कांग्रेस मेें नजदीक आता जा रहा है गांधी परिवार की विदाई का समय, अध्यक्ष पद के लिए चुनाव जरूरी

गुलाम नबी आजाद बोले- कांग्रेस को बचाने के लिए चुनाव जरूरी वरना कांग्रेस अगले 50 सालों तक विपक्ष में बैठी रहेगी, राहुल या प्रियंका कोई करिश्मा करेंगे तो ही कांग्रेस में बने रह पाएंगे, कांग्रेस में हो रही है नए युग की शुरूआत, सीनियर कांग्रेस नेताओं ने कांग्रेस को बचाने के लिए उठा लिया है बडा कदम.

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Politalks.News. देश पर लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस में गांधी परिवार की विदाई का समय आ गया लगता है। कांग्रेस के वरिष्ठ 23 नेताओं के लेटर बम का धमाका इतना जोरदार था कि उसकी गूंज सब जगह सुनाई पड रही है. इसे कांग्रेस की कलह के रूप में नहीं बल्कि कांग्रेस के नए उदय के रूप में ही देखा जाना चाहिए. कांग्रेस पर एक छत्र राज करने वाले गांधी परिवार के दिन अब लद गए हैं. सोनिया स्वास्थ्य कारणों से सक्रिय नहीं हो पा रही। राहुल गांधी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं. प्रियंका भी भाई की उस बात से सहमति जता चुकी है, जिसमें कहा गया था कि अगला अध्यक्ष गांधी परिवार से नहीं होगा.

खास बात यह है कि इन सारी स्थितियों के बीच यह तीनों नेता ही कांग्रेस के सारे अहम निर्णय कर रहे हैं. गांधी परिवार के दोहरे रवैये के चलते कांग्रेस की बडी लीडरशीप में अच्छा संदेश नहीं गया. एक के बाद एक राज्य कांग्रेस के हाथ से छिनते चले गए. मोदी के मुकाबले राहुल के कमजोर नेतृत्व के कारण लोकसभा चुनाव में जनता ने कांग्रेस के बोरी बिस्तर समेट दिए.

कारण एक नहीं कई हो सकते हैं, लेकिन कांग्रेस नेताओं की चिट्ठी से समझें तो सबसे बडा कारण गांधी परिवार ही है. इन नेताओं के हिसाब से कांग्रेस को बचाना है तो अध्यक्ष पद सहित राज्य, जिला और ब्लाॅक स्तर तक लोकतांत्रिक प्रकिया से पार्टी नेताओं को चुनकर उन्हें जिम्मेदारी संभलाई जानी चाहिए.

राज्यसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि चुनाव नहीं हुए तो विपक्ष में 50 साल बैठना पड जाएगा. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस में चुनाव को लेकर नेता कितने गंभीर हो चुके हैं. इसका सीधा सा अर्थ यह भी निकल रहा है कि गांधी परिवार से जुडे कुछ नेताओं को छोडकर अधिकांश नेता चुनाव चाहते हैं.

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आश्चर्य की बात है कि सोनिया गांधी 20 साल तक सिर्फ इसलिए अध्यक्ष बनी रही कि राहुल गांधी की उम्र और अनुभव इतना हो जाए कि वो कांग्रेस संभाल लें. सोनिया गांधी ने पद छोडा तो राहुल अध्यक्ष बन गए. जबकि राहुल से दो गुना अधिक उम्र और कई गुना अनुभव वाले नेता कांग्रेस में बैठे हैं लेकिन अध्यक्ष तो राहुल गांधी ही बने.

लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद सदमें आए राहुल ने जिम्मेदारी निभाने से मना कर दिया तो मां सोनिया गांधी ने अंतरिम अध्यक्ष बनकर एक बार फिर से पार्टी की बागडोर अपने हाथ में ले ली. अंतरिम अध्यक्ष की एक साल की मियाद भी पूरी हो गई. लेकिन कांग्रेस के अगले अध्यक्ष को लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं. यानि कि अगले अध्यक्ष के लिए चुनाव की कोई बात नहीं. वहीं भाजपा का आॅपरेशन लोटस एक के बाद एक कांग्रेस शासित सरकारों को गिराने या फिर अस्थिर करने में सफल होता जा रहा है.

इन सबके बीच अगर गांधी परिवार के खिलाफ कांग्रेस की सीनियर लीडरशीप लामबद्ध हो रही है तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है. गुलाम नबी आजाद जो कह रहे हैं, वो बात भी सही है कि कांग्रेस में चुनाव की प्रक्रिया शुरू नहीं की गई या सक्रिय लीडरशीप तैयार नहीं की गई तो भाजपा का मुकाबला नहीं किया जा सकता है. गुलाम नबी ने तो इतना तक कह दिया कि हो सकता है विभिन्न प्रदेशों में बनाए जाने वाले अध्यक्षों को एक प्रतिशत कार्यकर्ताओं का भी समर्थन प्राप्त ना हो. उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी में एक प्रतिशत नेता भी ऐसे नहीं होंगे जो बिना चुनाव के अध्यक्ष चाहते हों.

गुलाम नबी आजाद ने अपनी बात यहीं समाप्त नहीं की. आगे बोले- जब आप चुनाव लड़ते हैं तो कम से कम 51 प्रतिशत लोग आपके साथ होते हैं और आप पार्टी के भीतर केवल 2 से 3 लोगों के खिलाफ चुनाव लड़ते हैं. एक व्यक्ति जिसे 51 प्रतिशत वोट मिलेंगे, अन्य को 10 या 15 प्रतिशत वोट मिलेंगे. जो व्यक्ति जीतेगा वह अध्यक्ष बनेगा, इसका मतलब है कि 51 प्रतिशत लोग ही उसके साथ हैं.

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चुनाव का लाभ है कि जब आप चुनाव लड़ते हैं, तो कम से कम आपकी पार्टी के 51 प्रतिशत लोग आपके साथ खड़े होते हैं. अभी अध्यक्ष बनने वाले व्यक्ति के पास एक प्रतिशत समर्थन भी नहीं हो सकता है. गुलाम नबी के तेवरों से आप समझ सकते हैं कि कांग्रेस में चुनाव को लेकर मामला कितना बढ चुका है.

गांधी परिवार के पास विकल्प क्या
गांधी परिवार में सोनिया, राहुल और प्रियंका के रूप में तीन सदस्य हैं, इनमें सोनिया गांधी स्वास्थ्य कारणों से बीते समय की बात हो चुकी है. राहुल गांधी भी अध्यक्ष बनने के बाद कोई करिश्मा नहीं दिखा सके हैं, उल्टा हुआ यह कि हर राज्य में सीनियरों के मुकाबले जूनियर को खडा कर दिया. अब जगह-जगह हो रहे वर्चस्व के संघर्ष से निबटने में लगे हैं. फिर लोकसभा चुनाव में हार के बाद जिम्मेदारी निभाने से हाथ खडे कर दिए. अब बचती है प्रियंका गांधी, लेकिन प्रियंका को अध्यक्ष बनाने की मांग कहीं से भी नहीं आ रही है. एक भी सीनियर या जूनियर नेता नहीं कह रहा है कि प्रियंका लाओ-कांग्रेस बचाओ.

सही बात तो यह है कि कांग्रेस में नेताओं का एक बडा वर्ग गांधी परिवार की राजनीति को हजम नहीं कर पा रहा है. ऐसे में चुनाव की मांग उठना स्वाभाविक है. यही कारण रहा कि अंतरिम अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी के एक साल पूरे होते ही चिठठी का धमाका कर गांधी परिवार की नींद उडाई गई. साफ संकेत दिए गए, कि बस, अब और नहीं चलेगा ऐसा.

क्या हो सकता है आगे
मोटे-मोटे तौर पर एक बात साफ नजर आ रही है कि कांग्रेस दो खेमों में बंट चुकी है. यानि कांग्रेस में गांधी परिवार से जुडे नेता वर्सेस अन्य के बीच मुकाबला होना तय है. यह भी तय हो गया है कि चुनाव कराएं जाएंगे. चुनाव होंगे तो फिर निचले स्तर से चुनाव की प्रक्रिया शुरू की जाएगी. हर जगह गांधी परिवार के हितेशी नेता और अन्यों के बीच संघर्ष होगा. गांधी परिवार भी जानता है कि एक बार चुनाव में वो बाहर हो गया तो फिर बिना कोई राजनीतिक करिश्मा दिखाए बिना वापस लौटना मुश्किल होगा. ऐसे में या तो एक नई कांग्रेस बनेगी या फिर कांग्रेस में गांधी परिवार का युग समाप्त हो जाएगा.

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय में ऐसा हो चुका है, इंदिरा गांधी ने भी मुख्य कांग्रेस से अलग होकर इंदिरा कांग्रेस बनाई थी, बाद में वही इंदिरा कांग्रेस को ही इंडियन नेशलन कांग्रेस का नाम मिला. लेकिन इंदिरा गांधी का दौर अलग था, वो प्रधानमंत्री रह चुकी थीं, इसलिए हर राज्य में नेताओं की भीड उनके साथ आ गई. अब अगर ऐसा राहुल या प्रियंका करें तो जरूरी नहीं कि उन्हें कांग्रेस नेताओं या जनता का इतना बडा समर्थन मिल जाएगा.

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भाजपा पूरे देश में वैचारिक माहौल तैयार कर चुकी है कि कांग्रेस का मतलब ही गांधी परिवार है. कांग्रेस का मतलब एक ही परिवार है. भाजपा यह भी जनता के दिमाग में बैठा चुकी है कि देश पर सबसे ज्यादा राज गांधी परिवार ने किया और देश के हालातों के लिए यही परिवार और पार्टी जिम्मेदार है.

पार्टी के वर्तमान हालातों के बीच गुलाम नबी आजाद कुछ गलत तो नहीं कह रहे हैं, वो यह भी कह रहे हैं कि लोकतंत्र को बचाने के लिए कांग्रेस की देश को जरूरत है. अगर कांग्रेस नहीं रही तो देश में लोकतांत्रिक मूल्य किसी भी हाल में बचे नहीं रहेंगे. कांग्रेस पुरानी पार्टी है, वो जनता के लिए भाजपा का मजबूत विकल्प है. इसलिए बेहतर होगा कि देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए पहले पार्टी में ही लोकतंत्र स्थापित किया जाए.

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