पूर्वोत्तर में सिमटती कांग्रेस का विकल्प अब ममता दीदी की TMC, देव-विश्वास के बाद बस बचे गोगोई

क्या पूर्वोत्तर में सिमट चुकी है कांग्रेस?, एक के बाद एक नेता छोड़ रहे हाथ का साथ, अब न नेता ना ही प्रभारी, कांग्रेस की जगह TMC ने संभाला मोर्चा, देव समेत दिग्गज थाम रहे चुके TMC का साथ, त्रिपुरा के पीयूष विश्वास भी देव की राह पर, जीते हुए विधायक गए बीजेपी के साथ, गौरव गोगोई ही हैं अकेले आस

क्या पूर्वोत्तर में सिमट चुकी है कांग्रेस?
क्या पूर्वोत्तर में सिमट चुकी है कांग्रेस?

Politalks.News/Delhi. क्या पूर्वोत्तर राज्यों की राजनीति कांग्रेस से मुक्त हो रही है. क्या कांग्रेस पार्टी अब पूर्वोत्तर की राजनीति से बाहर है. सियासी गलियारों में आजकल यही चर्चा जोरों पर है. दरअसल इसका पहला कारण है ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का बढ़ता प्रभाव और दूसरा कांग्रेस के पुराने और मजबूत नेताओं का या तो निधन हो गया है या वे पार्टी छोड़ कर चले गए हैं. वैसे पूर्वोत्तर में नेताओं का पार्टी छोड़ना कोई बड़ी बात नहीं है. इन राज्यों का ट्रेंड रहा है कि यहां के कांग्रेस नेता केंद्र में जिसकी सत्ता देखते हैं उसके साथ चले जाते हैं. लेकिन कांग्रेस की असली चिंता यह है कि भाजपा के साथ गए उसके नेता अब उसके यहां नहीं लौटना चाहते हैं. घर वापसी के समय उनकी पहली पसंद अब तृणमूल कांग्रेस है. त्रिपुरा में कांग्रेस के कई नेता इस समय तृणमूल कांग्रेस में जाने की तैयारी कर रही हैं और कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में चले गए कई नेता भी तृणमूल में जाना चाहते हैं.

बंगाल में TMC की प्रचंड जीत के बाद अब ऐसा माना जा रहा है कि पूर्वोत्तर में ममता दीदी की तृणमूल कांग्रेस ही असली कांग्रेस हो गई है और कांग्रेस पार्टी को इस सच्चाई को स्वीकार करना होगा. पूर्वोत्तर में कांग्रेस का चेहरा रहीं सुष्मिता देब ने पार्टी छोड़ और तृणमूल जॉइन की तो उसके अगले ही दिन कांग्रेस ने पूर्व आईपीएस अधिकारी अजय कुमार को त्रिपुरा सहित कुछ अन्य राज्यों का प्रभारी बनाया. कांग्रेस को लग रहा है त्रिपुरा राजघराने के उत्तराधिकारी और कांग्रेस के पूर्व नेता प्रद्योत देवबर्मन से अपनी दोस्ती के कारण अजय कुमार उनको कांग्रेस के साथ ले आएंगे. लेकिन यह भी तथ्य है कि देवबर्मन का ज्यादा सद्भाव सुष्मिता देब के साथ है. सो, उनके तृणमूल के साथ जाने की ज्यादा संभावना है.

अब से कुछ साल पहले की बात करें तो पूर्वोत्तर में कांग्रेस के पास बड़े नेता थे और अखिल भारतीय कांग्रेस के बड़े नेता वहां के प्रभारी होते थे. लेकिन अब कांग्रेस के पास न नेता हैं और न प्रभारी. नेता के नाम पर ले-देकर गौरव गोगोई हैं, जो अपने पिता के नाम पर राजनीति कर रही हैं. उन्हीं को कांग्रेस संसदीय नेता भी बनाती है, प्रभारी महासचिव बनाती है और असम में भी संगठन की जिम्मेदारी देती है. घूम फिर कर पूर्वोत्तर में सब कुछ गौरव गोगोई को ही मिलना है.असल में सुष्मिता देब की नाराजगी का यह भी एक बड़ा कारण था.

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बहरहाल, असम में विधानसभा चुनाव के बाद दो विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं और अब सुष्मिता देब अलग हो गई हैं. इस महीने यानी अगस्त में ही मणिपुर के कांग्रेस अध्यक्ष गोविंददास कोंथुजैम ने कांग्रेस छोड़ी और भाजपा में शामिल हो गए. त्रिपुरा के कार्यकारी अध्यक्ष पीयूष बिस्वास ने भी पार्टी छोड़ी है लेकिन कांग्रेस नेताओं ने थोड़े समय के लिए उनको मनाया हुआ है. पर उनका भी तृणमूल कांग्रेस में जाना तय है. कांग्रेस की इस स्थिति को देखते हुए माना जा रहा है कि पूर्वोत्तर में या तो भाजपा और उसकी सहयोगी प्रादेशिक पार्टियां हैं या तृणमूल कांग्रेस है. कांग्रेस के साथ साथ उसकी सहयोगी पार्टियां भी कमजोर हो गई हैं.

और मजे की बात यह है कि कांग्रेस पार्टी की मजबूरी है कि वह ममता बनर्जी को विपक्षी गठबंधन में शामिल रखे. कांग्रेस के नेता खून का घूंट पीकर उनको साथ रखे हुए हैं. ममता एक तरफ कांग्रेस पार्टी तोड़ रही हैं और दूसरी ओर ममता बनर्जी और उनके नेता कांग्रेस पार्टी की बैठकों में भी शामिल हो रहे हैं. संसद के पिछले सत्र में कांग्रेस के साथ उनके नेताओं ने जबरदस्त सद्भाव दिखाया था. ममता बनर्जी खुद दिल्ली में सोनिया-राहुल गांधी सहित कांग्रेस के कई नेताओं से मिली थीं. अभी 20 अगस्त को स्वर्गीय राजीव गांधी की जयंती के दिन सोनिया गांधी ने विपक्षी पार्टियों की वर्चुअल बैठक की तो उसमें भी ममता बनर्जी शामिल हुईं. लेकिन दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी के नेताओं को तोड़ने का सिलसिला भी जारी है.

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अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सुष्मिता देब कांग्रेस छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गई हैं. त्रिपुरा कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष पीयूष बिस्वास का तृणमूल में शामिल होना महज वक्त की बात है. भाजपा छोड़ कर तृणमूल में लौटे मुकुल रॉय त्रिपुरा में कांग्रेस के बचे खुचे नेताओं को तृणमूल में लाने का प्रयास कर रहे हैं. सुष्मिता देब के उधर जाने से यह काम आसान हो जाएगा. ममता ने पूर्वोत्तर में भाजपा से नाराज नेताओं के लिए एक गैर कांग्रेस विकल्प उपलब्ध करा दिया है. इसके बावजूद कांग्रेस की मजबूरी है कि वह ममता के साथ तालमेल बनाए रखे क्योंकि कांग्रेस को चिंता है कि अगर ममता ने अलग मोर्चा बनाया तो उसका सीधा नुकसान कांग्रेस को होगा और फायदा भाजपा को. इसलिए ममता कोई तीसरा या संघीय मोर्चा न बनाएं इस चिंता में कांग्रेस उनको साथ जोड़े रखने की कोशिश कर रही है।

 

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