Politalks.News/GoaElection/TMC. पांच राज्यों का चुनावी घमासान चरम की ओर है. चुनावी राज्य गोवा (Goa Assembly Election 2022) के सियासी गलियारों में चर्चा हो रही है कि क्या तृणमूल कांग्रेस (Trinmool Congress) पार्टी का चुनावी अभियान पटरी से उतर गया है. गोवा में TMC ने ताबड़तोड़ शुरुआत की थी. कांग्रेस के कई नेता TMC में आए थे. लेकिन जैसे जैसे चुनावी अभियान आगे बढ़ा रफ्तार धीमी पड़ती जा रही है. TMC में गए नेताओं को धीरे धीरे समझ में आने लगा है कि तृणमूल का एकमात्र मकसद कांग्रेस (Congress) को कमजोर करना है इसके बाद कांग्रेस नेताओं की घर वापसी शुरू हो गई है. कांग्रेस के नेता तृणमूल छोड़ कर वापस कांग्रेस से जुड़ने लगे हैं. सियासी जानकारों का कहना है कि इस बात को समझते हुए ही तृणमूल ने कांग्रेस के साथ गोवा में तालमेल की पहल की थी.
सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा है कि तृणमूल के बड़े नेताओं के कांग्रेस से बात हुई है. तब यह कहा गया था कि तृणमूल ने बराबर सीटों की मांग की थी, जिस पर कांग्रेस ने ध्यान ही नहीं दिया. बाद में कांग्रेस छोड़ कर तृणमूल में गईं नफीसा अली से अपील करवाई गई. उन्होंने सोनिया गांधी से अपील करते हुए कहा कि, ‘वे गोवा में तृणमूल से तालमेल करें. लेकिन कांग्रेस ने इस पर भी ध्यान नहीं दिया. इसका नतीजा यह हुआ है कि एक-एक करके गोवा कांग्रेस के ज्यादातर नेता कांग्रेस में वापस लौट गए हैं. जो बचे हुए हैं वे भी अगले कुछ दिन में वापसी कर लेंगे या चुनाव के बाद जिसकी सरकार बनती दिखेगी उसमें चले जाएंगे.
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गोवा के निर्दलीय विधायक प्रसाद गोवनकर ने भी तृणमूल छोड़ दी है और इस चुनाव में कांग्रेस का साथ देने का फैसला किया है वे पिछले साल अक्टूबर में टीएमसी के साथ गए थे. कांग्रेस के पूर्व विधायक लावू मामलेदार, मोहिद्दीन आरिफ ने भी पार्टी छोड़ी थी लेकिन वे भी कांग्रेस में लौट गए हैं. कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और तीन बार विधायक रहे अलेक्सो लॉरेंसो ने एक महीने में ही पार्टी छोड़ी और अब कांग्रेस में लौट गए. वे सिर्फ कांग्रेस में लौटे नहीं हैं, बल्कि तृणमूल को बाहरी पार्टी बताते हुए उसका साथ देने के लिए माफी भी मांगी है.
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बड़े कांग्रेस नेताओं में लुइजिन्हो फ्लेरियो को तृणमूल ने राज्यसभा सीट दे दी है इसलिए वे उसके साथ हैं लेकिन यहीं बात चर्चिल अलेमाओ और उनकी बेटी वलांका के लिए नहीं कही जा सकती है. इस बार दोनों तृणमूल की टिकट से लड़ रहे हैं और जीत गए तो कोई जरूरी नहीं है कि टीएमसी के साथ रहें. तो ऐसे हालत में ये माना जा रहा है कि गोवा में तृणमूल का अभियान भारी भरकम खर्च के बाद भी पटरी से उतर गया है. क्या चुनाव आते-आते पूर्वोत्तर में भी ऐसा ही होगा?