Politalks.News/Uttrakhand. उत्तराखंड में जो बीजेपी की और से सीएम तीरथ सिंह रावत को हटाकर पुष्कर धामी पर दांव खेला गया है. इस घटनाक्रम को लेकर लेकर सवाल उठने खड़े हो गए हैं. देहरादून से दिल्ली तक कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं. इधर, भारतीय जनता पार्टी के अजब-गजब तर्क हैं! कहा जा रहा है कि संवैधानिक संकट की वजह से उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को इस्तीफा देने को कहा गया. लेकिन भाजपा का यह तर्क पच नहीं रहा है. हालांकि पुष्कर सिंह धामी ने रविवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है.
भाजपा ने मार्च में त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटा कर गढ़वाल सीट के लोकसभा सांसद तीरथ सिंह रावत को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया था तब क्या किसी के भी दिमाग में यह बात नहीं आई थी कि उनको छह महीने के अंदर विधायक बनना होगा और अगर नहीं बने तो इस्तीफा देना पड़ सकता है? क्या उस समय भाजपा के आला नेतृत्व में किसी को यह नियम नहीं पता था कि अगर किसी सदन का कार्यकाल एक साल से कम बचा हुआ हो तो उसकी किसी
सीट के लिए उपचुनाव नहीं भी कराया जा सकता है?
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इतने भोलेभाले तो भाजपा के नेता नहीं हैं, जो यह सब नहीं जानते थे और इसलिए एक सांसद को मुख्यमंत्री बना दिया गया. दूसरी हैरानी इस बात को लेकर है कि भाजपा के नेता संवैधानिक संकट का हवाला क्यों दे रहे हैं? सीधे-सीधे यह भी तो कहा जा सकता था कि कोरोना वायरस की दूसरी लहर का संकट अभी टला नहीं है और इसलिए अभी उपचुनाव कराना ठीक नहीं होगा। इस आधार पर तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे को जायज ठहराया जा सकता है. लेकिन कोरोना की बजाय संवैधानिक संकट का हवाला दिया जा रहा है. यह भी हैरानी है कि भाजपा आलाकमान इस संकट का हवाला देकर इस्तीफा कराती उससे पहले ही चुनाव आयोग के हवाले से यह खबर आई थी कि उत्तर प्रदेश की सात और उत्तराखंड की दो खाली सीटों पर उपचुनाव नहीं होंगे.
क्या चुनाव आयोग ने अपने मन से यह बयान दे दिया था? पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद तो आयोग के बारे में यह धारणा बन गई है कि वह केंद्र की मर्जी के बगैर कुछ नहीं करता है. पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को तंज कसते हुए कह भी चुकी हैं कि- ‘चुनाव आयोग को पीएम मोदी जब निर्देश देंगे तब ही वो काम शुरू करेगा’ तभी यह भी कहा जा रहा है कि भाजपा आलाकमान को हर हाल में रावत को हटाना था इसलिए ऐसे हालात पैदा किए गए. वरना अगर सरकार चाहती तो चुनाव आयोग अब भी उपचुनाव कराता, चाहे नियम कुछ भी होते. सवाल है कि भाजपा आलकमान क्यों तीरथ सिंह रावत से छुटकारा चाहता था?
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इसका कारण यह है कि अगले साल फरवरी-मार्च में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और 114 दिन के तीरथ सिंह रावत के कार्यकाल के आधार पर भाजपा आलाकमान को अंदाजा हो गया था कि उनकी कमान में चुनाव जीतना संभव नहीं है. इसलिए उनको हटाया गया है. उनके विवादित बयानों की वजह से कई समूह नाराज थे तो यह भी कहा जा रहा है कि साधु-संतों का समाज भी उनसे खुश नहीं था. मुख्यमंत्री बनते ही कुंभ के आयोजन में अव्यवस्थाएं भी इसका एक कारण था. वहीं सूत्रों की माने तो तीरथ सिंह की स्थिति इतनी कमजोर थी कि वे मुख्यमंत्री रहते गंगोत्री की खाली सीट से उपचुनाव नहीं लड़ना चाहते थे. वे अपने गढ़वाल लोकसभा सीट की किसी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के इच्छुक थे. इसके लिए किसी बड़े नेता से इस्तीफा कराना होता. तभी उनके लिए किसी से इस्तीफा कराने की बजाय पार्टी आलाकमान ने उनसे ही इस्तीफा कराने का फैसला किया.
उत्तराखंड में यह दूसरा मौका है, जब भारतीय जनता पार्टी ने तीन बार मुख्यमंत्री बदला है. इससे पहले भी जब भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी तब उसने तीन बार मुख्यमंत्री बदले थे. नए राज्य का गठन होने के बाद पहली सरकार भाजपा की ही बनी थी. वह दो साल के लिए अंतरिम सरकार थी. लेकिन उस दो साल में भी भाजपा ने दो मुख्यमंत्री बनाए. पहले नित्यानंद स्वामी बने और फिर भगत सिंह कोश्यारी को बनाया गया.
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उत्तराखंड में दूसरे चुनाव में 2007 में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला तो पहली बार भुवन चंद्र खंडूरी मुख्यमंत्री बने. सवा दो साल के बाद उनको हटा कर रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बनाया गया और फिर 2012 के चुनाव से ठीक पहले वापस खंडूरी को मुख्यमंत्री बना दिया गया. इस बार 2017 में भाजपा की सरकार बनी तो पार्टी ने फिर तीन बार मुख्यमंत्री बदला है. राज्य में हर पांच साल पर सत्ता बदलने का ट्रेंड है. तीन बार मुख्यमंत्री बदलने से वैसे भी पार्टी की
कमजोरी जाहिर हुई है और इसलिए भाजपा के लिए राह आसान नहीं है. चुनाव से आठ महीने पहले नया नेता बना कर पार्टी किसी चमत्कार की उम्मीद कर रही है.