Politalks.News/Bihar. लग रहा है कि हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतनराम मांझी के बाद रालोसपा के मुखिया उपेंद्र कुशवाहा का भी महागठबंधन से मोह भंग हो चुका है. आगामी एक दो दिन में वे महागठबंधन को अलविदा कह सकते हैं. इसे लेकर रालोसपा ने एक बैठक भी बुलाई है जिसमें पार्टी की आगे की रणनीति तैयार की जाएगी. इस बैठक में रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के साथ पार्टी के तमाम बड़े नेता मौजूद रहेंगे. पार्टी ने नए विकल्प पर होमवर्क करना शुरू कर दिया है. रणनीतिकारों का मानना है कि वे तीसरे मोर्चे की तैयारी कर रहे हैं लेकिन असल में राजद नेता तेजस्वी कुशवाह को बाहर कर वाम दलों को साधने की कोशिश में है.
इस बार गठबंधन में दो से तीन वाम दल शामिल हैं जिसमें सीपीआई और सीपीआईएमएल भी हैं. इन स्थानीय पार्टियों ने पिछले चुनावोें में मिलकर 4 सीटें जीती थी जबकि रालोसपा के हाथों में महागठबंधन की तीन बड़ी पार्टियों का साथ होने के बावजूद केवल दो सीटें हाथ लगी. रालोसपा ने 23 सीटों पर अपनी किस्मत आजमाई थी. हम पार्टी के जीतनराम मांझी को एनडीए के साथ लड़ने का फायदा न मिल पाया और 21 सीटों पर ताल ठोकने के बाद एक सीट जीत पाई जो खुद जीतनराम मांझी की थी. इधर, 2018 में खड़ी हुई मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी की पैठ केवल दो सालों में बिहार में जम चुकी है. पार्टी का मुख्य वोट बैक निषाद है जिनकी संख्या बिहार में अच्छी खासी है. ऐसे में रालोसपा का ये हिस्सा अगर वीआईपी को दिया जाए तो भी महागठबंधन की क्षतिपूर्ति हो जाएगी.
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इधर, महागठबंधन से मांझी के हटने के बाद उनके पास सीटें बच गई हैं. वहीं पिछले चुनाव में जदयू भी गठबंधन में थी, ऐसे में 100 सीटों का फायदा यहां महागठबंधन को हुआ है. अब महागठबंधन में राजद और कांग्रेस केवल दो बड़े दल हैं. अगर दोनों दल 160 से 180 सीटों पर भी दांव ठोकते हैं तो भी वीआईपी समेत अन्य वाम दलों को देने के लिए महागठबंधन के पास 60 से लेकर 80 सीटें बचेंगी जिन पर इन छोटे दलों को संतुष्ठ करना तेजस्वी यादव के लिए ज्यादा मुश्किल नहीं होगा. यही वजह है कि तेजस्वी यादव की ओर से रालोसपा के मुखिया उपेंद्र कुशवाहा को मनाने की कोशिशभर तक नहीं की जा रही.
अब कुशवाहा के नाराज होने की वजह भी काफी अहम है. दरअसल, तेजस्वी ने उपेंद्र कुशवाहा को बड़ा झटका देते हुए रालोसपा के कार्यकारी उपाध्यक्ष कामरान को राजद में शामिल करा लिया. वे आधी रात को राजद में शामिल हो गए. पार्टी तोड़ने के चलते कुशवाहा तेजस्वी से काफी नाराज हैं और यही वजह है कि उन्होंने गुरुवार को रालोसपा की इमरजेंसी बैठक बुलाई है. इधर, रालोसपा के प्रधान महासचिव माधव आनंद का कहना है कि राजद और कांग्रेस की नीयत ठीक नहीं है. चुनाव सिर पर है और अब तक सीट को लेकर कोई आश्वासन नहीं दिया गया है. ऐसे में पार्टी अलग विकल्प के लिए स्वतंत्र है.
हालांकि सच तो ये है कि एक सोची समझी चाल के तहत तेजस्वी ने कामरान को पार्टी में शामिल कराया है. उन्हें पता है कि इसके बाद कुशवाहा नाराज होकर गठबंधन तोड़ देंगे और यही वो चाहते हैं. हां, रालोसपा का एक वोट बैंक जरूर है जो महागठबंधन के हाथों से खिसक सकता है लेकिन इसकी पूर्ति साहनी की वीआईपी कर देगी, ऐसा लग रहा है.
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इधर, महागठबंधन से कुशवाहा के अलग होने को लेकर उठ रहे सवाल पर राजद ने भी पलटवार किया है. राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी का कहना है कि अगर फिर से कुशवाहा की अंतरात्मा जाग रही है तो फिर क्या किया जाए. वे अपना फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं. राजद हमेशा सबको साथ लेकर चलना चाहती है. कुल मिलाकर राजद ने उनका ठीकरा उन्हीं के माथे फोड़ दिया है.
कुशवाहा महागठबंधन छोड़कर एनडीए में जाएं, यह बात लगभग नामुमकिन है. ऐसे में उनके पास दो विकल्प बचता है. पहला- वे अकेले चुनाव लड़ सकते हैं जिसकी संभावना अधिक है. दूसरा- वे थर्ड फ्रंट बना सकते हैं जिसकी संभावना न के बराबर है. वे जन अधिकार पार्टी के पप्पू यादव के साथ मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं लेकिन पप्पू का कांग्रेस को समर्थन देने का आंशिक बयान पहले ही आ चुका है.
चिराग पासवान के साथ आने के बाद तीसरे धड़े के बनने की संभावना थी लेकिन अब इसकी संभावना क्षीण हो चली है. ऐसे में रालोसपा का खुद ही 50 से 60 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने के अलावा अन्य कोई रास्ता नहीं बचा है. इसके दूसरी ओर, तेजस्वी ने रालोसपा के एक मुहरे को अपनी तरफ मिला वाम दलों के साथ वीआईपी और अन्य छुटपुट पार्टियों को खुश करने का रास्ता निकाल लिया है.