इन दिनों सोशल मीडिया राजनीति का अखाड़ा बन चुका है. बने भी क्यूं न, आखिर इस बार का लोकसभा चुनाव सोशल मीडिया पर ही तो लड़ा जा रहा है. इस तेज और वायरल माध्यम से आमजन खुद राजनीति के मैदान में एक लड़ाई ही तो लड़ रहा है. फिर क्या फर्क पड़ता है कि वह प्रत्यक्ष तौर पर चुनावी मैदान में नहीं है लेकिन अपनी भड़ास तो सबसे सामने निकाल ही सकता है और उसे नोटिस भी किया जाता है. आज सोशल मीडिया पर जो हलचल बनी रही, वह है तेज बहादुर यादव. यह वही तेज बहादुर है जिसने कुछ सालों पहले बॉर्डर से एक वीडियो वायरल किया था जिसमें उसने टिफिन में दाल दिखाते हुए कहा था कि आर्मी में जवानों को इस तरह का खाना खिलाया जाता है. उसके बाद आर्मी की बातों को सार्वजनिक करने के चलते उन्हें फौज से बर्खास्त कर दिया गया था. अब उन्हें वाराणसी से सपा-बसपा गठबंधन ने नरेंद्र मोदी के सामने टिकट लेकर चुनावी लड़ाई लड़ने के लिए उतारा है. चुनाव आयोग ने तेजबहादुर यादव द्वारा दी गई गलत सूचना (दो अलग-अलग नामांकन पत्रों में) के आधार पर नामांकन पत्र खारिज किया है. अब यह मामला सोशल मीडिया पर बहस की वजह बना हुआ है. कुछ बीजेपी समर्थकों ने कई दलीलें देकर आयोग के इस फैसले को सही बताया है.
चुनाव आयोग ने तेजबहादुर की उम्मीदवारी रद्द कर दी है. मोदी को जिताने के लिए ‘जवान’ को अयोग्य घोषित कर दिया!
इस देश मे दो क़ानून है. एक प्रज्ञा ठाकुर और स्मृति ईरानी के लिए. दूसरा हार्दिक पटेल और तेज बहादुर यादव के लिए. वैसे मोदी जी ने अपनी डिग्री नहीं दिखाई है…
सैनिक बॉर्डर पर लड़ सकता है, बनारस में नहीं.
तेजबहादुर यादव का नाम किसी आतंकी घटना में शामिल नहीं है. होता तो आसानी से चुनाव लड़ लेते. न्यू इंडिया में आपका स्वागत है.
चुनाव आयोग ने आतंकवाद के आरोपित (प्रज्ञा ठाकुर) का नामांकन रद्द नहीं किया. बलात्कार के आरोपित (निहालचंद), दंगे के आरोपित (संजीव बालयान) का भी नामांकन रद्द नहीं किया लेकिन बीएसएफ के पूर्व जवान का नामांकन रद्द कर दिया. यही है न्यू इंडिया!