उम्मीदवारों का एलान होने के बाद लोकसभा चुनाव का रोमांच चरम की ओर बढ़ रहा है. राजनीति के जानकारों के बीच हो रही चर्चा का सबसे बड़ा केंद्र उत्तर प्रदेश है. 2014 के चुनाव में भाजपा ने यहां की 80 में से 71 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था. भाजपा का दावा है कि पार्टी इस बार उत्तर प्रदेश में इससे भी अच्छा प्रदर्शन करेगी, लेकिन समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन ने उनकी राह में कांटें बिछा दिए हैं.
सपा-बसपा का गठबंधन भाजपा ही नहीं, उसके सहयोगी दलों के लिए भी मुसीबत बन गया है. बता दें कि भाजपा उत्तर प्रदेश में अपना दल (एस) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के साथ लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरी है. इन दोनों दलों में 2014 के चुनाव के समय से ही उथल-पुथल मची है, जो अभी तक शांत नहीं हुई है.
पहले अपना दल की बात करें तो इस पार्टी का गठन 1995 में डॉ.सोनेलाल पटेल ने किया था. उन्होंने संगठन का ढांचा तो तैयार किया, लेकिन खुद कभी चुनाव नहीं जीत पाए. हालांकि उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल ने 2012 के विधानसभा चुनाव में वाराणसी की रोहनिया सीट से जीत दर्ज की. उनके अलावा पार्टी का एक और उम्मीदवार विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहा.
2014 लोकसभा चुनाव अपना दल ने भाजपा के साथ गठबंधन में लड़ा. इस चुनाव में मिर्जापुर से अनुप्रिया पटेल और प्रतापगढ़ से कुंवर हरिवंश सिंह ने जीत हासिल की. असल में अपना दल का मूल वोट बैंक कुर्मी और पटेल जाति को माना जाता है. मिर्जापुर और प्रतापगढ़ के अलावा आसपास की करीब एक दर्जन सीटों पर इन जातियों का प्रभाव है. अपना दल के साथ आने से इन सीटों पर कुर्मी और पटेल वोट भाजपा को मिले.
लोकसभा चुनाव में जीत के बाद अनुप्रिया को केंद्र में मंत्री बनाया गया, लेकिन उनके शपथ लेने के कुछ महीने के बाद ही उनकी अपनी मां कृष्णा पटेल से तनातनी हो गई. दोनों के बीच हुआ विवाद पार्टी टूटने के बाद खत्म हुआ. कृष्णा पटेल अपना दल की मुखिया बन गईं जबकि अनुप्रिया ने अपना दल (एस) का गठन किया. वहीं, दोनों के बीच हुआ विवाद से नाराज कुछ नेताओं ने अपना दल बलिहारी नाम से नई पार्टी बना ली.
यह भी पढ़ें: उत्तर प्रदेश में ‘बड़ा खेल’ करने की तैयारी में ‘छोटे दल’
अपना दल में यह टूट यहीं नहीं थमी. पार्टी के दूसरे सांसद कुंवर हरिवंश सिंह ने राष्ट्रीय अपना दल के नाम से चौथी पार्टी बना ली. इलाके की राजनीति के जानकारों की मानें तो पार्टी में हुई गुटबाजी से कुर्मी और पटेल वोट बंट गए हैं. प्रतापगढ़ से अपना दल के पूर्व सांसद और एक मौजूदा विधायक ने भी बागी तेवर अपना रखे हैं. ऐसे में बदले हुए समीकरण मिर्जापुर में अनुप्रिया पटेल के लिए मुसीबत बन सकते हैं.
भाजपा के दूसरे सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) की बात करें तो उसने खुद अपने और अपने सहयोगी दल की राह में कांटे बिछाने का काम किया. अति पिछड़ी जातियों को जोड़ने के लिए भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में सुभासपा से समझौता किया. समझौते में सुभासपा को विधानसभा की आठ सीटें मिली, जिसमें चार सीटों पर उसने जीत दर्ज की और पार्टी अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने.
मंत्री बनने के बाद भी ओम प्रकाश राजभर सरकार की नीतियों की लगातार आलोचना करते रहे. उनका कहना था कि भाजपा ने उन्हें पिछड़ा वर्ग का आरक्षण तीन हिस्सों में बांटने का आश्वासन दिया था, जिस पर अभी तक कोई काम नहीं किया. उनकी भाजपा से नाराजगी और लगातार मंच से उसके खिलाफ टिप्पणियां ही आज उनके रास्ते में कांटा बिछा चुकी है.
वीडियो देखें: यूपी में बड़ा ‘दंगल’ करेंगे ये ‘दल’