टोंक जिले के परासिया निवासी ट्रैक्टर चालक भजन लाल मीणा के शव का अंतिम संस्कार भले ही मंगलवार रात को हो गया हो, लेकिन उनकी मौत पर सवालों की फेहरिस्त लंबी ही होती जा रही है. एक ओर जहां पुलिस पहले भजन लाल की मौत को दुर्घटना बता रही थी, वहीं जिला कलेक्टर रामचंद्र ढेनवाल ने राजस्थान सरकार को भेजी रिपोर्ट में इसे पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत बताया. हैरत की बात तो यह है कि बीते दिन जब जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल के अधीक्षक की ओर से मेडिकल बोर्ड बनाकर भेजा गया तो उस आदेश में यह लिखा गया कि टोंक में गोलीकांड हुआ है.

इस मामले की कड़ियों को जोड़ने से पहले आपको घटना के बारे में बता दें. घटना 29 मई की है. टोंक जिले के परासिया गांव के भजन लाल मीणा ट्रैक्टर से कहीं जा रहे थे. आरोप है कि गणेती गांव के पास पुलिसकर्मियों ने उसे रोका और लकड़ी से फट्टे द्वारा बेरहमी से पीटकर हत्या कर दी. प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो थानाधिकारी सहित आधा दर्जन पुलिसकर्मी सिविल ड्रेस में थे और एक निजी कार में सवार होकर आए थे. मारपीट के दौरान जब ग्रामीण मौके की ओर दौड़े, तब तक पुलिसकर्मियों ने शव को नगरफोर्ट अस्पताल पहुंचा दिया. घटना की खबर जब परिजनों को मिली तो वे ग्रामीणों के साथ इकट्ठे होकर अस्पताल पहुंचे और बाद में थाने का घेराव किया.

मामले की जानकारी जब विधायक हरीश मीणा को मिली तो वे नगरफोर्ट पहुंचे और पीड़ित परिवार के साथ धरने पर बैठ गए. विधायक और ग्रामीणों ने आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने, शव का मेडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम करवाने, आश्रितों को सरकारी नौकरी देने और मृतक परिवार के दोनों बच्चों के खाते में 20-20 लाख रुपये जमा करवाने के साथ टोंक जिले में चल रहे बजरी के गोरखधंधे में लिप्त दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ सीआईडी से जांच करवाने की मांग की.

स्थानीय प्रशासन ने विधायक हरीश मीणा के साथ कई दौर की वार्ता की, लेकिन समझौता नहीं हुआ. मीणा को जब यह लगा कि सरकार उनके आंदोलन पर ध्यान नहीं दे रही है तो उन्होंने आमरण अनशन शुरू कर दिया. जहाजपुर से बीजेपी विधायक गोपी चंद मीणा भी उनके साथ अनशन पर बैठे. मामला मीडिया में आते ही नेताओं का जमावड़ा लगना शुरू हो गया. डॉ. किरोड़ी लाल मीणा, सुखबीर सिंह जौनपुरिया, प्रहलाद गुंजल, दानिश अबरार सहित कई नेता अनशन स्थल पर पहुंच गए.

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मामले को तूल पकड़ते देख मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने घटना के छठे दिन यानी 4 मई को हाई लेवल बैठक कर मंत्री रमेश मीना को नगरफोर्ट भेजा. मीणा ने सभी पांच सूत्री मांगों को मानते हुए दोनों विधायकों को जूस पिलाकर अनशन तुड़वा दिया. शर्तों के अनुसार मेडिकल बोर्ड का गठन हुआ, जिसमें मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी टोंक द्वारा पहले मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया, जिसमें 3 जून को स्थानीय तीन डॉक्टरों को जिम्मेदारी दी गई, लेकिन सरकार ने 4 जून की सुबह सवाई मान सिंह अस्पताल के अधीक्षक की ओर से आदेश जारी कर पांच डॉक्टरों का मेडिकल बोर्ड गठित किया.

सवाई मान सिंह अस्पताल के अधीक्षक के आदेश में मुख्य सचिव और चिकित्सा विभाग के आदेशों का हवाला देते हुए कहा गया कि टोंक में एक गोलीकांड हुआ है, जिसमें मृतकों के शवों का पोस्टमार्टम किया जाना है. उसके लिए मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाता है, जो सुबह 6 बजे जयपुर से रवाना होकर टोंक जिले में मौके पर जाकर मृतकों के शवों का पोस्टमार्टम करेंगे. मेडिकल बोर्ड में डॉ. डीके शर्मा, डॉ. पीडी मीणा, डॉ. अमित जैन, डॉ. एसएन वर्मा और डॉ. रविराज सिंह को शामिल किया गया.

सबको यह पता है कि एक व्यक्ति की मौत हुई है और संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई है. ग्रामीणों के अलावा कांग्रेस के विधायक हरीश मीणा पुलिस पर हत्या का आरोप लगा रहे हैं. धरने पर बैठे हैं. अनशन कर रहे हैं. मंत्री अनशन तुड़वाने आ रहे हैं. थानाधिकारी सहित छह पुलिसकर्मी संस्पेंड हो चुके हैं. इतना सब होने के बाद भी राजस्थान सरकार का चिकित्सा विभाग, सवाई मान सिंह अस्पताल के अधीक्षक, टोंक कलेक्टर रामचंद्र ढेनवाल, टोंक पुलिस अधीक्षक चूनाराम जाट और टोंक के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. सुरेश भंडारी को यह भी मालूम नहीं है कि वहां हादसा हुआ है या गोलीकांड.

सभी आदेश सामने आने के बाद स्थानीय नागरिक ही नहीं, कांग्रेसी भी सरकारी कारिंदों से यह सवाल पूछ रहे हैं कि साहब हादसा हुआ, दुर्घटना हुई, मुठभेड़ हुई, गोलीकांड हुआ या पुलिस ने हत्या की. कोई यह तो बता दे कि थानाधिकारी मनीष चारण और पांच अन्य पुलिसकर्मियों को संस्पेंड क्यों किया गया. यह तो बताओं की आखिर ट्रैक्टर चालक की मौत कैसे हुई. गोलीकांड के शव कहा हैं. आखिर किसने उनका पोस्टमार्टम किया. कहां उनका अंतिम संस्कार हुआ.

गजब है ना राजस्थान के पुलिस, प्रशासन और चिकित्सा विभाग से अधिकारी. और गजब है राजस्थान की सरकार, जिसमें ऐसे अफसर उच्च पदों पर बैठे हैं, जो सूचना शून्य हो चुके हैं. जो संवेदना शून्य हो चुके हैं. जो सवालों के जवाब नहीं देते. जिन पर सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती है. हद तो यह है कि मीडिया पर इस मामले में दबाव डाला जा रहा है. धमकाया जा रहा है. प्रलोभन दिया जा रहा है. लेकिन ‘पॉलिटॉक्स’ की टीम न तो किसी से डरी है और न डरेगी. ‘पॉलिटॉक्स’ को उम्मीद है कि इस खुलासे के बाद गहलोत सरकार जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई करेगी.

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