में होने वाली है. सोमवार को तीन तलाक विधेयक राज्यसभा में पेश किया जाएगा.

इस बिल को पहली बार मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में दिसंबर, 2017 में लोकसभा में पेश किया था. हालांकि तब भी यह निम्न सदन से तो पास हो गया था, लेकिन उच्च सदन में यह विधेयक पारित नहीं हो सका क्योंकि यहां बीजेपी और उसके सहयोगी दल अल्पमत में हैं. हालांकि सरकार ने लगातार दो अध्यादेशों लाकर इसे जारी रखा था.

सरकार की तरफ से तीन तलाक विधेयक के लिए पहला अध्यादेश सितंबर, 2018 में लाया गया था. दूसरा अध्यादेश फरवरी, 2019 में लाया गया था. अध्यादेश की वैधता 6 महीने की होती है. अतः इस अध्यादेश की अवधि भी जुलाई में समाप्त हो रही है. इसी वजह से सरकार ने इस सदन के पहले सत्र में ही पेश कर दिया. मोदी सरकार को इस बार भी तीन तलाक विधेयक को राज्यसभा से पारित करा लेने को लेकर संशय में है.

राज्यसभा में फिलहाल 245 सीटें हैं और सरकार को इस बिल को पास कराने के लिए 123 मतों की जरुरत है. वर्तमान में राज्यसभा में बीजेपी के 71 सांसद है. वहीं गुरुवार को चंद्रबाबु नायडू की पार्टी टीडीपी के चार सांसदों ने टीडीपी से इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया है. इस कारण बीजेपी की सांसदों की संख्या 75 हो गई है.

इसके अलावा, AIADMK के 13, टीआरएस के 6, वाईएसआरसीपी के 2 और बीजेडी के 5 सांसदों का समर्थन भी बीजेपी को मिलने की उम्मीद है. अगर इन सभी पार्टियों के सांसदों का समर्थन भी बीजेपी को मिलता है तो भी संख्या 101 तक ही पहुंचती है.हालांकि 5 जुलाई को देश की 6 राज्यसभा सीटों पर चुनाव होने है. इन सीटों पर बीजेपी और उसके सहयोगी पार्टियों के उम्मीदवारो के जीतने की आशंका है.

अगर नतीजे बीजेपी के अनुमान के अनुसार भी आते है तो भी बीजेपी इस बिल को राज्यसभा में पास नहीं करा पाएगी. अगर विरोध करने वाली पार्टियों के सांसदों ने सदन की कार्यवाही में भाग लिया तो मुमकिन है कि इस बार भी तीन तलाक बिल लटक जाए, जैसा कि पहले हो चुका है. ये स्थिति इसलिए है क्योंकि राज्यसभा में सरकार के पास उतने नंबर नहीं है कि वो विरोध के बीच तीन तलाक बिल को पास करवा ले.

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