कांग्रेस की करारी हार को लेकर पार्टी में मंथन का सिलसिला जारी है. एक ओर जहां राहुल गांधी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को हार के लिए कसूरवार ठहरा रहे है तो वहीं दूसरी तरफ वरिष्ठ नेता राहुल की टीम पर ही हार का ठीकरा फोड़ रहे हैं. दिग्गजों का दावा है कि राहुल की टीम में शामिल लोग भले ही विदेशों में पढ़े प्रोफेशनल और प्रशासनिक सेवा में रहे हो, लेकिन उन्हें राजनीति की एबीसीडी का जरा सा भी ज्ञान नहीं था.
ये लोग राहुल गांधी से कई दिनों तक मिलने नहीं देते थे और राहुल पर इनका जादू ऐसा था कि अंतिम फैसला इनसे पूछकर ही करते थे.इनमें के राजू राहुल गांधी के एक तरह से सबकुछ थे. वो राहुल को अगर दिन में भी रात बताते तो वो मान लेते थे. इसके अलावा संदीप सिंंह, अलंकार सवई, कौशल विद्यार्थी, सचिन राव, निखिल अल्वा और सैम पित्रोदा राहुल टीम के सदस्य थे. राहुल के प्रचार से लेकर भाषण और मीडिया से बातचीत सबकुछ ये ही तय करते थे. पार्टी के बड़े नेता राहुल की टीम को भी इतनी बड़ी हार के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. आइए जानते हैं कि इनकी क्या-क्या भूमिका रही.
के राजू
के राजू राहुल गांधी के हाथ में पार्टी की कमान आते ही एक तरह से सर्वेसर्वा हो गए थे. राहुल हर कदम के राजू की सलाह पर ही उठाते थे. कमाल की बात देखिए कि सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी एक पूर्व आईएस के इशारों पर चलने लगी थी. इसके अलावा राहुल के स्टॉफ की अधिकतर नियुक्ति भी उनकी सिफारिश पर हुई थी. वहीं राहुल की प्रोफेशनल टीम बनाने का काम भी के राजू ने अंजाम दिया. अफसोस एक अफसर को प्रशासनिक काम देने के बजाय सियासी फैसले लेने की बागडोर दे दी गई. के राजू पार्टी के अनुसूचित जाति विभाग के अध्यक्ष भी है.
निखिल अल्वा
पूर्व राज्यपाल मारग्रेट अल्वा के बेटे निखिल अल्वा राहुल के कॉलेज के जमाने से दोस्त है. ये राहुल का सारा सोशल मीडिया का काम देखते थे और निखिल ने चुनाव से अचानक पहले राहुल गांधी किस मीडिया संस्थान को इंटरव्यू देंगे यह जिम्मेदारी भी रणदीप सुरजेवाला से हथिया ली. निखिल को अचानक इतना बड़ा जिम्मा मीडिया रिलेशनशिप का ज्यादा तजुर्बा नहीं होने के बावजूद मिल गया था. निखिल अल्वा की पढाई भी भारत से बाहर हुई है.
अंलकार सवई
अंलकार सवई का अपनी जिंदगी में पहले कभी राजनीति से वास्ता नहीं पड़ा. राहुल के स्टॉफ से पहले अंलकार कई विदेशी बैंकों में काम कर चुके थे. चुनाव के दौरान और उससे पहले अंलकार राहुल के निजी सचिव के तौर पर रिसर्च और डॉक्यूमेंटेशन का कामकाज देख रहे थे. राहुल बैठक कहां करेंगे, कार्यक्रम कैसा रहेगा, यह नोटिंग का काम भी अलंकार देखने लगे. बैंकर्स से राजनीति कार्यक्रम कराना वैसा ही होगा जैसे बंदर के हाथ में उस्तरा देना.
संदीप सिंह
राहुल के दफ्तर में जो पीए लोगों की टीम है उनमें ज्यादातर वामपंथी सोच के है. राहुल ही नहीं प्रियंका गांधी के पीए का रोल निभाने वाला संदीप सिंह जेएनयू से आने वाली वामपंथी सोच के हैं. कहा जाता है कि संदीप सिंह ने मनमोहन सिंह को पीएम रहते हुए काले झंडे दिखा दिए थे. राहुल गांधी को इंदिरा गांधी की सेक्युलरिज्म अपनाने के बजाय वामपंथियों के सेक्युलरिज्म अपनाने की सलाह ऐसे ही लोग देतेे थे. कन्हैया प्रकरण में तुरंत जेएनयू जाने की सलाह भी राहुल गांधी को ऐसे लोगों ने दी थी.
कौशल विधार्थी
कौशल राहुल गांधी के निजी सचिव है. पार्टी के दिग्गज नेताओं की राहुल के साथ मुलाकात का काम कौशल देखते हैं, लेकिन कौशल न तो वाट्सएप चैक करते हैं और न टेक्स्ट मैसेज. कई पीसीसी चीफ और प्रभारियों ने राहुल से कई दफा इसकी शिकायत भी की. ऑक्सफॉर्ड में पढ़े कौशल राहुल को राजनीतिक सलाह भी देने लगे थे. यहां तक की कई नेताओं की सिफारिश करते हुए उन्हें टिकट भी दिलाई, जबकी टिकट दिए जाने वाले के बैकग्राउंड और क्षेत्र की जानकारी तक कौशल को नहीं होती थी.
प्रवीण चक्रवती
राहुल के स्टॉफ में शामिल प्रवीण चक्रवर्ती डेटा विभाग का काम देखते हैं. चक्रवर्ती के अर्थमैटीक ज्ञान के राहुल कायल हो गए थे. शक्ति प्रोजेक्ट और बूथ डेटा के आधार पर प्रवीण ने राहुल को घुट्टी पिला दी कि मोदी किसी भी सूरत में दोबारा नहीं आएंगे. फिर राहुल प्रवीण के तर्कों के आधार पर खुलकर पब्लिक में बीजेपी के नहीं आने के दावे करने लगे.
संघ और शाह की धरातल पर बिछाई गई बिसात प्रवीण चक्रवर्ती के आंकड़ों से बेहद परे थी. प्रवीण के हवाई सर्वे ने राहुल में अतिआत्मविश्वास पैदा कर दिया था. राहुल दिल से ऐसा मानकर चलने लगे. डेटा विभाग ने शक्ति एप के जरिए जो बूथ लेवल के आंकड़े दिए, उसके आधार पर जो परिणामों का अनुमान लगाया सब उसके उलट रहा.
सैम पित्रोदा
राजीव गांधी के बेहद करीबी रहे सैम पित्रोदा भी एक तरह से राहुल के फैसलों पर हावी हो गए थे. बताया जा रहा है कि कार्यकारी पीसीसी चीफ, राज्यों में सहप्रभारी और मेरा बूथ-मेरा गौरव जैसे कार्यक्रम लागू करने के पीछे अंकल सैम के ही आईडिए थे. राहुल के विदेश दौरों में भी सैम का रोल था. पार्टी में सभी नेता अंकल सैम को राहुल का गुरू और तकनीकी सलाहकार बोलते थे. चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने 1984 के सिख दंगों को लेकर ‘हुआ तो हुआ’ बयान देकर कांग्रेस को हराने में कोई कोर कसर भी नहीं छोड़ी.
ये लोग राहुल गांधी और उनके फैसलों पर इतनी हावी हो गए थे कि राहुल पार्टी के नेताओं से राय मशविरा तो जरूर ले लेते थे, लेकिन अंतिम वो ही होता था जो ये टीम तय करती थी. ऐसे में गैर सियासी लोगों की सलाह से बंटाधार होना तय था. इसी टीम की सलाह पर ही अमेठी में सोनिया गांधी ने जो टीम तैयार की थी उसकी छुट्टी करा दी. लिहाजा अमेठी में राहुल की हार में टीम आरजी ने भी बखूबी खलनायक का रोल निभाया.