Politalks.News/AssemblyElection2022. पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव (Assembly Election 2022) का बिगुल बज चुका है. पांच में से चार राज्यों में भाजपा (BJP) की सरकार है और उसे बचाने की चुनौती से बड़ा काम सरदारों वाले राज्य में खाता खोलने की है. वैसे तो चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में पंजाब (Punjab Assembly Election 2022) छोड़ कर बाकी चार राज्यों में भाजपा की बढ़त बताई जा रही है और आसानी से बीजेपी की सरकार बन जाने की भविष्यवाणी की जा रही है. लेकिन असल में ऐसा नहीं है. सियासी जानकारों की मानें तो असल में सभी पांच राज्यों में भाजपा के लिए बहुत मुश्किल चुनाव है. उसके सामने चार राज्यों में अपनी सरकार बचाने की चुनौती है तो पंजाब में पहली बार अकाली दल से अलग होकर लड़ रही भाजपा के सामने खाता खोलने की भी बड़ी चुनौती है.
अलग-अलग कारणों से पांचों राज्यों में भाजपा के लिए जमीनी हकीकत कुछ और ही है. 10 फरवरी से पांच राज्यों के चुनाव का घमासान शुरू होना है. इससे पहले भाजपा किस हद तक ध्रुवीकरण कर पाती है इस पर भाजपा की जीत निर्भर करेगी. पॉलिटॉक्स आ यह आपको पांच राज्यों में बीजेपी की जमीनी हालात के रूबरू कराने का प्रयास है.
योगी के मंत्री और विधायकों का पलायन खड़ा करेगा बड़ी चुनौती
सबसे पहले तो उत्तरप्रदेश में भाजपा के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती आज ही खड़ी हुई है वह है बीजेपी के मंत्री और विधायकों का पार्टी से पलायन यानी इस्तीफा और इसकी शुरुआत योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्या (Swami Prashad Mourya) ने कर दी है. दिल्ली में टिकट वितरण के लिए जारी महामंथन के बीच लखनऊ में सपा ने खेला कर दिया है. मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या के इस्तीफे के बाद सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने मोर्या के साथ उनका फोटो शेयर कर उनका स्वागत किया. यही नहीं मौर्या के साथ 3 और बीजेपी विधायकों ने भाजपा को अलविदा कर दिया है. सू्त्रों की मानें तो करीब 10 विधायक और आने वाले दिनों में समाजवादी पार्टी जॉइन कर सकते हैं. ऐसे में बाकी समीकरणों को छोड़ भाजपा के लिए इस पलायन को रोकना ही सबसे बड़ी चुनौती होगी.
उत्तरप्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और जातीय विभाजन में फंसी भाजपा!
उत्तर प्रदेश (UttarPradesh Assembly Election 2022) में भाजपा जातीय ध्रुवीकरण में फंसती दिख रही है. सियासी गलियारों में यह माना जाता है कि यूपी केंद्र में सरकार बनाने का गेट-वे है इसलिए यह चुनाव पीएम मोदी के लिए सबसे ज्यादा अहम है. यूपी में भाजपा की मुश्किल यह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट और व्यापक रूप से किसान समाज नाराज हैं तो पूरब के ब्राह्मण भी बेहद गुस्से में हैं. प्रदेश की सबसे बड़ी जाति होने और लगभग पूरी तरह से भाजपा का साथ देने के बावजूद ब्राह्मण का राजनीतिक महत्व कम हुआ है. ब्राह्मण संगठनों के मुताबिक यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि पुलिस की ज्यादती का ज्यादा शिकार दाढ़ी-टोपी वाले हुए हैं या चोटी वाले! ब्राह्मण योगी सरकार पर ठाकुरवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगा रहे हैं.
यहां आपको याद दिला दें कि पिछले चुनाव में भाजपा एक तरह से नरेंद्र मोदी और प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य के चेहरे पर लड़ी थी और इन दोनों के चेहरों ने पिछड़े मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में एकजुट किया था. उसके बाद योगी आदित्यनाथ इस खास मकसद से मुख्यमंत्री बनाए गए थे कि अपने भगवा पहनावे और गोरखनाथ पीठ के महंत की हैसियत से वे हिंदू समाज को एकजुट करेंगे. लेकिन पिछले पांच साल में उनकी वजह से जितना सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ उससे ज्यादा जातीय विभाजन हुआ है. अब भाजपा के सामने तालमेल बैठाने की चुनौती है.
यूपी में खेमों में बंटा हिंदू समाज !
उत्तर प्रदेश में आज हिंदू समाज ब्राह्मण बनाम राजपूत, यादव बनाम गैर यादव, जाटव बनाम गैर जाटव, पिछड़ा बनाम अगड़ा, जाट बनाम अन्य जैसे कई खांचों में बंटा हुआ है. ऊपर से पांच साल की राज्य सरकार और करीब आठ साल की केंद्र सरकार की एंटी इनकम्बैंसी है. कोरोना की महामारी के प्रबंधन में सरकार की विफलता गवर्नेंस के भाजपा मॉडल पर बड़ा सवाल है तो महंगाई और बेरोजगारी की वजह से भी भाजपा बैकफुट पर है. पार्टी के अंदर गुटबाजी भी कम नहीं है और पुराने सहयोगी ओमप्रकाश राजभर का गठबंधन छोड़ कर जाना भी असर डालने वाला है. अगले एक महीने में भाजपा की कोशिश 80 फीसदी बनाम 20 फीसदी का चुनाव बनाने की है, जिसका जिक्र चुनाव की घोषणा के तुरंत बाद योगी आदित्यनाथ ने किया. लेकिन इसमें कितनी कामयाबी मिलेगी, यह अभी नहीं कहा जा सकता.
सरदारों के राज्य में खाता खोलने की चुनौती!
पंजाब (Punjab Assembly Election 2022) में भाजपा ने कांग्रेस छोड़ कर पार्टी बनाने वाले कैप्टेन अमरिंदर सिंह और संयुक्त अकाली की पार्टी ढींढसा के साथ चुनावी रण में उतरने की तैयारी की है. मोदी सरकार द्वारा तीनों कृषि कानूनों को वापस लेना भी पंजाब चुनाव की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है. सरकार ने अपनी जिद छोड़ कर तीनों विवादित कृषि कानूनों को वापस लिया. किसान घर लौटे तो ऐसा लगा कि उनके मन में केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कटुता कम हुई है. लेकिन हाल के नाटकीय घटनाक्रम (फिरोजपुर में पीएम मोदी की सुरक्षा चूक) के बाद ऐसा लग रहा है कि किसानों के मन में कटुता कम होने की बजाय बढ़ गई है.
प्रधानमंत्री मोदी के पंजाब दौरे में सुरक्षा चूक एक अलग विषय है लेकिन यह हकीकत अपनी जगह है कि प्रधानमंत्री की फिरोजपुर में प्रस्तावित सभा में 70 हजार कुर्सियां लगी थीं और स्थानीय सूत्रों की माने तो सभा में केवल पांच हजार लोग पहुंचे थे. पीएम मोदी की यात्रा के दिन किसानों ने अनेक जगह प्रदर्शन किया और उनके प्रदर्शन की वजह से ही प्रधानमंत्री मोदी रैली की जगह तक नहीं पहुंच पाए. प्रधानमंत्री ने इस पर राजनीति करने की कोशिश की लेकिन इतनी भी राजनीतिक समझदारी नहीं दिखाई गई कि प्रधानमंत्री बारिश के बीच भी फिरोजपुर में जमा हुए अपने पांच हजार समर्थकों को मोबाइल फोन के जरिए ही संबोधित कर दें, जैसा वे पहले कुछ मौकों पर कर चुके हैं. ऐसे में सियासी जानकारों का कहना है कि सरकार बनाने में भूमिका तो छोड़िए पिछली बार जीती तीन सीटें बचाने की बड़ी चुनौती भाजपा के सामने है.
देवभूमि में एक मुख्यमंत्री और 5 पूर्व सीएम में बंटी भाजपा!
उत्तराखंड (UttarPradesh Assembly Election 2022) में तो प्रदेश में भाजपा अंदरूनी कलह का शिकार है. तीन बार मुख्यमंत्री बदलने का दांव भाजपा पर भारी पड़ता दिख रहा है. पांच साल सरकार में रहते हुए भाजपा ने कामकाज से या राजनीतिक गतिविधियों से अपने लिए सद्भाव नहीं बनाया. उलटे तीन मुख्यमंत्री बना कर भाजपा ने पार्टी को अलग अलग खेमों में बांट दिया. अब स्थिति यह है कि राज्य में पार्टी के पास एक मुख्यमंत्री और पांच पूर्व मुख्यमंत्री हैं और सबके अपने खेमे हैं. भगत सिंह कोश्यारी प्रदेश से दूर हैं और भुवन चंद्र खंडूरी भी राजनीति में ज्यादा सक्रिय नहीं हैं लेकिन रमेश पोखरियाल निशंक, त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत पूरी तरह से सक्रिय हैं. इनके सामने दूसरी बार के विधायक पुष्कर सिंह धामी का न कद बड़ा है और न अपील बड़ी है. ऊपर से कांग्रेस छोड़ कर गए दलित नेता यशपाल आर्य का पूरा कुनबा कांग्रेस में लौट गया है तो वहीं हरक सिंह रावत पार्टी को तेवर दिखा रहे हैं. कुल मिला कर पूरा चुनाव नरेंद्र मोदी के करिश्मे और केंद्र सरकार की ओर से घोषित की गई बड़ी परियोजनाओं के भरोसे है.
गोवा में पर्रिकर की खलेगी कमी के साथ जोर जबरदस्ती की सरकार बचाना मुश्किल!
गोवा में भारतीय जनता पार्टी पिछले 10 साल से सरकार में है. पिछला चुनाव हार जाने के बाद भी पार्टी ने जोर-जबरदस्ती करके सरकार बना ली थी लेकिन सरकार संभालने के लिए देश के रक्षा मंत्री को इस्तीफा दिला कर 40 सदस्यों वाली विधानसभा में मुख्यमंत्री बनाया गया था. वह मनोहर पर्रिकर थे, जिनकी वजह से राज्य में सरकार बनी और चली. पर्रिकर के निधन के बाद प्रमोद सावंत को मुख्यमंत्री बनाया गया. पर्रिकर की वजह से ही राज्य में ईसाई वोट भाजपा को मिले थे. इस बार पर्रिकर नहीं हैं और उनका परिवार भाजपा से बेहद नाराज है. दूसरी ओर भाजपा ने मुख्य विपक्षी कांग्रेस के साथ साथ अपनी सहयोगी पार्टियों महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी और गोवा फॉरवर्ड पार्टी को भी नहीं छोड़ा. उनके भी विधायक भाजपा ने तोड़े. इनमें से एक ने तृणमूल कांग्रेस से तालमेल किया है तो दूसरी ने कांग्रेस के साथ. तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के पूरी ताकत से लड़ने की वजह से भी तस्वीर बदली है. राज्य में 10 साल की और केंद्र की आठ साल की एंटी इनकम्बैंसी भी भाजपा के लिए भारी पड़ रही है.
भाजपा की जोड़-तोड़ पर भारी पड़ रहा अफस्पा!
अब बात करें पांचवें चुनावी राज्य मणिपुर की तो, मणिपुर में पिछली बार भाजपा ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था लेकिन चुनाव कांग्रेस ने जीता था. 60 सदस्यों की विधानसभा में कांग्रेस के 28 सदस्य थे लेकिन भाजपा ने 21 सदस्य होने के बावजूद यहां भी जोर-जबरदस्ती सरकार बनाई. कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए एन बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया. तब से कांग्रेस टूट कर 15 सदस्यों की पार्टी रह गई है और भाजपा के 29 विधायक हो गए हैं. इससे कांग्रेस कमजोर हुई है और भाजपा मजबूत दिख रही है. लेकिन हाल में पड़ोसी राज्य नगालैंड में सेना की फायरिंग में 14 बेकसूर लोगों के मारे जाने की घटना के बाद सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून यानी अफस्पा के खिलाफ आंदोलन तेज हुआ है. केंद्र सरकार ने इसे खत्म करने पर विचार के लिए कमेटी बनाई और उसके तुरंत बाद पूरे नगालैंड को अशांत क्षेत्र घोषित कर पूरे राज्य में अफ्सपा को छह महीने के लिए बढ़ा दिया. इससे समूचे पूर्वोत्तर में नाराजगी है. कई राज्यों में सीमा के विवाद चल रहे हैं, जिसका असर चुनाव पर होगा ही होगा.